सरकार को कच्चे माल, पूंजीगत वस्तुओं पर आयात शुल्क कम करने की जरूरत है: जीटीआरआई |

सरकार को कच्चे माल, पूंजीगत वस्तुओं पर आयात शुल्क कम करने की जरूरत है: जीटीआरआई

सरकार को कच्चे माल, पूंजीगत वस्तुओं पर आयात शुल्क कम करने की जरूरत है: जीटीआरआई

:   Modified Date:  November 24, 2023 / 01:00 PM IST, Published Date : November 24, 2023/1:00 pm IST

नयी दिल्ली, 24 नवंबर (भाषा) कच्चे माल और पूंजीगत वस्तुओं पर आयात शुल्क कम करने से सरकार को कई मौजूदा निर्यात योजनाओं की आवश्यकता में कटौती करने में मदद मिल सकती है। शोध संस्थान जीटीआरआई ने शुक्रवार को यह बात कही।

जीटीआरआई के अनुसार, यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा क्योंकि भारत को अंतरराष्ट्रीय व्यापार कानूनों के ढांचे के भीतर इन प्रोत्साहनों के प्रबंधन में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) के अनुसार, यूरोपीय संघ (ईयू) और अमेरिका जैसे भारत के प्रमुख व्यापार साझेदारों सहित कई देश भारतीय योजनाओं को सब्सिडी के रूप में घोषित करते हैं और प्रतिपूरक शुल्क लगाकर निर्यातकों को ‘‘दंडित’’ करते हैं।

देश के कुल निर्यात में अमेरिका और यूरोपीय संघ की हिस्सेदारी 20 प्रतिशत से अधिक है।

वर्तमान में भारत निर्यात को सुविधाजनक बनाने के लिए कई योजनाएं लागू कर रहा है। इनमें एडवांस ऑथराइजेशन स्कीम (एएएस), एक्सपोर्ट प्रमोशन कैपिटल गुड्स स्कीम (ईपीसीजीएस), ड्यूटी ड्रॉबैक स्कीम (डीडीएस), निर्यातित उत्पादों पर शुल्क व करों में छूट (आरओडीटीईपी), विशेष आर्थिक क्षेत्र (एसईजेड), एक्सपोर्ट ओरिएंटेड यूनिट(ईओयू), प्री-शिपमेंट एंड पोस्ट-शिपमेंट क्रेडिट बैंक और इंटरेस्ट इक्वलाइजेशन स्कीम (आईईएस) शामिल हैं।

इन योजनाओं का मकसद वैश्विक बाजार में भारतीय उत्पादों की प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ाना है।

जीटीआरआई के सह-संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने कहा कि यूरोपीय संघ, अमेरिका और कई अन्य ने अक्सर इन योजनाओं को सब्सिडी के रूप में देखा है और भारत द्वारा अपने निर्यातकों को प्रदान किए जाने वाले मौद्रिक लाभों को बेअसर करते हुए प्रतिपूरक शुल्क लगाए है।

इन देशों का पहला तर्क यह है कि ये योजनाएं विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के सब्सिडी और प्रतिपूरक उपायों (एएससीएम) पर समझौते का उल्लंघन करती हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘इन चुनौतियों के चलते भारत सरकार को एक बहु-आयामी दृष्टिकोण अपनाने की जरूरत है। इसमें निर्यात योजनाओं की संरचना में सुधार, डब्ल्यूटीओ में सक्रिय रूप से विवाद उठाना, योजनाओं की समयपूर्व निकासी का विरोध करना और सीमा शुल्क संरचना को तर्कसंगत बनाना शामिल हैं।’’

वर्तमान में औद्योगिक उत्पादों के लिए भारत का औसत शुल्क या सीमा शुल्क यूरोपीय संघ के 4.1 प्रतिशत की तुलना में 14.7 प्रतिशत है।

भारत की कई निर्यात योजनाएं, जैसे एसईजेड, ईओयू, आरओडीटीईपी और ड्राबैक ऐसे उच्च आयात शुल्क के कारण मौजूद हैं। निर्यातक इन योजनाओं का उपयोग या तो भुगतान किए गए शुल्क का ‘रिफंड’ पाने या आयात शुल्क का भुगतान करने से छूट पाने के लिए करते हैं।

जीटीआरआई के अनुसा, ‘‘ कच्चे माल और पूंजीगत वस्तुओं पर आयात शुल्क कम करने से इनमें से कई निर्यात योजनाओं की आवश्यकता कम हो सकती है।’’

भाषा निहारिका

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(इस खबर को IBC24 टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)