सिर्फ ब्रिटिश मैड होने के कारण इसे खत्म कर दिया जाए यह कहना निरा जज्बाती होगा। चूंकि भारत के प्रशासनिक सिस्टम में ऐसी हजारों चीजें हैं, जो ब्रिटिश की देन हैं। चूंकि तकनीकी तौर पर देखें तो यह धारा मौलिक रूप से भले ही सरकारों को डिफेंस वॉल देती है, लेकिन न्यायिक हस्तक्षेप के बाद इसमें यह स्थितियां जरूर जोड़ दी गईं कि जब तक साबित न हो कि किसी गतिविधि से हिंसा भड़क सकती है तब यह धारा लागू नहीं की जा सकती।
राजद्रोह कानून स्क्रैप होगा या बदलेगा स्वरूप ! … जानिए सब कुछ
राजद्रोह की धारा 124-ए मूल रूप से सरकार के विरुद्ध आलोचना को भी राजद्रोह मानती है। हालांकि इसे समय-समय पर न्यायिक संस्थाओं ने परिभाषित करने की बात कही है। 1870 में आई इस धारा का उस वक्त मकसद ब्रिटिश रूल के विरुद्ध उठ रही आवाजों को नियंत्रित करना था।
Sedition law will be redefined
बरुण सखाजी
Sedition law will be redefined: सुप्रीम कोर्ट की धारा124-ए पर दी गई व्यवस्था के बाद से ही इस धारा को लेकर अलग-अलग मत सामने आ रहे हैं। सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि राजद्रोह सिर्फ इसलिए खराब नहीं हो जाता, क्योंकि इसे अंग्रेजी सरकार ने अपनी डिफेंस वॉल के रूप में शुरू किया था। इसे खत्म करने या मॉडरेशन को लेकर पहले भी बातें होती रही है, लेकिन सरकार में आते ही संबंधित इसे तमाम बातें ठंडे बस्ते में डालते रहे हैं।
अभी की परिभाषा में खबरें लिखना भी राजद्रोह
राजद्रोह की धारा 124-ए मूल रूप से सरकार के विरुद्ध आलोचना को भी राजद्रोह मानती है। हालांकि इसे समय-समय पर न्यायिक संस्थाओं ने परिभाषित करने की बात कही है। 1870 में आई इस धारा का उस वक्त मकसद ब्रिटिश रूल के विरुद्ध उठ रही आवाजों को नियंत्रित करना था।
ब्रिटिश ने बनाया इसलिए खराब नहीं, बल्कि कारण और है…
कन्हैया और असीम त्रिवेदी का किस्सा याद कीजिए
दो प्रकरण देखिए। एक कन्हैया कुमार का, दूसरा असीम त्रिवेदी का साल 2012 का। इन दो प्रकरणों में यह धारा चर्चा में आई। एक बड़ा धड़ा कन्हैया को दोषी मानता है तो वही यह भी मानता है कि यह धारा अराजकता को रोकने में अहम किरदार निभाती है। वहीं एक धड़ा यह कहते हुए इसे हटाने की वकालत करता है कि जब संविधान के आर्टिकल 19 में अभिव्यक्ति की आजादी है तो यह सिडीशन वाली धारा क्यों?
कांग्रेस ने घोषणा पत्र में किया था हटाने का वादा
इंदिरा गांधी की नेशनलिस्ट गर्वमेंट और मोदी की राष्ट्रवादी सरकार ये दोनों ही एक समान हैं। इंदिरा सरकार ने 1971 में इस धारा में 3 साल की सजा से लेकर आजीवन कारावास के स्थान पर एक स्टैंडर्ड सजा 7 साल करते हुए इसके दायरे को बढ़ाने की वकालत की थी। जबकि 21वें विधि आयोग में, जिसका कार्यकाल 31 अगस्त 2018 में खत्म हुआ है, ने भी इसे नैरो करने की सिफारिश की है।
कांग्रेस ने साल 2019 में इस धारा को डिक्रिमिनलाइज करने की बात अपने घोषणा पत्र में कही थी।
खत्म नहीं होगा, बदलेगा स्वरूप
इस लिहाज से देखें तो राजद्रोह कानून खत्म नहीं होगा, बल्कि इसे दुरुपयोग से बचाने के इसमें उपबंध किए जाएंगे। यही बात सालों से कही जाती रही है। लेकिन एक वर्ग यह फैलाने में कामयाब है कि राजद्रोह काला कानून है। राजद्रोह पर सुप्रीम कोर्ट ने भी ऐसी कोई टिप्पणी नहीं की है। तकनीकी तौर पर देखें तो कोर्ट ने सिर्फ केंद्र को इसकी समीक्षा करने को कहा है। यही बात विधि आयोग सालों से कहता आ रहा है। धारा ठीक है, लेकिन इसकी डेफिनेशन में राजनीतिक दल चीटिंग करते रहे हैं, फिर चाहे मोदी पीएम हों या इंदिरा गांधी।
यह बदले इसकी परिभाषा में
1. राजद्रोह का मतलब किसी सरकार, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री अथवा किसी सरकारी व्यवस्था के अंग की आलोचना नहीं होना चाहिए। बल्कि यह भारत की संप्रभुता, अंतरराष्ट्रीय छवि, गोपनीयता, सुरक्षा, सीमा आदि को उत्पन्न थ्रेट भर ही होनी चाहिए।
2. यह धारा तब तक नहीं लगाई जाए जब तक कि भारतीय संप्रभुता को खतरा पैदा न हो।
यह खतरे भी हैं
यह धारा हटते ही वास्तव में भारत को गाली देने का फैशन चल पड़ेगा। इसकी आड़ में विध्वंशकारी शक्तियां खुलकर राष्ट्रविरोधी हो जाएंगी। यह धारा एक ढक्कन का काम करती है। यानी किसी जार में भले ही कुछ न रखा हो, बावजूद इसे ढकना जरूरी होता है ताकि मक्खियां न जाएं।

Facebook



