बिहार के जिलाधिकारियों को दो महीने के अंदर सार्वजनिक मंदिरों, धर्मशालाओं की जानकारी देने का निर्देश

सभी कलेक्टर्स को 2 महीने के अंदर सार्वजनिक मंदिरों, धर्मशालाओं की जानकारी देने का निर्देश.. जानिए किसकी है तैयारी

बिहार के जिलाधिकारियों को दो महीने के अंदर सार्वजनिक मंदिरों, धर्मशालाओं की जानकारी देने का निर्देश

Edited By :   Modified Date:  November 29, 2022 / 07:56 PM IST, Published Date : February 11, 2022/9:40 am IST

पटना, 11 फरवरी (भाषा) बिहार सरकार ने सभी 38 जिलाधिकारियों को अपने-अपने जिलों में पंजीकृत और गैरपंजीकृत सार्वजनिक मंदिरों तथा धर्मशालाओं (रेस्ट हाउस) का विवरण बिहार राज्य धार्मिक न्यास परिषद (बीएसआरटीसी) को दो महीने के भीतर देने का निर्देश दिया है।

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बीएसआरटीएस के अध्यक्ष अखिलेश कुमार जैन ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि सभी 38 जिलों के सभी नौ मंडलों या आयुक्तों से सूची प्राप्त करने के बाद, बीएसआरटीसी सभी गैरपंजीकृत सार्वजनिक मंदिरों और धर्मशालाओं को जल्द से जल्द परिषद के साथ पंजीकृत होने को कहेगा। उन्होंने बताया कि बिहार हिंदू धार्मिक ट्रस्ट अधिनियम, 1950 के अनुसार, राज्य के सभी सार्वजनिक मंदिरों और धर्मशालाओं को बीएसआरटीसी के साथ पंजीकृत होना चाहिए।

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जैन ने कहा, ‘‘ मगध, सारण और कोसी के संभागीय आयुक्तों (डीसी) ने हाल ही में एक बैठक में बीएसआरटीसी को आश्वासन दिया था कि वे दो महीने के भीतर अपने संबंधित संभागों में पंजीकृत तथा गैरपंजीकृत सार्वजनिक मंदिरों और धर्मशालाओं की विस्तृत सूची प्रदान करेंगे।’’

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उन्होंने कहा, ‘‘ बीएसआरटीसी को अन्य संभागीय आयुक्तों से भी यही उम्मीद है। इस संबंध में क्रमशः 11 और 12 फरवरी को दरभंगा और पटना के डीसी के साथ ऑनलाइन बैठक भी की जाएगी।’’ बिहार हिंदू धार्मिक ट्रस्ट अधिनियम, 1950 के अनुसार, पंजीकरण पूरा होने के बाद, सार्वजनिक मंदिर या धर्मशाला की कुल आय का चार प्रतिशत सालाना ट्रस्ट को देना पड़ता है।

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उन्होंने बताया कि राज्य में लगभग 4,500 पंजीकृत सार्वजनिक मंदिर हैं, जिनमें से केवल 250-300 ही बीएसआरटीसी को कर का भुगतान करते हैं। राज्य में लगभग 10,000 पंजीकृत और गैरपंजीकृत सार्वजनिक मंदिर हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ यहां तक कि आवासीय परिसरों में लोगों द्वारा बनाए गए मंदिरों (जो लोगों के लिए खुले हों) को भी परिषद के साथ पंजीकृत करवाना होगा। मंदिर को तभी निजी माना जाएगा, जब केवल उसके मालिक के परिवार के सदस्य उसमें पूजा करते हों।’’