बेटी पैदा हुई तो अस्पताल की फीस नहीं लेते ये डॉक्टर, 11 साल में 2,400 कन्याओं का करवा चुके हैं प्रसव

उन्होंने पिछले 11 साल में करीब 2,400 कन्याओं के जन्म पर उनके माता-पिता और रिश्तेदारों से शुल्क नहीं लिया! Ganesh Rakh

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  • Publish Date - November 6, 2022 / 01:06 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:54 PM IST

pregnant girl and newborn dies.

पुणे:  पुणे के एक चिकित्सक ने कन्या शिशु को बचाने के लिए एक अभियान शुरू किया है, जिसके तहत वह अपने अस्पताल में बच्ची के जन्म पर न केवल शुल्क माफ करते हैं, बल्कि यह भी सुनिश्चित करते हैं कि नवजात का गर्मजोशी से स्वागत हो। महाराष्ट्र के हड़पसर इलाके में एक प्रसूति-सह-मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल चलाने वाले डॉ गणेश राख अपनी ‘बेटी बचाओ जन आंदोलन’ पहल के तहत कन्या भ्रूण हत्या और शिशु हत्या के खिलाफ जागरूकता पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। उनका दावा है कि उन्होंने पिछले 11 साल में करीब 2,400 कन्याओं के जन्म पर उनके माता-पिता और रिश्तेदारों से शुल्क नहीं लिया।

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डॉ. राख ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा कि उन्होंने 2012 में अपने मेडिकेयर अस्पताल में यह पहल शुरू की थी, जो अब विभिन्न राज्यों और कुछ अफ्रीकी देशों में फैल गई है। डॉ. राख ने एक कन्या शिशु को अपनी गोद में लिए कहा, ‘‘अस्पताल के शुरुआती वर्षों में 2012 से पहले हमें यहां अलग-अलग अनुभव मिले, जहां कुछ मामलों में लड़की के पैदा होने पर परिवार के सदस्य उसे देखने आने से कतराते दिखे। उस दृश्य ने मुझे झकझोर कर रख दिया और इसने मुझे कन्या शिशु को बचाने और लैंगिक समानता के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित किया।’’

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उन्होंने कहा कि लड़का पैदा होने पर कुछ परिवार खुशी-खुशी अस्पताल आते हैं और बिल का भुगतान करते हैं, लेकिन शिशु के लड़की होने पर कुछ मामलों में उदासीन रवैया देखने को मिलता है। उन्होंने कहा, ‘‘हमने लड़की पैदा होने पर पूरा चिकित्सा शुल्क माफ करने का फैसला किया और बाद में इस पहल को ‘बेटी बचाओ जन आंदोलन’ का नाम दिया। हमने ​​पिछले 11 वर्ष में 2,400 से अधिक बालिकाओं के जन्म पर कोई शुल्क नहीं लिया है।’’

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डॉ. राख ने कहा कि एक सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में कन्या भ्रूण हत्या के छह करोड़ से अधिक मामले सामने आए हैं। उन्होंने दावा किया कि यह एक तरह का ‘‘नरसंहार’’ है। कन्या भ्रूण हत्या का कारण लोगों का बेटे को तरजीह देना है। उन्होंने कहा कि यह किसी एक क्षेत्र, राज्य या किसी देश तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक वैश्विक सामाजिक मुद्दा है।

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डॉ राख ने कहा, ‘‘हमारे सर्वेक्षण के अनुसार, हाल में कन्या भ्रूण हत्या के मामलों में उल्लेखनीय गिरावट आई है और यह एक सकारात्मक निष्कर्ष है।’’ उसी अस्पताल में कार्यरत डॉक्टर शिवदीप उंद्रे ने कहा कि अभियान के तहत वे देश के विभिन्न राज्यों में पहुंच रहे हैं और लैंगिक जागरूकता कार्यक्रम चला रहे हैं। वसीम पठान, जो पिछले महीने जुड़वां बच्चों (एक लड़का और एक लड़की) के पिता बने ने कहा कि जिस तरह से अस्पताल के कर्मचारियों ने उनके बच्चों के जन्म का स्वागत किया, उससे वह अभिभूत हैं।

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पठान ने कहा कि अस्पताल ने अपनी नीति के अनुसार बच्ची के जन्म में लगने वाला शुल्क माफ कर दिया और उनकी पत्नी को अस्पताल से छुट्टी मिलने पर एक छोटे से उत्सव का आयोजन किया गया। उन्होंने कहा, ‘‘अस्पताल ने लॉबी को फूलों और गुब्बारों से सजाया, केक काटा, बच्ची के समर्थन में नारे लगाए और जब हम अस्पताल से निकल रहे थे तो मेरे जुड़वा बच्चों पर फूल बरसाए गए।’’ अस्पताल में अभियान से जुड़े लालसाहेब गायकवाड़ ने कहा कि अस्पताल से छुट्टी के समय इस तरह के उत्सव के पीछे का उद्देश्य कन्या शिशु के जन्म पर माता-पिता को गर्व महसूस कराना और इसे एक विशेष आयोजन बनाना है।

 

 

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