चीन और जापान के बीच तनाव का जल्द समाधान होने की संभावना क्यों नहीं है?

चीन और जापान के बीच तनाव का जल्द समाधान होने की संभावना क्यों नहीं है?

  •  
  • Publish Date - December 12, 2025 / 06:38 PM IST,
    Updated On - December 12, 2025 / 06:38 PM IST

(सेबेस्टियन मास्लो, तोक्यो विश्वविद्यालय)

तोक्यो, 12 दिसंबर (द कन्वरसेशन) चीन और जापान राजनयिक संकटों से निपटने में अनुभवी हैं, फिर भी दोनों पड़ोसी देशों के बीच संबंध एक नए निम्न स्तर पर पहुंच गए हैं। और इस बार, उनका तनाव आसानी से हल होता नहीं दिख रहा है।

इस ताजा संकट के पीछे क्या कारण है और इस तनाव के बढ़ने के पीछे क्या वजह है :

तनाव का मौजूदा दौर सात नवंबर को जापान की प्रधानमंत्री सनाए ताकाइची द्वारा जापानी संसद में की गई टिप्पणियों से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने संकेत दिया था कि ताइवान के खिलाफ सैन्य बल का प्रयोग करने का बीजिंग का कदम जापानी सैन्य हस्तक्षेप को जन्म देगा।

उन्होंने कहा कि चीन द्वारा किया गया ऐसा प्रयास ‘‘सबसे खराब स्थिति’’ के रूप में प्रस्तुत किया जाएगा और यह जापान के लिए ‘‘अस्तित्व के लिए खतरा’’ पैदा करेगा, जिससे ताइवान जलडमरूमध्य में शांति एवं स्थिरता बहाल करने में अपने सामूहिक आत्मरक्षा के जापान के अधिकार को उचित ठहराया जा सकेगा।

कूटनीतिक संकट :

ताइवान 1895 से 1945 तक जापान का उपनिवेश था। बाद में, 1949 में माओ त्से तुंग की कम्युनिस्ट सेनाओं से हार के बाद, ताइवान ने च्यांग काई-शेक के राष्ट्रवादियों को शरण दी।

आज बीजिंग ताइवान को चीन का एक प्रांत मानता है, हालांकि यह कभी भी कम्युनिस्ट शासन के अधीन नहीं रहा। चीन की नीति के विपरीत बयान देना चीन के घरेलू मामलों में हस्तक्षेप माना जाता है, जो बीजिंग के अभिजात वर्ग के लिए एक लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन है।

ताकाइची की टिप्पणियों को तुरंत वापस लेने और माफी मांगने की मांग करते हुए, बीजिंग के राजनयिकों ने उनके खिलाफ वाकयुद्ध छेड़ दिया। जापानी प्रधानमंत्री के पीछे न हटने पर, बीजिंग ने राजनीतिक, आर्थिक और सैन्य दबाव के मिश्रण से जवाबी प्रतिक्रिया दी।

चीन के कम्युनिस्ट नेतृत्व ने अपने नागरिकों को जापान की यात्रा न करने की चेतावनी दी और छात्रों को सुरक्षा संबंधी चिंताओं के चलते अपनी योजनाओं पर पुनर्विचार करने के लिए कहा गया।

जापानी समुद्री भोजन का आयात कम कर दिया गया या रोक दिया गया, जबकि जापानी कलाकारों के संगीत कार्यक्रम और फिल्म प्रदर्शन रद्द कर दिए गए।

चीन के तटरक्षक बल और नौसेना के जहाज भी सेनकाकू द्वीप समूह के जलक्षेत्र से गुजरे, जो जापान द्वारा प्रशासित क्षेत्र है लेकिन चीन इसे दियाओयू द्वीप समूह के रूप में अपना दावा करता है।

व्यापार पर तनाव का असर :

चीन और जापान प्रमुख व्यापारिक साझेदार हैं। इस वर्ष अकेले जापान में आने वाले पर्यटकों में से पांचवां हिस्सा चीन से आया। इसलिए, बीजिंग द्वारा जापान पर लगाए जा रहे कड़े प्रतिबंधों का जापानी अर्थव्यवस्था पर स्पष्ट प्रभाव पड़ेगा।

वर्ष 2000 के दशक की शुरुआत में, जापानी प्रधानमंत्री की यासुकुनी युद्ध स्मारक की यात्रा और जापानी इतिहास की पाठ्यपुस्तकों में संशोधनों ने पूरे चीन में बड़े पैमाने पर जापान विरोधी प्रदर्शनों को जन्म दिया। 2010 में, जापानी अधिकारियों द्वारा एक चीनी कप्तान और उसके चालक दल को गिरफ्तार करने के जवाब में बीजिंग ने जापान को दुर्लभ खनिज निर्यात करना बंद कर दिया।

तनाव दूर करने का कोई रास्ता नजर नहीं आ रहा :

हालांकि, इस बार तनाव कम करना और यथास्थिति बहाल करना इतना आसान नहीं होगा।

ताकाइची ने खुद को एक कट्टर रूढ़िवादी के रूप में पेश किया है, जिन्होंने अपने आदर्श पूर्व प्रधानमंत्री शिंजो आबे की नीतिगत योजनाओं को आगे बढ़ाया है। उन्होंने टोक्यो की रक्षा क्षमताओं को बढ़ाकर तथा अमेरिका के साथ गठबंधन को और मजबूत करके एक ‘‘मजबूत जापान’’ को पुनर्स्थापित करने का संकल्प लिया है।

इस संकट का जल्द समाधान इसलिए भी नजर नहीं आ रहा है क्योंकि राष्ट्रपति शी चिनफिंग के नेतृत्व वाला चीन एक दशक पहले की तुलना में कहीं अधिक शक्तिशाली है, जिससे उसके पास तनाव बढ़ाने के कई विकल्प मौजूद हैं। व्यापार का हथियार के रूप में इस्तेमाल और सैन्य अभ्यासों में वृद्धि, बीजिंग द्वारा अपनाए जाने वाले संभावित हथियार हैं।

(द कन्वरसेशन) शफीक नरेश

नरेश

शफीक