NindakNiyre: 25 दिसंबर सोल विक्टस यानी अजेय सूर्य का पर्व कैसे बन गया ईसा मसीह का जन्मदिन, दुनिया का पहला धर्मांतरण

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  • Publish Date - December 25, 2025 / 10:12 PM IST,
    Updated On - December 25, 2025 / 10:13 PM IST

बरुण सखाजी श्रीवास्तव, राजनीतिक विश्लेषक

 

दुनिया 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म मानती है। भारत मे जैसे विक्रमादित्य के नाम से विक्रम संबंत 2082 माना जाता है वैसे ही दुनिया 2025 को ईसा मसीह से जोड़ती है। लेकिन यह पूरा सच नहीं है। दरअसल 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्म हुआ ही नहीं था। जितने भी ऐतिहासिक तथ्य दुनिया के सामने हैं उनमें 25 दिसंबर का जन्म का उल्लेख नहीं है। बाइबल में भी जन्म की तारीख और वर्ष को लेकर नहीं लिखा गया। ऐसे में 25 दिसंबर को इतना बड़ा त्योहार कैसे बनाया गया, आइए समझते हैं।

 

ऐसे तय हुआ जन्म वर्ष

 

ईसा मसीह के जन्म को लेकर मान्यता है कि वे 4-5 ईसापूर्व में पैदा हुए थे। जूलियस सीजर ने 46 ईसापूर्व में जूलियन कैलेंडर लागू किया था। बताया जाता है जब यीशू का जन्म हुआ उस वक्त राजा हेरोद का राज था। जूलियन कैलेंडर के मुताबिक राजा हेरोद की मौत ईसवी सन से लगभग 4-5 ईसापूर्व में हो गई थी। ऐसे में यीशू की जन्म तारीख तय हो पाना संभव नहीं था। इसलिए माना गया यीशू लगभग 4 से 5 वर्ष पहले पैदा हुए थे।

 

ऐसे तय हुई जन्म तारीख

 

क्रिसमस असल में क्रिसमस नहीं है। चौथी सदी में रोमन में जब ईसाई मिशनरियों ने अपने धर्म का विस्तार किया तब यहां सोल इनविक्टस यानी अजेय सूर्य पर्व मनाया जाता था। 25 दिसंबर को मनाया जाने वाला त्योहार प्रकाश का प्रतीक था। इस दिन से दिन बड़े होने लगते हैं और रात अधिकतम लंबी हो चुकी होती है। इसलिए ईसाई धर्म प्रचारकों के संगठन ने तय किया, ईसा मसीह का जन्म 25 दिसंबर को मनाया जाएगा। इसके पीछे प्रयास था कि दुनिया प्रकाश के प्रतीक के रूप में यीशू को पूजे। चौथी सदी 363 ईसवी में पहली बार 25 दिसंबर को रोम साम्राज्य ने यीशू की जन्म तारीख तय की।

 

6 जनवरी को भी मानते हैं यीशू का जन्म

 

यीशू का जन्म 6 जनवरी को भी माना गया है। यह जन्म न होकर एपिफैनी है। यानी तीन महापुरुषों का प्राकट्य दिवस। चौथी सदी से पहले इसे 6 जनवरी को ही मनाया जाता था। रोम साम्राज्य ने चौथी सदी में ईसाई धर्म को मान्यता दी। यीशू का जन्म ऑर्थोडॉक्स चर्च रोमन कैलेंडर के हिसाब से 7 जनवरी को भी मनाया जाता है।

 

1582 में पता चला वर्ष गणना गलत हो रही है

 

पोप को 1582 में पता चला वर्ष गणना गलत हो रही है। सनातन में हर तीन साढ़े तीन वर्ष में कुछ घंटे मिलाकर एक मल मास या पुरुषोत्तम मास आदिकाल से निकलता रहा है। इस गणना का प्रमाण पश्चिम को 16वीं सदी में मिला, जब तक तुलसीदास हनुमान चालीसा में सूर्य और पृथ्वी की दूरी का निर्धारण तक कर चुके थे। पोप ग्रेगरी ने 1582 में ग्रेगोरियन कैलेंडर जारी किया। इसमें साल में 365 दिन और हर चौथे साल एक लीप ईयर होगा, जिसमें 366 दिन होंगे।

 

अब सुनिए धर्मांतरण का सिलसिला

 

रोमन साम्राज्य ने धर्म बदला। 25 दिसंबर को हिंदुओं की तरह सूर्य आधारित कैलेंडर से चलने वाला यह समाज एक दिन ईसाई बन गया। करीब 340 सालों तक ईसा मसीह को लेकर भ्रांतियां, भ्रम बने रहे। जूलियस सीजर काल के हेरोद राजा तक किसी ने भी धर्म नहीं बदला। हालांकि ऐतिहासिक तथ्यों को ऐसे पेश किया गया है जैसे जूलियस सीजर ईसाई थे। धर्मांतरण की यह परंपरा अब भी चली आ रही है। 1700 सालों में ईसाई धर्मगुरुओं ने पूरी दुनिया को उसके ही स्थानीयत्व को भंग करके ईसाई बनाया है। जैसे कि रोमन साम्राज्य जो सूर्य आधारित कैलेंडर मानकर 25 दिसंबर को अपना सोल विक्टस यानि अजेय सूर्य दिवस मनाता था वह ईसा मसीह का जन्मदिन बना दिया गया है। इस तरीके ने दुनिया में सांस्कृतिक संक्रमण फैलाया। यही वजह है कि आज भी बस्तर, सरगुजा समेत झारखंड ओडिशा और दक्षिणी, उत्तरपूर्वी भारतीय राज्यों में सॉफ्ट कन्वर्जन होता गया। पता तब चलता है जब संख्या असीम हो जाती है।

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