(Auto News, Image Source: Toyota & Suzuki)
नई दिल्ली: Auto: टोयोटा, होंडा और सुजुकी जैसी जापानी कार कंपनियां अब चीन पर अपनी निर्भरता घटाकर भारत में भारी निवेश करने जा रही हैं। तीनों कंपनियां मिलकर भारत में लगभग 11 अरब डॉलर (करीब 90,000 करोड़ रुपये) निवेश करेंगी। इससे यह स्पष्ट होता है कि जापान अब भारत को वैश्विक मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में देख रहा है।
टोयोटा, दुनिया की सबसे बड़ी कार निर्माता कंपनी, और सुजुकी, जो भारत में करीब 40% बाजार हिस्सेदारी रखती है, दोनों ने निवेश की घोषणा की है। टोयोटा अपने दक्षिण भारत प्लांट की क्षमता बढ़ाकर सालाना 1 लाख अतिरिक्त गाड़ियां बनाएगी और महाराष्ट्र में नया प्लांट स्थापित करेगी।
सुजुकी अपने मारुति यूनिट के जरिए 8 अरब डॉलर (67,000 करोड़ रुपये) का निवेश कर उत्पादन क्षमता 2.5 मिलियन से बढ़ाकर 4 मिलियन कार प्रति वर्ष करेगी। सुजुकी अध्यक्ष तोशिहिरो सुजुकी का कहना है कि भारत को कंपनी का ग्लोबल प्रोडक्शन हब बनाया जाएगा और निर्यात बढ़ाया जाएगा।
होंडा ने भी भारत को अपनी ईवी (इलेक्ट्रिक वाहन) रणनीति का केंद्र बनाया है। कंपनी 2027 से भारत में ‘जीरो सीरीज’ इलेक्ट्रिक कारें निर्मित करके जापान और अन्य एशियाई देशों में निर्यात करेगी। होंडा के सीईओ तोशिहिरो मिबे ने कहा कि अमेरिका के बाद भारत कंपनी के लिए दूसरा सबसे महत्वपूर्ण बाजार बन गया है।
जापानी कंपनियां अब चीन में मुनाफा कम होने और कीमतों की कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण भारत पर ध्यान दे रही हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि भारत चीन की तुलना में बेहतर विकल्प है, क्योंकि यहां BYD जैसी चीनी प्रतिस्पर्धा नहीं है।
2021 से 2024 के बीच जापान का भारत में निवेश सात गुना बढ़कर 294 अरब येन (करीब 16,000 करोड़ रुपये) हो गया, जबकि चीन में यह निवेश 83% घटकर 46 अरब येन रह गया।
भारत की 8% औसत जीडीपी वृद्धि और प्रधानमंत्री मोदी की ‘मेक इन इंडिया’ नीति ने विदेशी निवेशकों को आकर्षित किया है। चीनी कंपनियों पर कुछ निवेश प्रतिबंध जापानी कंपनियों के लिए अवसर साबित हुए हैं। एसएंडपी ग्लोबल मोबिलिटी के गौरव वंगाल के अनुसार, भारत की नीति जापानी कंपनियों को स्थानीय प्रतिस्पर्धा से भी मजबूत स्थिति देती है।
घरेलू कंपनियां टाटा मोटर्स और महिंद्रा एंड महिंद्रा तेजी से एसयूवी सेगमेंट में बढ़ रही हैं और सुजुकी के बाजार हिस्सेदारी को चुनौती दे रही हैं। महामारी से पहले सुजुकी का भारत में पैसेंजर कार मार्केट शेयर लगभग 50% था, जो अब घटकर 40% के आसपास रह गया है।
जापानी कार कंपनियों का भारत की ओर झुकाव केवल कारोबारी फैसला नहीं है, बल्कि यह वैश्विक सप्लाई चेन के पुनर्गठन की शुरुआत है। भारत अब केवल एक बड़ा बाजार नहीं रह गया, बल्कि आने वाले दशक में यह जापान का सबसे महत्वपूर्ण ऑटो मैन्युफैक्चरिंग सेंटर बनने की दिशा में बढ़ रहा है।