बतंगड़ः क्या मोदी की ‘गारंटी’ बनेगी जीत की गारंटी

मोदी ने घोटालों को परिवारवाद से जोड़कर विपक्षी दलों की दोनों कमजोर नसों को एक साथ दबा दिया है। मोदी ने देशवासियों को च्वाइस दी कि अगर वे इन घोटालेबाज दलों के नेताओं की औलादों का भला चाहते हैं तो वे उन दलों को वोट दे दें लेकिन अगर वो अपनी औलादों की भलाई चाहते हैं तो भाजपा को वोट दें।

Will Modi's 'guarantee' become a guarantee of victory?

Modified Date: June 28, 2023 / 06:41 PM IST
Published Date: June 28, 2023 6:37 pm IST

 

सौरभ तिवारीडिप्टी एडिटर, IBC24

सौरभ तिवारी, डिप्टी एडिटर, IBC24

फार्मूला फिल्मों में हीरो और विलेन के बीच की जद्दोजहद में एक सीन बड़ा आम रहता है जब शिकस्त देने के लिए दोनों एक दूसरे की कमजोरी का पता लगाकर उसके जरिए नकेल कसने की रणनीति पर काम करते हैं। कूटनीति शास्त्र में भी शत्रु पक्ष पर विजय प्राप्ति के लिए उसकी कमजोरी का पता लगाकर उस पर वार करने की नीति बताई गई है। (Will Modi’s ‘guarantee’ become a guarantee of victory?) आम बोलचाल की भाषा में इसे कमजोर नस दबाना कहते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी अपने शत्रु पक्ष की कमजोर नस को दबा दिया है। ये नस है भ्रष्टाचार और परिवारवाद की। भोपाल में हुए ‘अपना बूथ-सबसे मजबूत’ कार्यक्रम को संबोधित करते हुए उन्होंने जिस तेवर के साथ विपक्षी दलों के गठबंधन पर हमला बोला उससे साफ जाहिर हो गया कि वो इस हथियार को एक बार फिर आजमाने के लिए चुनावी महासमर में निकल पड़े हैं।

वैसे देखा जाए तो मोदी की छवि ही उनका सबसे बड़ा हथियार है। गुजरात के मुख्यमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री बनने तक वे अपनी इस छवि को समयानुरूप परिमार्जित करते रहे हैं। मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में उनकी छवि एक मुस्लिम विरोधी हिंदुत्ववादी नेता के अलावा एक कुशल प्रशासक और ईमानदार नेता की थी। एक ऐसा हिंदुत्ववादी नेता जिसे मुस्लिम टोपी तक पहनना गवारा नहीं था। उन्होंने गुजरात को हिंदुत्व की प्रयोगशाला के साथ ही विकास के मॉडल के तौर पर स्थापित किया। इस लोकप्रिय छवि के साथ उन्होंने प्रधानमंत्री पद के घोषित उम्मीदवार के तौर पर 2014 में लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान की कमान संभाली और पूर्ण बहुमत के साथ अपनी सरकार बनाई। सत्ता संभालने के तीन महीने बाद 12 अगस्त को वे जम्मू-कश्मीर के दौरे पर पहुंचे जहां कारगिल में हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के उद्धाटन अवसर पर उन्होंने एक ऐसी बात कही जिसने ब्रांड मोदी को और चमकदार बना दिया। मोदी ने भ्रष्टाचारियों को आगाह करते हुए कहा, ‘ना खाऊंगा, ना खाने दूंगा’।

ये सत्ता संभालने के तुरंत बाद की बात थी। बाद में उन्होंने खुद को भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे बड़े योद्धा के रूप में स्थापित करने के लिए कार्रवाइयों का सिलसिला शुरू किया। बड़ी सियासी हस्तियों के खिलाफ की जा रही इन कार्रवाइयों को उन्होंने अपनी भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम से जोड़ा। मोदी ने खुद को ‘चौकीदार’ बताया और लोगों को भरोसा दिलाया कि वे देश के खजाने पर किसी भ्रष्टाचारी का पंजा नहीं पड़ने देंगे। विपक्ष ने मोदी की इस छवि पर सवाल उठाने का हर मुमकिन मौका तलाशा। भारतीय सीमा पर चीन की घुसपैठ को चौकीदारी की नाकामी से जोड़ा गया। कांग्रेस ने विजय माल्या, ललित मोदी, नीरव मोदी और मेहुल चौकसी जैसे भ्रष्टाचारियों के देश से फरार हो जाने पर भी चौकीदारी की चौकसी पर सवाल उठाया। राफेल सौदे में कथित दलाली का आरोप लगाते हुए राहुल गांधी ने तो चौकीदार को ही ‘चोर’ ठहरा दिया। 2019 लोकसभा चुनाव प्रचार अभियान के दौरान राहुल गांधी अपनी सभाओं में ‘चौकीदार चोर है’ का नारा लगवाने लगे। ‘मौत का सौदागर’ और ‘चायवाला’ के बाद कांग्रेस की ओर से मोदी को दी गई ये नई उपमा थी जिसे मोदी ने एक बार फिर अपनी सत्ता प्राप्ति का हथियार बना लिया। ‘चौकीदार चोर है’ के खिलाफ प्रधानमंत्री मोदी ने ‘मैं भी चौकीदार’ अभियान छेड़ दिया। मोदी की छवि को बिगाड़ने की ये कोशिश भी आत्मघाती साबित हुई। देशवासियों ने और बड़ी ताकत के साथ मोदी को देश की चौकीदारी सौंप दी।

अब एक बार फिर देश चुनाव के मुहाने पर खड़ा है। लेकिन इस बार विपक्षी दलों की संभावित एकजुटता के मद्देनजर राजनीतिक परिस्थितियां प्रधानमंत्री मोदी के लिए उतनी सहज नहीं है। अगर विपक्ष भाजपा के खिलाफ अपना संयुक्त उम्मीदवार उतारने की सहमति बनाने में सफल हो गया तो इस बार चुनाव मोदी वर्सेस ऑल होना तय है। हालांकि प्रधानमंत्री मोदी को इस संभावित परिस्थिति की चुनौती का पूर्वअंदाजा था। संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा के दौरान वे विपक्षी दलों को ‘एक अकेला सब पर भारी’ पड़ने की हुंकार भरते हुए मुकाबला करने के लिए ललकार चुके हैं। मोदी के नेतृत्व में भाजपा अपनी तिकड़ी लगाने के लिए भले आश्वस्त नजर आ रही है, लेकिन सब कुछ इस बात पर निर्भर करेगा कि एक अकेले के खिलाफ भारी पड़ने के लिए बाकी सब कितना एकजुट रह पाते हैं।

विपक्षी एकजुटता की स्थिति में वोटों के विभाजन का लाभ नहीं उठा पाने के खतरे के अलावा विपक्षी दलों की ‘गारंटियां’ भी मोदी की राह में बड़ी बाधा बन सकती हैं। इसका प्रमाण पिछले माहों में हुए तमाम चुनाव में मिल भी चुका है। हाल ही में कर्नाटक विधानसभा की जीत में कांग्रेस की मतदाताओं से की गई मुफ्त बिजली, यात्रा, चावल जैसी पांच गारंटियों ने अहम भूमिका निभाई थीं। इससे पहले हिमाचल में भी कांग्रेस अपनी फ्री स्कीम से भाजपा को सत्ता से बेदखल कर चुकी है। (Will Modi’s ‘guarantee’ become a guarantee of victory?) टैक्सपेयर के पैसे से मतदाताओं को चुनावी रिश्वत के तौर पर बांटी जा रही रेबड़ियों को भले अर्थव्यवस्था के लिए घातक माना जाता है, लेकिन ये मुफ्तखोरी मौजूदा राजनीति की अनिवार्य बुराई बन चुकी है। इस मुफ्तखोरी को जीत की गारंटी बनाने का श्रेय आम आदमी पार्टी को जाता है। रेबड़ी मॉडल के जरिए दिल्ली और पंजाब में सत्ता हासिल करने के बाद आप ने बाकी दलों को भी गारंटी देने के लिए मजबूर कर दिया।

भाजपा के अखिल भारतीय विस्तार को सिकोड़ने में बाकी सियासी फैक्टर के अलावा इन गारंटियों की अहम भूमिका रही है। 2018 में देश के 21 राज्य और 71% आबादी पर शासन करने वाली बीजेपी अब 15 राज्यों में सिमट चुकी है। इसमें से भी अपने बूते पर वो महज 9 प्रदेशों में सत्तासीन है जबकि बाकी 6 प्रदेशों में वो गठबंधन साथियों के साथ सरकार चला रही है। कर्नाटक की हालिया हार के बाद अब भाजपा दक्षिण विहीन हो चुकी है।

यानी भाजपा को भी पता है कि अगला चुनाव इतना आसान नहीं है। भविष्य में पेश आने वाली विपक्षी एकजुटता और उसकी गारंटियों की चुनौती से निबटने के लिए मोदी ने शत्रु पक्ष की कमजोरी पर हमला करने की रणनीति पर अमल शुरू कर दिया है। भ्रष्टाचार और वंशवाद विपक्ष की वो कमजोर नस है जिसे दबा कर मोदी ने विपक्ष को असहज कर दिया है। भोपाल में हुए बूथ प्रभारियों के सम्मेलन में मोदी ने अपने इसी हथियार को चलाया है। प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्षी दलों की मुफ्त योजनाओं की ‘गारंटियों’ पर तंज कसते हुए इसे घोटालों की गारंटी निरूपित किया। प्रधानमंत्री मोदी ने घोटाले की गारंटियों की एवज में देसवासियों को अपनी भी एक गारंटी दी है। ये गारंटी है घोटालेबाजों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने के लिए उनके खिलाफ चल रही कार्रवाई को जारी रखने की।

मोदी ने घोटालों को परिवारवाद से जोड़कर विपक्षी दलों की दोनों कमजोर नसों को एक साथ दबा दिया है। मोदी ने देशवासियों च्वाइस दी कि अगर वे इन घोटालेबाज दलों के नेताओं की औलादों का भला चाहते हैं तो वे उन दलों को वोट दे दें लेकिन अगर वो अपनी औलादों की भलाई चाहते हैं तो भाजपा को वोट दें। संदेश साफ है कि मोदी अपने इस आह्वान के जरिए अपने उस चुनावी एजेंडे को सेट कर रहे थे, जिसकी पृष्ठभूमि उन्होंने काफी पहले से तैयार करनी शुरू कर दी थी। याद करिए पिछले स्वतंत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से देशवासियों को दिए गए उनके भाषण को। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने उद्बोधन में भ्रष्टाचार और परिवारवाद के खिलाफ निर्णायक लड़ाई छेड़ने का आह्वान करते हुए देशवासियों का साथ मांगा था।

भ्रष्टाचार और वंशवाद के खात्मे की दी गई प्रधानमंत्री मोदी की ये ‘गारंटी’ भाजपा की चुनावी जीत की कितनी गारंटी बन पाती है, इसका पता तो नतीजे आने पर ही हो सकेगा। फिलहाल विपक्ष ने मोदी की गारंटी को उसकी एकता से उपजी घबराहट बताया है। विपक्ष मोदी की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम को सलेक्टिव बताकर इसे विपक्ष के खिलाफ आजमाया जा रहा राजनीतिक हथियार भी बताता रहा है। विपक्ष का आरोप है कि जांच एजेंसियों का इस्तेमाल विरोधियों को दबाने और उन्हें अपने पाले में लाने के लिए किया जा रहा है। विपक्ष तो तंज भी कसती है कि भाजपा की वाशिंग मशीन में धुलकर सबके दाग साफ हो जाते हैं। (Will Modi’s ‘guarantee’ become a guarantee of victory?) आरोपों की सच्चाई से इंकार किया भी नहीं जा सकता। लेकिन इंकार इस बात से भी नहीं किया जा सकता कि आम लोगों को केवल मतलब भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई होने से है। आम आदमी तो यही चाहता है सियासी बदले की भावना से ही सही, भ्रष्टाचार के खिलाफ ये कार्रवाइयां थमनी नहीं चाहिए। आज भाजपा छापे मारकर घोटालेबाजों पर शिकंजा कस रही है, तो कल विपक्ष को मौका मिले तो उसे भी जांच एजेंसियों के इस्तेमाल से गुरेज नहीं करना चाहिए

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