नयी दिल्ली/ बर्लिन, 24 अक्टूबर (भाषा) भारत और यूरोपीय संघ के बीच प्रस्तावित व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने की दिशा में बातचीत के लिए यूरोपीय संघ का एक उच्चस्तरीय प्रतिनिधिमंडल अगले सप्ताह भारत का दौरा करेगा।
यह सात-सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल 27 से 29 अक्टूबर तक भारत में रहेगा और व्यापार, आर्थिक और निवेश संबंधों पर चर्चा करेगा।
इस दल की अगुवाई क्रिस्टीना मेस्त्रे करेंगी। वह यूरोपीय संघ अंतरराष्ट्रीय व्यापार समिति की भारत के लिए स्थायी प्रतिनिधि हैं। इस दल में ब्रैंडो बेनिफेई भी शामिल हैं।
मेस्त्रे और बेनिफेई ने एक संयुक्त बयान में कहा, ‘इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य भारत और यूरोपीय संघ के बीच जारी गहन व्यापार वार्ताओं के बीच आपसी समझ को और बढ़ाना है।’
बयान के मुताबिक, यह दौरा ऐसे समय में हो रहा है जब 2025 के अंत तक एफटीए पर बातचीत पूरी करने की समयसीमा में कुछ ही महीने रह गए हैं।
मेस्त्रे और बेनिफेई ने कहा, ‘हमें उन प्रमुख मुद्दों पर चर्चा की उम्मीद है जिनमें दोनों पक्षों की साझा रुचि है, ताकि एक सार्थक द्विपक्षीय समझौते तक पहुंचा जा सके और नियम-आधारित बहुपक्षीय व्यापार व्यवस्था को मजबूत किया जा सके।’
इसी बीच वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने शुक्रवार को ‘बर्लिन संवाद’ में कहा कि यूरोपीय संघ द्वारा लागू किए गए कार्बन कर सहित कई नए नियमों से उसके व्यवसायों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
यूरोपीय संघ ने कार्बन सीमा समायोजन प्रणाली सीबीएएम और वनह्रास नियमन (ईयूडीआर) जैसे नियम लागू किए हैं, जिन पर भारत ने कड़ी आपत्ति जताई है।
गोयल ने कहा, ‘इन सभी नियमों से मुझे लगता है कि यूरोप के व्यवसायों को अस्तित्व संबंधी चुनौती का सामना करना पड़ेगा। वहां का बुनियादी ढांचा महंगा होता जाएगा, वाहनों और विमान की कीमतें बढ़ेंगी। जीवन-यापन की लागत बढ़ने से लोगों के लिए खर्च करना मुश्किल हो जाएगा और वे अपने दायरे में सीमित हो जाएंगे जबकि अन्य व्यापारिक साझेदार आपस में दुनिया भर में स्वतंत्र रूप से व्यापार करते रहेंगे।’
गोयल ने बताया कि यूरोपीय संघ के कुल 73 प्रकार के नियम हैं और इनका पालन करने के लिए आवश्यक दस्तावेज़ी प्रक्रिया पूरी करना लगभग असंभव है।
उन्होंने आगे कहा, ‘यूरोपीय संघ बहुत सारे मुद्दों को एक साथ जोड़ने की कोशिश कर रहा है। व्यापार सिर्फ व्यापार होना चाहिए, हम व्यापार के साथ इतने सारे मुद्दों को क्यों जोड़ रहे हैं, हम असल में मुक्त व्यापार की भावना को कमजोर कर रहे हैं।’
भाषा योगेश प्रेम
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