मूंगफली, सोयाबीन की सरकारी बिक्री की खबर से बीते सप्ताह सभी तेल-तिलहनों के भ्राव टूटे

मूंगफली, सोयाबीन की सरकारी बिक्री की खबर से बीते सप्ताह सभी तेल-तिलहनों के भ्राव टूटे

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  • Publish Date - April 20, 2025 / 10:19 AM IST,
    Updated On - April 20, 2025 / 10:19 AM IST

नयी दिल्ली, 20 अप्रैल (भाषा) सहकारी संस्था नेफेड द्वारा 21 अप्रैल से सोयाबीन की बिक्री करने की अफवाहों तथा गुजरात में मूंगफली की सरकारी बिक्री होने के कारण कारोबारी धारणा प्रभावित होने से बीते सप्ताह सभी तेल-तिलहनों के भाव गिरावट के साथ बंद हुए।

बाजार सूत्रों ने कहा कि गुजरात में सरकार की ओर से मूंगफली की बिक्री चल रही है। इसके अलावा सोयाबीन की ताजा बिजाई के मौसम से 10-15 दिन पहले नेफेड की ओर से सोयाबीन की बिक्री प्रक्रिया शुरू किये जाने की अफवाह है। इस कदम से कारोबारी धारणा गंभीर रूप से प्रभावित हुई है और सारे तेल-तिलहनों के भाव दबाव का सामना कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि मूंगफली पहले ही न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से 17-18 प्रतिशत नीचे दाम पर बिक रही थी और अब सहकारी संस्था नेफेड की ओर से सोयाबीन की भी बिक्री किये जाने की अफवाह है। इससे बाजार में घबराहट का माहौल है जो तेल-तिलहन कीमतों में गिरावट का मुख्य कारण है।

सूत्रों ने कहा कि इससे पिछले सप्ताह में जिस कच्चे पामतेल का दाम 1,125-1,130 डॉलर प्रति टन था, वह समीक्षाधीन सप्ताह में घटकर 1,100-1,105 डॉलर प्रति टन रह गया है। विदेशों में दाम टूटने और नेफेड की बिकवाली पहल के बीच घबराहटपूर्ण माहौल के कारण पाम-पामोलीन तेल में गिरावट दर्ज हुई। दूसरी ओर, सोयाबीन डीगम का दाम जो पहले 1,105-1,110 डॉलर प्रति टन था वह समीक्षाधीन सप्ताह में बढ़कर 1,115-1,120 डॉलर प्रति टन हो गया है।

इसके अलावा सरकार ने सोयाबीन डीगम का आयात शुल्क मूल्य भी 81 रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाया है। इससे सोयाबीन तेल में और मजबूती की उम्मीद की जा रही थी लेकिन नेफेड की सोयाबीन बिकवाली संबंधी अफवाहों के बीच दाम टूटते दिखे।

उन्होंने कहा कि देश के आयातकों की पैसों के मामले में हालत इतनी खराब है कि वे सोयाबीन डीगम तेल को आयात की लागत से भी कम दाम पर बेचने को मजबूर हो चले हैं। इससे सोयाबीन तेल-तिलहन कीमतों में तो गिरावट आई ही, वहीं बाजार में घबराहटपूर्ण माहौल के बीच अन्य सभी तेल-तिलहनों के दाम भी दबाव में आ गये।

उन्होंने कहा कि किसानों का जो भरोसा सरकारी खरीद से बना था, बिकवाली के बाद वह लंबे समय के लिए खत्म हो सकता है।

पहले आंध्र प्रदेश में सूरजमुखी और मूंगफली की जोरदार खेती होती थी, किसानों का भरोसा हिलने के ही कारण यह लगभग 30 साल से खत्म हो चली है। अब सूरजमुखी का एमएसपी बढ़ाकर 7,200 रुपये क्विंटल करने के बावजूद किसान इसकी खेती को ओर नहीं लौट रहे हैं। यही वजह है कि सूरजमुखी तेल के मामले में देश लगभग पूरी तरह आयात पर निर्भर हो गया है।

सूत्रों ने कहा कि सोयाबीन बिक्री की अफवाहों से सरसों तेल-तिलहन भी नहीं बचा। वैसे भी सरसों का हाजिर दाम, एमएसपी से 4-5 प्रतिशत नीचे था लेकिन बाजार में घबराहटपूर्ण कारोबारी माहौल के कारण सरसों तेल-तिलहन में भी समीक्षाधीन सप्ताह में गिरावट देखी गई।

इस बीच, सोयाबीन तेल उद्योग के प्रमुख संगठन-‘सोपा’ ने भी सरकार से अनुरोध किया है कि सोयाबीन बिक्री पहल पर रोक लगायी जाये क्योंकि यह इसकी बिजाई को प्रभावित कर सकती है। कई अन्य विशेषज्ञों ने भी ऐसी किसी पहल के नुकसानदायक प्रभाव की आशंका जताई है।

सूत्रों ने कहा कि सोयाबीन की बिक्री रोकने की पैरवी ‘सोपा’ जैसा संगठन तो कर रहा है, लेकिन मूंगफली के लिए ऐसी पैरवी कौन करने वाला है? मूंगफली और सरसों का कोई विकल्प नहीं है। मूंगफली एमएसपी से 17-18 प्रतिशत नीचे के थोक दाम पर बिक रही है। सरसों का हाजिर दाम भी एमएसपी से 4-5 प्रतिशत नीचे है। कुछ संगठनों को अक्सर, मलेशिया के पाम-पामोलीन के उत्पादन और आयात घटने-बढ़ने की जानकारी देते पाया जाता है, लेकिन देशी तेल-तिलहन (मौजूदा समय में सरसों, मूंगफली) की चिंता कौन करेगा जिनका कोई विकल्प नहीं है।

उन्होंने कहा कि विदेशी तेल कीमतों में गिरावट के अनुरूप बिनौला तेल भी समीक्षाधीन सप्ताह में गिरावट के साथ बंद हुए। वैसे बिनौला की उपलब्धता अब नहीं के बराबर रह गई है।

सूत्रों ने कहा कि सरकार और तेल संगठनों को इस बारे में विचार करना चाहिये कि जब सारे खाद्य तेलों के थोक दाम टूट रहे हैं तो क्या इस गिरावट का लाभ आम उपभोक्ताओं तक भी पहुंचा है या नहीं। अगर मूंगफली तेल को देखें तो थोक दाम टूटे पड़े हैं वहीं खुदरा बाजार में दाम ऊंचा यानी लगभग 195 रुपये लीटर के आसपास ही मंडरा रहा है। थोक बाजार की गिरावट से खुदरा बाजार क्यों अछूता बना रहता है, इस समस्या की ओर विशेष ध्यान देने की जरूरत है।

उन्होंने कहा कि सतत प्रयासों के कारण मलेशिया जैसे देश में पिछले 30-40 साल में पाम-पामोलीन का इतना उत्पादन बढ़ गया कि वह आज भारत जैसे बड़े उपभोक्ता बाजार के लिए पाम-पामोलीन का मुख्य आपूर्तिकर्ता देश बन गया है। हमारा देश महंगाई की ‘चिंताओं’ के बीच निरंतर आयात पर निर्भर होता चला गया। देश में तेल-तिलहन का उत्पादन उस रफ्तार से आगे नहीं बढ़ा है जितनी तेजी से आबादी एवं खर्च योग्य आय बढ़ने से खाद्य तेलों की मांग बढ़ी है।

बीते सप्ताह सरसों दाने का थोक भाव 150 रुपये की गिरावट के साथ 6,225-6,325 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों दादरी तेल का थोक भाव 450 रुपये की गिरावट के साथ 13,350 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। सरसों पक्की और कच्ची घानी तेल का भाव क्रमश: 45-45 रुपये टूटकर क्रमश: 2,335-2,435 रुपये और 2,335-2,460 रुपये टिन (15 किलो) पर बंद हुआ।

समीक्षाधीन सप्ताह में सोयाबीन दाने और सोयाबीन लूज का थोक भाव क्रमश: 75-75 रुपये की गिरावट के साथ क्रमश: 4,550-4,600 रुपये और 4,250-4,300 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। इसी तरह, सोयाबीन दिल्ली एवं सोयाबीन इंदौर और सोयाबीन डीगम के दाम क्रमश: 300 रुपये, 150 रुपये और 375 रुपये टूटकर क्रमश: 13,400 रुपये, 13,250 रुपये और 9,350 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुए।

समीक्षाधीन सप्ताह में मूंगफली तिलहन का भाव 25 रुपये की गिरावट के साथ 5,725-6,100 रुपये क्विंटल पर बंद हुआ। वहीं, मूंगफली तेल गुजरात और मूंगफली साल्वेंट रिफाइंड तेल का भाव क्रमश: 100 रुपये और पांच रुपये टूटकर क्रमश: 14,150 रुपये और 2,245-2,545 रुपये प्रति टिन पर बंद हुआ।

इसी तरह, कच्चे पाम तेल (सीपीओ) का दाम 325 रुपये की गिरावट के साथ 12,225 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ। पामोलीन दिल्ली का भाव 450 रुपये की गिरावट के साथ 13,600 रुपये प्रति क्विंटल तथा पामोलीन एक्स कांडला तेल का भाव 550 रुपये की गिरावट के साथ 12,400 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

विदेशी तेलों में गिरावट के अनुरूप, समीक्षाधीन सप्ताह में बिनौला तेल भी 350 रुपये टूटकर 13,350 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ।

भाषा राजेश

अजय

अजय