रायगढ़। विधायकजी का रिपोर्ट कार्ड तैयार करने हमारी टीम पहुंची है छत्तीसगढ़ के रायगढ़ विधानसभा क्षेत्र। यहां के विधायकजी पिछले पांच सालों के कार्यकाल में अपनी उपलब्धियां गिनाते नहीं थकते। विधायकजी का कहना है कि उन पर विपक्ष विकास के मुद्दे पर झूठे आरोप लगाती है जो कि सिवाए चुनावी स्टंट के कुछ भी नहीं है। विधायकजी के इन दावों की सच्चाई जानने के लिए हमने कुछ ग्रामीण इलाकों का दौरा किया। जो तस्वीर निकल कर आई वो विधायक के दावों की पोल खोल रही है।
रायगढ़ शहर से महज सात किमी की दूरी पर स्थित है अमलीपाली गांव, जो क्षेत्र में विकास के तमाम दावों की पोल खोलता है। इस गांव की तकदीर में सिर्फ समस्या ही समस्या लिखी हुई है। मुख्य सड़क तक जाने के लिए एप्रोच रोड नहीं होने की वजह से गांव के लोग अब भी पगडंडी से सफर करते हैं। सड़क नहीं होने की वजह से गांव तक एंबुलेंस नहीं पहुंच पाती और बीमार मरीजों को खाट पर लेकर ग्रामीण मुख्य सड़क तक पहुंचते हैं। 2013 में सड़क के लिए लोगों ने विधानसभा चुनाव का बहिष्कार कर दिया था। तब जनप्रतिनिधियों ने गांव के विकास का वादा किया था। लेकिन अब तक ये अधूरा है। ग्रामीणों ने अपनी जमीन का कुछ हिस्सा सडक के लिए पंचायत को डोनेट कर श्रमदान से खुद कच्ची सडक बनाई, जो कि बारिश में बंद हो जाती है। अब तो हालात ये हैं कि इस गांव में कोई अपनी बेटी की शादी नहीं कराना चाहता।
डेढ–दो घंटे से इंतजार कर रहे हैं पानी के लिए, लाइट गोल है बोर खराब है। बोर का पानी लाल आता है। यहीं से पानी लाते हैं, तालाब भी जाते है, तालाब में गंदा पानी निकलता है, आते हैं लेकिन सुन कर चले जाते हैं। बन जाएगा बोलते हैं। नहीं आए थे, सुन के चले जाते हैं। एक स्थानीय महिला का कहना है कि बहुत समस्या होती है। तीन किमी चल के आते हैं तब पानी ले जाते हैं। उनसे जब पूछा कि उनका विधायक कौन है, जवाब मिला कि कौन है ये तो नहीं मालूम लेकिन आते हैं। मै नही पहचानती। आते हैं, बना देंगे बोलते हैं, वोट लेते हैं चले जाते हैं। सुलझाते नहीं है राजा बन जाते हैं तो अपना–अपना काम करते हैं।
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रायगढ़ विधानसभा क्षेत्र में केवल पानी ही नहीं बल्कि लगातार बढ़ता प्रदूषण का स्तर भी लोगों का जीना मुहाल कर रखा है बेतरतीब लग रहे उद्योगों की वजह से पूरा इलाका प्रदूषण की गिरफ्त में है। खास बात ये है कि इसकी रोकथाम के लिए अब तक न तो जनप्रतिनिधियों ने ना ही प्रशासनिक अधिकारियों ने कोई प्रयास किया है। वहीं खराब और संकरी सडकों की वजह से पूरा शहर आए दिन जाम की समस्या से जूझता है।
दूसरी समस्याओँ की बात करें तो रायगढ़ शहर का मास्टरप्लान भी अब तक अटका हुआ है,जिसकी वजह से शहर नए सिरे से डेवलप नहीं हो पाया है। एयरपोर्ट की मांग भी अब तक पूरी नहीं हुई है, जबकि प्रशासनिक उदासीनता की वजह से शहर के लोगों को सिटी बस का लाभ भी नही मिल पाया है। शहर में सर्वसुविधायुक्त बस स्टैंड, संजय मार्केट का नए सिरे से निर्माण, अधूरी पड़ी 27 सडकें और ओडीएफ निर्माण के दौरान सामने आया भ्रष्टाचार यहां की प्रमुख समस्या है जो कि चुनावी साल में बड़ा मुद्दा बन सकता है। केलो डेम के निर्माण के बाद भी खेतों तक पानी नहीं पहुंच पाना भी यहां की प्रमुख समस्या है जिसे सुलझाने में विधायक नाकाम साबित हुए हैं। रायगढ़–सराईपाली रोड निर्माण की धीमी गति को लेकर भी विधायक की कार्यशैली पर सवालिया निशान लगते रहे हैं।
क्षेत्र के विधायक रोशनलाल अग्रवाल के व्यवहार से भी लोग निराश हैं। उन पर गुस्सैल होने, लोगों से दूरी बनाने के भी आरोप लगते रहे हैं। लोगों का यहां तक कहना है कि विधायक के संकुचित व्यवहार की वजह से वे उनके पास जाने के पहले कई–कई बार सोचते हैं।
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आरोप और प्रत्यारोप के बीच विधायक का दावा है कि उन्होंने अपने क्षेत्र का चहुंमुखी विकास किया है। सडकें पुल पुलियों के निर्माण के साथ साथ केलो डैम और मेडिकल कालेज की सौगात उनकी बडी उपलब्धि है। दूसरी ओर विपक्ष के नेता इससे इत्तेफाक नहीं रखते। कांग्रेस का तो यहां तक आरोप है कि विधायक ने सिर्फ अखबारों में विज्ञप्तियां छपवाने के अलावा और कोई काम नहीं किया।
कुल मिलाकर रायगढ़ में विपक्ष के पास मुद्दों की कोई कमी नहीं है, जिन्हें लेकर वो आने वाले चुनाव में विधायक को घेरने की रणनीति भी बना रही है। लिहाजा इस बार चुनावी जंग में विधायकजी की जीत की राह इतनी आसान नहीं है।
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रायगढ़ विधानसभा में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां गुटबाजी की शिकार हैं। इसी गुटबाजी का नुकसान बीते नगरीय निकाय चुनाव में दोनों ही दलों को उठाना पडा था और नगर निगम में मतदाताओं ने किन्नर प्रत्याशी को मेयर का ताज पहनाया। लेकिन लगता नहीं कि दोनों दल इससे सबक लेने के मूड में है। यहां दोनों ही पार्टियों में गुटबाजी चरम पर नजर आ रही हैं। जानकारों की मानें तो ये स्थिति दोनों ही दलों के लिए घातक साबित हो सकती है।
रायगढ़ जिले में भारतीय जनता पार्टी शुरू से ही गुटबाजी को लेकर सुर्खियों में रही है, लेकिन अब कांग्रेस भी इससे अछूती नहीं रही। अगर बीजेपी की बात की जाए तो पार्टी यहां पांच धडों में बंटी नजर आती है। पहला गुट है मौजूदा विधायक रोशनलाल अग्रवाल का, दूसरा गुट पूर्व विधायक विजय अग्रवाल का है। तीसरा गुट बीजेपी महामंत्री उमेश अग्रवाल और चौथा गुट पूर्व महामंत्री और प्रदेश कार्यसमिति सदस्य गुरुपाल भल्ला का है। अब जब चुनाव नजदीक है तो पार्टी एकजुट होने की बजाए एक और धडे में बंट गई है जिसमें जिला बीजेपी अध्यक्ष जवाहर नायक, पूर्व अध्यक्ष राजेश शर्मा और केंद्रीय राज्य मंत्री विष्णुदेव साय के समर्थक शामिल हैं। सियासी जानकारों का भी कहना है कि गुटबाजी ही बीजेपी को समय समय पर नुकसान पहुंचाती आई है और नगर निगम में हार भी इसकी बड़ी वजह रही।
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बीजेपी की तरह कांग्रेस का भी कमोबेश यही हाल है। रायगढ़ में कांग्रेस दो धड़ों में बंटी नजर आती है। एक धडा वर्तमान जिला कांग्रेस कमेटी अध्यक्ष जयंत ठेठवार का है तो दूसरा गुट पूर्व अध्यक्ष नगेन्द्र नेगी और पूर्व महापौर जेठूराम मनहर का है। कार्यकर्ताओं को एकता का पाठ पढाने वाली कांग्रेस यहां इस कदर गुटबाजी की शिकार है कि इस बार प्रत्याशी चयन करने में उसके पसीने छूट सकते हैं। कुल मिलाकर बीजेपी-कांग्रेस को अगर रायगढ़ में चुनावी जंग जीतना है तो अंदरूनी गुटबाजी और कलह से पार पाना होगा।
रायगढ़ विधानसभा सीट पर लंबे समय तक कांग्रेस काबिज रही है। इस वजह से इसे कांग्रेस की सुरक्षित सीट माना जाता रहा है। लेकिन पिछले पंद्रह सालों से इस विधानसभा की तस्वीर बदली है और इस सीट पर वोटर प्रत्याशी की छवि देखकर उसे चुनती है लेकिन इस बार यहां पर मुकाबला दिलचस्प हो सकता है।
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सियासत का शोर अब रायगढ़ की शांति को भंग करने लगा है। सियासी पार्टियां और नेता आने वाले चुनाव के मद्देनजर एक्टिव मूड में आ गए हैं। वैसे रायगढ़ हमेशा से ही कांग्रेस का मजबूत गढ़ रहा है। बीजेपी यहां केवल दो बार ही अपना परचम लहरा पाई है।
रायगढ़ के सियासी इतिहास की बात की जाए तो 1952 में यहां से कांग्रेस के बैजनाथ मोदी विधायक चुने गए। 1957 में रामकुमार अग्रवाल ने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता। इसके बाद 1962 के चुनाव में कांग्रेस ने वापसी की और निरंजन लाल शर्मा ने चुनाव जीता। 1967 में रामकुमार अग्रवाल ने एक बार फिर प्रजासोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव जीता, लेकिन 1972 और 1977 का चुनाव उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर जीता। इसके बाद 1980 से 1998 तक कुष्ण कुमार गुप्ता ने कांग्रेस के टिकट पर लगातार पांच चुनाव यहां से जीते। लेकिन राज्य बनने के बाद 2003 में बीजेपी ने कांग्रेस के इस किले में सेंध लगाई और विजय अग्रवाल ने कृष्ण कुमार गुप्ता को मात दी।
2008 में परिसीमन के बाद यहां के सियासी समीकरण बदल गए। सरिया विधानसभा को विलोपित कर रायगढ़ में मिला दिया गया और कांग्रेस ने नए चहरे के रूप में सरिया से दो बार चुनाव जीत चुके शक्राजीत नायक को चुनाव मैदान में उतारा जिन्होंने विजय अग्रवाल को मात देकर एक बार फिर सीट कांग्रेस की झोली में डाल दी। यहां गुटबाजी एक बार फिर बीजेपी की हार की वजह बनी। लेकिन 2013 में ये सीट फिर से बीजेपी के कब्जे में आ गई और बीजेपी प्रत्याशी रोशनलाल अग्रवाल 20 हजार से भी अधिक वोटों से जीत हासिल कर विधायक की कुर्सी पर काबिज हुए।
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इस सीट पर कुछ हद तक जाति समीकरण भी नतीजों को प्रभावित करते हैं …यहां 18 फीसदी एससी और 24 फीसदी एसटी वोटर बड़ी सियासी ताकत हैं। कुल मिलाकर आने वाले चुनाव में रायगढ़ की राजनीति में कई उतार चढ़ाव देखने को मिल सकते हैं और यहां कांटे का मुकाबला होना तय है
रायगढ़ विधानसभा सीट कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए अहम रही है। पिछली बार 20 हजार मतों से मिली ऐतिहासिक जीत के बाद विधायक इस सीट को लेकर काफी उत्साहित है तो वहीं विधायक की कार्यशैली को लेकर चल रहे एंटी इंकमबेंसी को लेकर कांग्रेस इस विश्वास में है कि इस बार पार्टी को इसका लाभ जरुर मिलेगा और ये सीट कांग्रेस के कब्जे में होगी। यही वजह है कि इस बार इस सीट पर दावेदारों की लंबी फेहरिस्त नजर आ रही है।
छत्तीसगढ़ में मिशन 65 प्लस का सपना देख रही भाजपा रायगढ़ विधानसभा सीट को फिर से जीतने की तैयारी में है। वर्तमान विधायक रोशनलाल अग्रवाल दूसरी पारी के लिए तैयारी में जुट गए हैं लेकिन दूसरी तरफ ये भी कयास लगाए जा रहे हैं कि शायद बीजेपी नए उम्मीदवार को मौका दे। दावेदारों की लंबी फेहरिस्त है। जिनमें उमेश अग्रवाल का नाम आगे है। वे कहते हैं, पार्टी अगर मौका देती है तो पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरने का प्रयास करूंगा। तैयारी पूरी है। बीजेपी में सीट के दूसरे दावेदार हैं पूर्व विधायक विजय अग्रवाल। 2008 में मिली शिकस्त के बाद पार्टी ने 2013 में इनका टिकट काट दिया था. लेकिन फिर से तैयार हैं। उनका भी यही कहना है कि पार्टी अगर मौका देती है तो चुनाव जरुर लडेंगे। पिछला कार्यकाल सबने देखा है विकास देखा है। इसका फायदा मिलेगा, तैयारी पूरी है।
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वहीं भाजपा से ही रामदास द्रौपदी फाउंडेशन के संयोजक सुनील रामदास अग्रवाल भी टिकट की दौड़ में शामिल हैं। 2013 के चुनाव में भी नाम सामने आया था। लेकिन इसबार ज्यादा सक्रिय नजर आ रहे हैं. लेकिन अगर 33 फीसदी उड़िया भाषी मतदाताओं पर भी पार्टी की नजर है। ऐसे में ऊपर के उम्मीदवारों की तैयारियां धरी की धरी भी रह सकती हैं।
कांग्रेस में भी दावेदारों की कमी नहीं है। विधायक शक्राजीत नायक जहां अपने बेटे प्रकाश नायक के रुप में अपना उत्तराधिकारी तलाश रहे हैं तो वहीं सामाजिक छवि वाले डा राजू का नाम भी प्रबल दावेदारों में हैं। डा राजू अग्रवाल पूर्व विधायक रामकुमार अग्रवाल के बेटे हैं, जिनका राजनैतिक परिवेश काफी मजबूत रहा है। इसके अलावा समाजसेवी शंकर अग्रवाल भी इस सीट पर अपनी दावेदारी पेश कर रहे हैं।
कांग्रेस से टिकट के दावेदार प्रकाश नायक कहते हैं कि मैं जिला पंचायत सदस्य रहा हूं। पिताजी विधायक थे। क्षेत्र में अच्छी पकड है। पार्टी अगर मौका देती है तो चुनाव जरुर लडूंगा। सारी तैयारियां हैं। मजबूत जनसमर्थन है।
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इसी तरह डा राजू अग्रवालका कहना है कि विकास के मामले में केंद व राज्य सरकार के साथ साथ स्थानीय विधायक भी कमजोर साबित हुए हैं। जनता से उनकी दूरी है, जो कार्य होने चाहिए थे नहीं हो पाए। मुझे मौका मिला तो चुनाव जरुर लडूंगा। जनता कांग्रेस यहां से पहले ही विभाष सिंह को अपना उम्मीदवार बना चुकी है. विभाष अभी से फिल्डिंग में भी लग गए हैं। रायगढ़ में सीट से पहले टिकट की जंग होने वाली है। जितने ज्यादा दावेदार होंगे उतनी ही ज्यादा नाराजगी और गुटबाजी। ऐसे में दोनों बड़ी पार्टियों के लिए इस सीट पर उम्मीदवार तय करना बेहद मुश्किल होगा।
रायगढ़ विधानसभा क्षेत्र में समस्याओं का अंबार है और जनता का कहना है कि नेताजी के व्यवहार की वजह से वे जनता के दिलों में नहीं बस पाए। उनके कामकाज पर उनका व्यवहार भी भारी पड़ा। जिसकी वजह से क्षेत्र में विकास होने के बाद भी जनता नाराज नजर आती है।
वेब डेस्क, IBC24