नई दिल्ली । केंद्र सरकार नई ई-कॉमर्स नीति के जरिए ऑन लाइन शॉपिंग कंपनियों पर शिकंजा कस रही है। मोदी सरकार ने ई-कॉमर्स नीति के नए नियमों के लिए 9 मार्च तक कंपनियों से राय मांगी है। दरअसल बीजेपी सरकार छूट और एक्सक्लूसिव बिक्री के जरिये बाजार बिगाड़ने के खेल पर शिकंजा कस चुकी है। सरकार अब नई ई-कॉमर्स नीति लाने की तैयारी कर रही है। हालांकि कंपनियों ने नए एफडीआई नियमों की तरह इस पर भी सरकार से मोहलत मांगी है।
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नई ई कॉमर्स नीति के प्रावधान
नई ई कॉमर्स नीति के तहत व्यापार में लगी कंपनियों द्वारा ग्राहकों के डाटा की सुरक्षा और उसके व्यावसायिक इस्तेमाल को लेकर तमाम पाबंदियां लगाए जाने का प्रस्ताव है। इसके तहत सरकार पूरे ई कॉमर्स क्षेत्र के लिए एक कमेटी भी बना सकती है, जो खरीदारी या उत्पादों की गुणवत्ता की शिकायतों पर ध्यान देगी। उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग (डीपीआईआईटी) ने नई नीति का मसौदा तैयार किया है। इसके तहत विभिन्न संबंधित पक्षों से राय मशविरा लिया जा रहा है।
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ई कॉमर्स नीति में छह बड़े मुद्दों पर फोकस
सरकार ने ई कॉमर्स नीति के मसौदे में छह बड़े मुद्दों पर फोकस किया है। इसमें ग्राहकों के डाटा का इस्तेमाल, ऑनलाइन शॉपिंग से जुड़ी कंपनियों का बाजार, बुनियादी ढांचा, नियामकीय मुद्दा और डिजिटल अर्थव्यवस्था जैसे बड़े मुद्दे मामले शामिल हैं। सरकार यह भी विचार कर रही है कि कैसे ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियों के जरिये निर्यात को बढ़ावा दिया जा सके।
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बता दें कि अधिकारियों ने बुधवार को बताया कि ई कॉमर्स कंपनियों ने कहा है कि नई नीति पर अपनी राय देने के लिए सरकार से उन्हें और मोहलत मिलनी चाहिए। इसकी अंतिम तिथि सरकार ने अभी नौ मार्च रखी है।बता दें कि सरकार ने नए एफडीआई नियमों को लागू करने की समयसीमा बढ़ाने का अनुरोध ठुकरा दिया था। इसके बाद फ्लिपकार्ट, अमेजन जैसी ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियों को एक फरवरी से अपने बाजार मॉडल में बदलाव करना पड़ा था। उन पर किसी भी उत्पाद की एक्सक्लूसिव बिक्री करने पर रोक लग गई थी। साथ ही सरकार ने ऑनलाइन शॉपिंग कंपनियों पर उन कंपनियों के उत्पाद की बिक्री पर रोक लगा थी, जिनमें ई कॉमर्स कंपनियों की हिस्सेदारी 25 फीसदी से ज्यादा थी।