नयी दिल्ली, 24 दिसंबर (भाषा) उपभोक्ता मामलों के मंत्री प्रल्हाद जोशी ने बुधवार को कहा कि उनका मंत्रालय ई-कॉमर्स एवं डिजिटल मंचों पर उपभोक्ताओं को भ्रमित करने वाले ‘डार्क पैटर्न’ से जुड़ी शिकायतों का सक्रिय रूप से निपटान कर रहा है।
मंत्रालय ने 30 नवंबर, 2023 को दिशानिर्देश जारी कर 13 तरह के डार्क पैटर्न को चिह्नित किया था ताकि ऐसी अनुचित व्यापार प्रथाओं को रोका और नियंत्रित किया जा सके। इनमें सब्सक्रिप्शन लेने के लिए बहलाना-फुसलाना और झुंझलाने वाले अलर्ट लगातार भेजते रहने जैसे तरीके शामिल हैं।
डार्क पैटर्न का इस्तेमाल डिजिटल मंचों या वेबसाइट पर उपयोगकर्ताओं को भ्रम में डालने, किसी अनचाही गतिविधि के लिए प्रेरित करने या अनचाहे निर्णय लेने के लिए मजबूर करने के लिए किया जाता है।
जोशी ने कहा, “हर दिन कोई नया डार्क पैटर्न सामने आता है, और हम इसे तुरंत संभालते हैं। कंपनियां भी ग्राहकों को लुभाने के लिए नए तरीके लाती रहती हैं, लेकिन हमारा विभाग बहुत सक्रिय है।”
उन्होंने राष्ट्रीय उपभोक्ता दिवस पर भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) की तरफ से आयोजित कार्यक्रम में मंत्रालय की सचिव निधि खरे और उनकी टीम को उपभोक्ता शिकायतों के सफल निपटान के लिए बधाई दी।
‘डिजिटल न्याय के माध्यम से प्रभावी और त्वरित निपटान’ विषय पर आयोजित कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जनवरी, 2025 में शुरू हुए डिजिटल मंच ‘ई-जागृति’ पर अब तक 1.4 लाख से अधिक मामले दर्ज और निपटाए जा चुके हैं।
जिला उपभोक्ता विवाद निपटान आयोगों ने 1.19 लाख से अधिक मामले दर्ज किए और 1.20 लाख से अधिक मामलों का निपटान किया। पांच महीनों के भीतर 4,300 से अधिक मामलों का समाधान किया गया।
ई-जागृति मंच के जरिये उपभोक्ता कहीं से भी शिकायत दर्ज कर सकते हैं, भुगतान कर सकते हैं, वर्चुअल सुनवाई में भाग ले सकते हैं और डिजिटल अलर्ट के जरिये मामलों की स्थिति पर नजर रख सकते हैं।
यह कागज-रहित, पारदर्शी और नागरिक-केंद्रित शिकायत निपटान व्यवस्था अब राष्ट्रीय उपभोक्ता निपटान आयोग, सभी 36 राज्यों एवं केंद्र शासित क्षेत्रों के आयोग और 670 से अधिक जिला आयोगों में कार्यरत है।
इस मौके पर उपभोक्ता सचिव निधि खरे ने कहा कि सभी ई-कॉमर्स कंपनियों को डार्क पैटर्न के 13 मूल प्रकारों की जानकारी दी गई और तीन महीने में स्वयं-समीक्षा करने के लिए कहा गया। इनमें से 26 कंपनियों ने अपनी वेबसाइट पर घोषणा की कि वे इन पैटर्न का उपयोग नहीं कर रही हैं।
जोशी ने इस अवसर पर आईआईटी कानपुर द्वारा विकसित एनसीएच डैशबोर्ड और नेशनल टेस्ट हाउस, कोलकाता द्वारा पहला जीएटीसी प्रमाणपत्र जारी किया।
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