रायपुर। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का बीजापुर दौरा तूफ़ानी रहा। इस दौरान उन्होंने कई बड़ी घोषणाएं की और बड़ी सौगातें दीं। साथ ही तगड़ा भाषण भी दिया । इस भाषण में देश के लिए संदेश था, स्थानीय आदिवासी के लिए संदेश था। विरोधियों के लिए संदेश था और नक्सलियों के लिए भी संदेश था। कुछ घंटों के मेगा शो से समा तो बंधा। अंटेशन तो मिला..पीएम की आवाज़ तो हमेशा की तरह गूंजी पर बस्तर को क्या बदलाव का कोई सूत्र मिला। क्या आदिम आबादी के लिए अमन की कोई उम्मीद निकली।
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14 अप्रैल…संविधान निर्माता का जन्मदिन..और पीएम मोदी का बस्तर दौरा…। बीजापुर ज़िले के एक अनाम से गांव जांगला से दुनिया के सबसे बड़ी स्वास्थ्य योजना को उन्होंने लॉन्च किया । आयुष्मान भारत योजना..जिसका पहला वेलनेस सेंटर जांगला में खुला..इस योजना की मदद से देश के 10 करोड़ से ज्यादा लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिल सकेंगी । बीजापुर जहां हेल्थ से जुड़ी बुनियादी सुविधाएं कम ही रही हैं..ऐसे में यहां से इस महात्वाकांक्षी योजना का आगाज कर पीएम ने एक संदेश ये दिया है कि देश के वो तमाम इलाके जो हाशिए पर हैं…अब बड़े बदलावों की शुरुआत वहीं से होगी । इस योजना को शुरू करने के लिए उन्होंने जो दिन चुना..वो भी बेहद ख़ास..। इस दिन एक ऐसे पुरोधा की जयंती है..जो खुद वंचित समुदाय से आते थे..और वंचितों के सशक्तीकरण के लिए आजीवन संघर्ष करते रहे ।
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और आयुष्मान भारत योजना भी एक तरह से शोषितों-वंचितों को भी ध्यान पर बनाई गई है । दूसरा सवाल ये है..दलित मसीहा बाबा साहेब का बस्तर से कोई सीधा जुड़ाव तो नहीं..न ही बस्तर में दलितों की कोई बड़ी आबादी है…फिर पीएम ने इस दिन विशेष पर बस्तर दौरा का फैसला क्यों लिया? ये सच है कि बस्तर में जब पीएम जब जय भीम का नारा लगाते सुनाई पड़े…तो सियासी पंडितों को थोड़ी हैरत हुई..क्योंकि बस्तर जाना जाता है..अपनी आदिवासी आबादी के लिए..स्वतंत्रता वीर गुंडाधूर के लिए…करिश्माई लोकनायक प्रवीरचंद भंजदेव के लिए..और अपनी आदिवासी अस्मिता के लिए…ऐसे में अगर बस्तर के सेंटिमेंट को छूना थो..तो सिंबल भी ख़ालिस लोकल चुने जाने थे..तो क्या पीएम मोदी का कैलुकेलशन ग़लत था..या फिर उन्होंने एक बड़े असर की नींव रखने के लिए एक बड़ा दिन चुना और संधान भी सही दिशा में किया? बात सीधी और साफ है..जो दिख भी ये रहा है..वो ये कि अब सरकार या कहें बीजेपी नेतृत्व दलितों और आदिवासियों को एक साथ जोड़कर पेश करना चाहता है..वो उन्हें एक ही सियासी प्लेटफार्म पर खड़ा करना चाहता है और उनके कॉमन एजेंडे पर काम करना चाहता है..जैसे बुनियादी विकास, रोजगार, स्वास्थ्य, और शिक्षा…ताकि चुनावी दौर में वो दोनों समुदायों को साझे तौर पर एड्रेस कर सके । ये दूर की कौड़ी है..पर तय है कि अगर आदिवासी और दलित एक साथ सरकार के समर्थन में आ जाए तो 2019 की वैतरणी मोदी सरकार आसानी से पार कर लेगी ।
वेब डेस्क, IBC24