Brother Sister in Live in Relationship: सगे भाई ने शादीशुदा बहन के साथ लिव-इन रिलेशन में रहने के लिए हाईकोर्ट में लगाई याचिका, कहा- जीजा नहीं रखते खुश
Brother Sister in Live in Relationship: सगे भाई ने शादीशुदा बहन के साथ लिव-इन रिलेशन में रहने के लिए हाईकोर्ट में लगाई याचिका, कहा- जीजा नहीं रखते खुश
Sasur Bahu. Image Source: File
- हाईकोर्ट ने भाई और बहन के बीच लिव-इन रिलेशनशिप की याचिका खारिज किया
- हाईकोर्ट ने याचिकाकर्ता पर ₹10,000 का जुर्माना लगाया
- भारत का संविधान किसी अनैतिक कृत्य को पवित्र नहीं करता
जोधपुर: Brother Sister in Live in Relationship सोशल मीडिया के इस युग में रिश्तों की मर्यादा तेजी से खत्म हो रही है। विदेशों में ही नहीं अब भारत में लोग रिश्तों की परवाह किए बिना की करीबियों से संबंध बनाने से परहेज नहीं कर रहे हैं। आए दिन ऐसे मामले भारत के अलग-अलग राज्यों से सामने आ रहा है। ऐसा ही एक मामला रास्थान से सामने आया है, जहां एक शख्स ने अपनी शादीशुदा बहन के साथ लिव-इन रिलेशन में रहने के लिए हाईकोर्ट से अनुमति मांगी है। हालांकि कोर्ट ने भाई की याचिका को खारिज कर दिया है।
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Brother Sister in Live in Relationship दरअसल, एक शख्स ने अपने जीजा और बहन के ससुराल वालों पर शारीरिक और मानसिक क्रूरता का आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। याचिकाकर्ता भाई ने अपनी याचिका में ये भी दावा किया था कि वह अपनी बहन के साथ लिव इन रिलेशनशीप में रह चुका है। जबकि याचिकाकर्ता उसका सगा भाई है।
मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि किसी व्यक्ति को किसी अन्य व्यक्ति से कानूनी रूप से विवाहित महिला संग लिव-इन रिलेशनशिप में रहने का कोई मौलिक अधिकार नहीं है। खासकर तब जब वह महिला उसकी अपनी बहन लगती हो। इसके साथ ही कोर्ट ने जोर देकर कहा कि भारत का संविधान “अनैतिक कृत्य को पवित्र नहीं करता”। अदालत ने कहा कि रिट कोर्ट ऐसे मामले में अपनी असाधारण विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकता, जो समाज में अनैतिकता को ही पवित्र करता हो। हाईकोर्ट ने इस मामले में याचिकाकर्ता पर 10,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया है।
जस्टिस चंद्रशेखर और जस्टिस मदन गोपाल व्यास की बेंच ने कहा कि भले ही बंदी प्रत्यक्षीकरण के मामले में लोकस स्टैंडाई के पारंपरिक सिद्धांत में ढील दी गई हो, लेकिन जो व्यक्ति अपनी विवाहित बहन के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में होने का दावा करता है, वह कभी भी बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर नहीं कर सकता है, जिसमें दावा किया गया हो कि उसकी बहन अपने पति की अवैध हिरासत में है। रिश्ते की कोई कानूनी वैधता नहीं है। मामले की सुनवाई के दौरान बेंच ने पाया कि याचिकाकर्ता और विवाहित महिला के बीच कथित लिव-इन रिलेशनशिप की कोई कानूनी वैधता नहीं है और इसे इंडियन कॉन्ट्रैक्ट ऐक्ट की धारा 23 के प्रावधानों के अनुसार “शुरू से ही अमान्य” माना जाना चाहिए।
हाईकोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि वर्तमान मामला केवल दो वयस्कों के बीच एक साधारण लिव-इन रिलेशनशिप के बारे में नहीं था, बल्कि सगे भाई और बहन के बीच ऐसे रिश्ते के बारे में था। इसे देखते हुए हाईकोर्ट ने माना कि कोई मौलिक अधिकार नहीं है, यहां तक कि अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अधिकार भी नहीं है जो याचिकाकर्ता को इस बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को बनाए रखने के लिए आधार प्रदान कर सके। इसके साथ ही हाईकोर्ट ने कहा याचिकाकर्ता पर 10 हजार रुपये जुर्माना लगाते हुए याचिका खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि जुर्माने की राशि जमा नहीं कराने पर उसके खिलाफ अवमानना का मामला दर्ज किया जाएगा।

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