रायपुर/भोपाल। मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में अक्टूबर-नवंबर में विधान सभा चुनाव होने हैं, लिहाजा सियासत की नब्ज अब धीरे-धीरे तेज होने लगी है। सियासत के इस महासमर की तैयारियों के बीच मतदाता अपने उस सियासी मूड को तैयार कर रहा है जो मिशन 2018 में पार्टियों और उम्मीदवारों का भाग्य तय करेगा और आम जनता के इसी मूड को भांपने के लिए हम निकल पड़े हैं दोनों राज्यों के दौरे पर। यानी हम विधायकजी का पूरा रिपोर्ट कार्ड तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं।
विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड तैयार करने के लिए हमारी टीम पहुंची, मध्यप्रदेश की भोपाल उत्तर विधानसभा क्षेत्र। राजधानी भोपाल की उत्तर विधानसभा सीट पर करीब 2 दशक से कांग्रेस का कब्जा रहा है। शहर की सियासत में कितने भी उतार चढ़ाव आएं। भोपाल उत्तर पर उसका फर्क नहीं पड़ा। कांग्रेस के इस किले में सेंध लगाने के लिए बीजेपी इस बार भी पूरा जोर लगाएगी. चुनाव में पानी की किल्लत, ट्रैफिक की समस्या और सड़क किनारे अनधिकृत कब्जे जैसी समस्याएं इस बार चुनावी मुद्दा बनेंगी।
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पुराने भोपाल का ये इलाका उत्तर विधानसभा कांग्रेस विधायक आरिफ अकील का गढ़ है। बीजेपी ने बहुत कोशिश की लेकिन ये सीट छीनने में अभी तक सफल नहीं हो पाई है, लेकिन इसका मतलब ये नहीं है कि विधायकजी ने लोगों की सारी समस्याएं दूर कर दी हैं। पेयजल की दिक्कत, ट्रैफिक जाम की समस्या के अलावा गैस पीड़ितों के मोहल्लों में तो बुनियादी सुविधाएं भी मयस्सर नहीं हैं. अकील अपनी सराय में जनचौपाल भी लगाते हैं. लेकिन विधानसभा क्षेत्र के हालात ये हैं कि भोपाल टॉकीज़ चौराहा, सिंधी कॉलोनी, डीआईजी बंग्ला चौराहा और बस स्टैंड जैसी जगहों पर लोग घंटों जाम में फंसे रहते हैं। आरिफ नगर, कबीरपुरा, कोहेफिज़ा, राम नगर, संजय नगर, बाग मुफ्ती साहब और शहीद नगर में गर्मियों में पेय जल संकट की समस्या बेहद गंभीर हो जाती है।
गर्मी के बाद बरसात आते ही नालों का गंदा पानी घरो-मोहल्लों और दुकानों में घुस जाता है। लगातार मांग करने के बावजूद ना तो नालों की सफाई हुई है और ना ही इनकी ऊंचाई बढ़ाई गई। गैस पीड़ित कॉलोनियों में तो स्थिति भयावह है। लोगों को पानी, साफ-सफाई और अस्पताल जैसी बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिल रही हैं।
इलाके की समस्याएं गिनाने पर विधायक आरिफ अकील टोपी ट्रांसफर करने में दो मिनट नहीं लगाते। सारी समस्याओं की जड़ राज्य की बीजेपी सरकार है। आरिफ का आरोप है कि बीजेपी की सरकार में उनकी कोई नहीं सुनता। वो तो यहां तक कहते हैं कि चूंकि वो कांग्रेसी विधायक हैं इसलिए उनके इलाके के साथ भेदभाव किया जाता है।
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अपनी परेशानी गिना रहे विधायकजी दिग्विजय सिंह की सरकार में गैस राहत मंत्री रह चुके हैं। लेकिन इसके बावजूद गैस पीड़ित इलाकों में तब कोई सुधार हुआ था और ना ही आज है। मतादाताओं की नाराजगी जाहिर है। अपनी इन सरकारी खींचतान वाली दलीलों से वोटर को कितना लुभा पाएंगे ये तो चुनाव में ही पता चलेगा।
कांग्रेस के अभेद्द किले के तौर पर पहचान बना चुकी उत्तर विधानसभा सीट बीजेपी के प्राइम टारगेट पर है। अल्पसंख्यक बहुल इलाका होने की वजह से आसानी से जीतते आए चार बार के विधायक आरिफ अकील को इस बार कड़ी चुनौती मिल सकती है। बीजेपी ने आरिफ अकील को हराने के लिए अपने अल्पसंख्यक नेताओं को चुनावी मैदान मे लगा दिया है। हालांकि कांग्रेस के मौजूदा विधायक आरिफ अकील अब भी अपनी जीत को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त हैं।
1990 में निर्दलीय विधायक और उसके बाद लगातार चार बार से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीतते आए आरिफ अकील को उनके ही घर मे घेरने के लिए बीजेपी ने खास रणनीति बनाई है। मुस्लिम बहुल इस सीट पर बीजेपी ने पुराने भोपाल के अल्पसंख्यक नेताओं को अभी से लगा दिया है। भोपाल उत्तर विधानसभा सीट के सियासी गणित को देखें तो यहां 55 फीसदी मुस्लिम वोटर हैं। मुस्लिम मतदाता आरिफ अकील के कोर वोटर हैं। जबकि 45 फिसदी हिन्दू वोटर में से भी कांग्रेस समर्थकों का वोट अकील को जाता है। इसी समीकरण की वजह से अकील को यहां कोई तगड़ी टक्कर नहीं मिल पाती है।
लेकिन इस बार बीजेपी ने मदरसा बोर्ड के पूर्व चेयरमेन राशिद खान, अल्पसंख्यक मोर्चे के जिलाध्यक्ष एज़ाज खान, वक्फ बोर्ड के शौकत खान,संगठन मे काम करने वाले हिदायतउल्लाह शेख जैसे मुस्लिम लीडर्स को दावेदारी साबित करने का मौका दिया है। बीजेपी के मुस्लिम नेताओं का दावा है कि मोदी सरकार के तीन तलाक पर लिए गए स्टैंड और शिवराज सरकार की तरफ से तीर्थदर्शन और मुख्यमंत्री निकाह जैसी बड़ी योजनाओं के जरिए मुस्लिम वोट बैंक को बीजेपी की तरफ करने में कामयाबी हासिल हुई है।
उधर कांग्रेस का गणित बिगाड़ने के लिए निर्दलीय प्रत्याशियों ने भी अभी से मोर्चा खोल दिया है। उत्तर विधानसभा के वार्ड नंबर 8 से निर्दलीय पार्षद मोहम्मद सऊद भी विधानसभा चुनाव में ताल ठोकने की तैयारी में हैं। मोहम्मद सऊद का दावा है कि जनता मौजूदा विधायक आरिफ अकील से ऊब चुकी है और वो विकल्प की तलाश कर रही है।
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बीजेपी ने पिछले चुनाव में पार्टी के बड़े मुस्लिम चेहरे आरिफ बेग को उतारकर आरिफ अकील को चुनौती देने की कोशिश की थी लेकिन कामयाब नहीं हो पाई। आरिफ अकील की जीत के पीछे एक बड़ी वजह इलाके के कई मुस्लिम धर्मगुरु भी हैं, जिनके एक इशारे पर मुस्लिम वोटर आंख मूंदकर कांग्रेस को वोट देते हैं। लेकिन इस बार बीजेपी ने धर्मगुरुओं को भी दो गुटों में बांट दिया है पर आरिफ अकील इन सभी जोड़-तोड़ से बेफिक्र नजर आ रहे हैं। वो तो ये भी दावा कर रहे हैं कि प्रदेश के मुखिया शिवराज सिंह चौहान भी उतर जाएं तो भी नतीजा वहीं होगा।
भोपाल की 7 विधासनभा सीटों मे से ये इकलौती कांग्रेस की सीट है। पूरे प्रदेश में कोई भी लहर हो लेकिन यहां आते-आते बीजेपी के सारे गणित फेल हो जाते हैं। 2018 में आरिफ अकील के इस किले को भेदने में बीजेपी की सोशल इंजीनियरिंग कितना सफल होती है। ये देखने के लिए करीब 6 महीने का इंतजार करना होगा।
भोपाल उत्तर के सियासी इतिहास की बात की जाए तो ये सीट कभी भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी का गढ़ हुआ करती थी। 1977 में जनता पार्टी की लहर ने कम्यूनिस्ट किले को ध्वस्त किया लेकिन अगले ही चुनाव में कांग्रेस ने यहां कब्जा कर लिया। यहां के मतदाता एक बार इस सीट पर कमल भी खिला चुके हैं। लेकिन पिछले चार चुनाव से जीतते आए आरिफ अकील इसे कांग्रेस का अभेद्य किला बना चुके हैं।
भोपाल उत्तर सीट के मतदाताओं ने शुरुआत से अब तक लगभग हर पार्टी और हर विचारधारा को मौका दिया है। लेफ्ट, राइट और सेंटर सबको आजमाया है. शुरुआत कम्युनिस्ट पार्टी से हुई। 1957, 1967 और 1972 में भाकपा के शाकिर अली खान जीते। 1977 की लहर में जनता पार्टी के हामिद कुरैशी ने बाजी मारी। 1980 और 1985 में कांग्रेस के रसूल अहमद सिद्दिकी जीते। इसके बाद आरिफ अकील का दौर आया। अब तक पार्टियों को सपोर्ट करते आए भोपाल उत्तर सीट के मतदाताओं का पार्टियों से मोहभंग हो गया। 1990 में निर्दलीय आरिफ अकील विधायक बने। 1993 में आरिफ अकील जनता दल की टिकट पर उतरे लेकिन कांग्रेस और जनता दल के बीच वोट बंट गया और बीजेपी के रमेश शर्मा ने बाजी मार ली।
अगले ही चुनाव यानी 1998 में आरिफ अकील कांग्रेस में गए और बीजेपी से ये सीट छीन ली। उसके बाद से इस सीट पर कोई उतार चढ़ाव नहीं आया है। पिछले चुनाव में समाजवादी छवि वाले 63 साल के आरिफ बेग को उतारकर बीजेपी ने कांग्रेस को चुनौती देने की कोशिश की थी। लेकिन करीब 6 हजार वोट से पीछे रह गए। इसबार मुकाबला रोमांचक हो सकता है।
वेब डेस्क, IBC24