कोरोना के खिलाफ जंग में वैज्ञानिकों को मिली बड़ी सफलता ! वायरस को 99.9% तक खत्म कर सकती है ये तकनीक- रिसर्च

कोरोना के खिलाफ जंग में वैज्ञानिकों को मिली बड़ी सफलता ! वायरस को 99.9% तक खत्म कर सकती है ये तकनीक- रिसर्च

कोरोना के खिलाफ जंग में वैज्ञानिकों को मिली बड़ी सफलता ! वायरस को 99.9% तक खत्म कर सकती है ये तकनीक- रिसर्च
Modified Date: November 29, 2022 / 08:01 pm IST
Published Date: May 18, 2021 8:21 am IST

सिडनी। कोरोना वायरस के कहर के बीच एक अच्छी खबर सामने आई है, जिसमें वैज्ञानिकों ने एक ऐसी थेरेपी विकसित की है, जो 99.9% COVID-19 पार्टिकल्स को मारने में सक्षम है। वैज्ञानिकों का दावा है कि यह खोज कोरोना के खिलाफ जंग में कारगर साबित हो सकती है। ऑस्ट्रेलिया के मेन्जीस हेल्थ इंस्टीट्यूट क्वींसलैंड के अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिकों की टीम ने इस थेरेपी को विकसित किया है। उनका कहना है कि ये तकनीक एक मिसाइल की तरह काम करती है, जो पहले अपने टारगेट को डिटेक्ट करती है फिर उसे नष्ट कर देती है।

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‘डेली मेल’ की रिपोर्ट के मुताबिक, यह नेक्स्ट-जनरेशन टेक्नोलॉजी एक ‘हीट-सीकिंग मिसाइल’ की तरह काम करती है, यह पहले COVID पार्टिकल्स की पहचान करती है और उसके बाद उन पर हमला बोल देती है। शोध में शामिल प्रोफेसर निगेल मैकमिलन ने कहा कि यह अभूतपूर्व ट्रीटमेंट वायरस को प्रतिकृति बनाने से रोकता है और इसकी मदद से कोरोना वायरस से होने वाली मौतों को कम किया जा सकता है।

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प्रोफेसर मैकमिलन ने कहा कि यह एक खोजो और नष्ट करो मिशन है, हम इस थेरेपी की मदद से किसी व्यक्ति के फेफडों में मौजूद वायरस को डिटेक्ट करके उसे नष्ट कर सकते हैं। मैकमिलन के अनुसार, यह थेरेपी जीन-साइलेंसिंग नामक चिकित्सा तकनीक पर आधारित है, जिसे पहली बार 1990 के दशक के दौरान ऑस्ट्रेलिया में खोजा गया था, श्वसन रोग पर हमला करने के लिए जीन-साइलेंसिंग RNA का उपयोग करती है।

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प्रोफेसर ने बताया कि यह एक ऐसी तकनीक है जो RNA के छोटे टुकड़ों के साथ काम करती है, जो विशेष रूप से वायरस के जीनोम से जुड़ सकती है, यह बाइंडिंग जीनोम को आगे काम नहीं करने देती और आखिरकार उसे नष्ट कर देती है, हालांकि, जैनमविर और रेमडेसिविर जैसे अन्य एंटीवायरल उपचार मौजूद हैं, जो कोरोना के लक्षण को कम करते हैं और रोगियों की जल्द ठीक होने में मदद करते हैं, लेकिन ये ट्रीटमेंट सीधे कोरोना वायरस को खत्म करने का काम करता है।

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निगेल मैकमिलन ने कहा कि दवा को ‘नैनोपार्टिकल’ नामक किसी चीज़ में इंजेक्शन के माध्यम से रक्तप्रवाह में पहुंचाया जाता है, ये नैनोपार्टिकल फेफड़ों में जाते हैं और RNA डिलीवर करने वाली कोशिकाओं में मिल जाते हैं, इसके बाद RNA वायरस की तलाश करता है और उसके जीनोम को नष्ट कर देता है, इस वजह से वायरस प्रतिकृति नहीं बना पाता, उन्होंने बताया कि वैज्ञानिक पिछले साल अप्रैल से इस ट्रीटमेंट पर काम कर रहे हैं।


लेखक के बारे में

डॉ.अनिल शुक्ला, 2019 से CG-MP के प्रतिष्ठित न्यूज चैनल IBC24 के डिजिटल ​डिपार्टमेंट में Senior Associate Producer हैं। 2024 में महात्मा गांधी ग्रामोदय विश्वविद्यालय से Journalism and Mass Communication विषय में Ph.D अवॉर्ड हो चुके हैं। महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा से M.Phil और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय, रायपुर से M.sc (EM) में पोस्ट ग्रेजुएशन किया। जहां प्रावीण्य सूची में प्रथम आने के लिए तिब्बती धर्मगुरू दलाई लामा के हाथों गोल्ड मेडल प्राप्त किया। इन्होंने गुरूघासीदास विश्वविद्यालय बिलासपुर से हिंदी साहित्य में एम.ए किया। इनके अलावा PGDJMC और PGDRD एक वर्षीय डिप्लोमा कोर्स भी किया। डॉ.अनिल शुक्ला ने मीडिया एवं जनसंचार से संबंधित दर्जन भर से अधिक कार्यशाला, सेमीनार, मीडिया संगो​ष्ठी में सहभागिता की। इनके तमाम प्रतिष्ठित पत्र पत्रिकाओं में लेख और शोध पत्र प्रकाशित हैं। डॉ.अनिल शुक्ला को रिपोर्टर, एंकर और कंटेट राइटर के बतौर मीडिया के क्षेत्र में काम करने का 15 वर्ष से अधिक का अनुभव है। इस पर मेल आईडी पर संपर्क करें anilshuklamedia@gmail.com