Open Window Special Political Story क्यों हंगामा है बरपा, क्यों लगी है देश में आग, क्या गलती कर बैठे कठोर कदम वाले मोदी, क्या इतनी खराब है अग्निपथ!

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  • Publish Date - June 17, 2022 / 05:34 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:46 PM IST

Barun Sakhajee
Asso. Executive Editor, IBC24

बरुण सखाजी

अग्निपथ से उपजे देश के माहौल में बहुत कुछ ऐसा है जिसे समझने और समझाने की बड़ी जरूरत है। सबसे पहले इसे लेकर विरोधियों और सरकार के बीच के संवादहीन माहौल को जरूर देखना चाहिए। सरकार को चाहिए था कि इसकी पहले अच्छी आमराय बनवाई जानी चाहिए थी। क्योंकि देश में आंतरिक हालात ऐसे नहीं हैं कि कोई भी कड़े और बड़े कदम आसानी से उठा लिए जाएं। जब बैलेट बॉक्स की दुहाई देने वाले ही इससे निकले नतीजों को दरकिनार कर मनमानी और हठधर्मिता पर उतारू हो जाएं तो काम मुश्किल होता है। सरकार यह बात बहुत अच्छी तरह से जानती और मानती है। बावजूद इसके अग्निपथ को लेकर आना दूसरे उद्देश्यों की तरफ भी इशारा नजर आता है।

क्या मोदी सरकार गृहयुद्ध से निपटने की रणनीति पर है

यह कहते हुए संकोच करना चाहिए, लेकिन समीक्षा के एक प्वाइंट में इसे रखना जरूरी है। बेशक मोदी सरकार यह नहीं मानेगी कि देश गृहयुद्ध की ओर बढ़ रहा है, लेकिन महीनता से देखें तो एक वर्ग ऐसा जरूर खड़ा हो गया है जो मोदी को गलत सिद्ध करने के लिए हर हथियार को आजमाना चाहता है। इसी आजमाइश में देश की परवाह उसे नहीं है। ऐसा नहीं कि वह वर्ग सिर्फ भारत में है। तारीख में दर्ज है वह वर्ग कइयों देशों में रहा और अंततः जमीन हथियाता रहा है। देश बनाता रहा है। असहिष्णुता, दुष्प्रचार, बेरोजगारी, कृषि बिल, नूपुर शर्मा, सीएए, कश्मीर स्पेशल स्टेटस, असहिष्णुता, हिजाब, दिल्ली दंगे, रफेल, चीन डोकलाम, चीन-भारत सीमा विवाद, तवांग, ग्रुप-डी भर्ती, हिंदी-तमिल, भीमा-कोरेगांव, पालघर, कंगना रनौत जैसे अनेक हथियारों के इस्तेमाल के बाद अब हठ का हथियार ही बचा है। ऐसा हठ कि अब मैं न सुनूंगा न सुनने दूंगा और न इंतजार करूंगा और न इंतजार करने दूंगा। ये सारे लक्षण असहमति के नहीं बल्कि विद्रोह के हैं। गृहयद्ध के हालातों की गवाही देते ये हालात साफ नजर आते हैं। दुनिया के किसी भी गृहयुद्ध को तभी नियंत्रित किया जा सकता है, जब आपके पास पर्याप्त बल हो। बल की मौंजूदगी में ही वार्ता की टेबल तैयार की जा सकती है। अन्यथा तो तालिबान जैसी शक्तियां ताकतवर होती जाती हैं।

क्या ईडी की राहुल गांधी से पूछताछ को डायवर्ट करने की मंशा?

अग्निपथ की लॉन्चिंग टाइमिंग ऐसी है जब राहुल गांधी से ईडी घंटों पूछताछ कर रही है। ऐसे में यह मामला राजनीतिक तूल ले रहा है। मामला ऐसा है कि संभवतः अभियुक्त को एजेंसी गिरफ्तार करे। चूंकि जमानत बारंबार नहीं हो सकती। ऐसे में कोई सहानुभूति की लहर न पैदा हो जाए, इससे बचने इसे बिना तैयारी के ही लॉन्च कर दिया गया हो।

क्या सरकार सैन्य ट्रेनिंग जरूरी करने की मंशा रखती है

दुनिया के परिवेश को देखें तो सैन्यबल और कुशलता भारत जैसे बड़े, विविध, मतांतर वाले देश में आवश्यक है। चमेली, गुलाब, गेंदा का बाग कहकर इस बिखराव को एकल सूत्र में नहीं बांधा जा सकता। अंततः बिखराव है और वह बिखरकर रहेगा। इसे बांधे और साधे रखने के लिए कांग्रेस वाला मध्यमार्ग भी काम नहीं आने वाला, जिसमें वह लगातार तुष्टिकरण की पैरोकार होते-होते अपनी जीत का इसी बिखराव को सालों तक महामंत्र बना बैठी। अब इन्हें साधे और बांधे रखने के लिए सिर्फ और सिर्फ सैन्य, सांस्कृतिक, पूजा पद्धति, समावेशी विचार, शिक्षा, मानव मात्र की समरसता, टेक्नॉलॉजी आदि ही रास्ते बचे हुए हैं। इसलिए भारत जैसे बड़े देश के हर नागरिक को सैन्य ट्रेनिंग जरूरी है। विचार हिंसक लग सकता है, लेकिन इतिहास गवाह है, जब-जब भारत के राजा विलासता में लीन हुए हैं तब-तब बाहरी आक्रांताओं ने इन्हें नेस्तनाबूद किया है। सैन्यबल को लाइबिलिटी नहीं रक्षा का जरूरी उपकरण मानना चाहीए। अबकी भारत अगर टूटा तो फिर संभल न सकेगा।

ये ऐसे बिंदु हैं जिनपर कसकर इस मसले को समझा जाना चाहिए। सरकार की तैयारियों का भी इस बात से अंदाजा लगता है कि वे क्योंकर इतनी जल्दबाजी में नजर आ रहे हैं। बड़े और कड़े कदम अच्छी बात है, लेकिन इनके फायदों पर लोगों का ध्यान पहले आकर्षित करवाना चाहिए था। 4 वर्ष के सैनिक का अर्थ सिवाय सैन्य ट्रेनिंग जरूरी की ओर उठे कदम से अधिक कुछ और नहीं। यह भी संभाव था कि नॉर्मल भर्ती के साथ-साथ इसका विकल्प दिया गया होता।