(रिपोर्टः राजेश राज) रायपुरः प्रदेश में प्रदर्शन के मुद्दे पर राजनीति गरमा गई है। हाल ही में सरकार ने एक आदेश जारी कर प्रदेश में कहीं भी बिना अनुमति के, धरना प्रदर्शन, सभा, जुलूस से लेकर किसी भी तरह के आयोजन पर पाबंदी लगा दी । लेकिन यही कांग्रेस यात्री ट्रेन के मुद्दे पर रेलवे के खिलाफ धरना प्रदर्शन कर रही है। दूसरी ओर भाजपा ने भी कांग्रेस सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है, धरना-प्रदर्शन पर पाबंदी के खिलाफ प्रदेशभर में विरोध प्रदर्शन और जेल भरो आंदोलन चलाने का ऐलान कर दिया है। अब सवाल ये है कि प्रेशर पॉलिटिक्स के मायने क्या हैं? क्या दबाव की राजनीति से ही समाधान निकलता है?
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प्रदर्शन वर्सेस प्रदर्शन, आरोप के बदले आरोप, छत्तीसगढ़ में मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा और सत्तारुढ़ कांग्रेस फिर आमने-सामने हैं। कांग्रेस रद्द हुई यात्री ट्रेन के मुद्दे पर रेलवे को धमकी दे रही है कि यदि सारी यात्री ट्रेनें पूरी तरह से बहाल नहीं हुई तो गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम के नेतृत्व में कांग्रेस नेताओं ने रायपुर DRM ऑफिस का घेराव कर विरोध प्रदर्शन किया। इधर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी कड़ा ऐतराज जताते हुए सोशल मीडिया पर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. कांग्रेस के दबाव का ही नतीजा है कि रेलवे को 22 रद्द यात्री ट्रेनों में से 7 ट्रेनों को दोबारा बहाल करना पड़ा, लेकिन पार्टी और उसके नेता इतने पर शांत होने को तैयार नहीं है. वो और भी उग्र आंदोलन की चेतावनी दे रहे हैं।
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दूसरी ओर भाजपा भी प्रदर्शन के मुद्दे पर ही मोर्चा खोल चुकी है। उसके विरोध का आधार सरकार की ओर से जारी हालिया वो आदेश है, जिसमें बिना अनुमति प्रदेश में किसी भी तरह के सभा और विरोध प्रदर्शन के आयोजनों पर रोक है। जिसपर बीजेपी तंज कस रही है कि प्रदेश में धरना प्रदर्शन के अधिकार का गला घोंटने वाली कांग्रेस आखिर रेलवे को विरोध प्रदर्शन की धमकी कैसे दे रही है। भाजपा अब कांग्रेस के खिलाफ हर जिले में विरोध प्रदर्शन से लेकर जेल भरो आंदोलन की शुरूआत करने जा रही है।
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जाहिर है, विरोध प्रदर्शन के मुद्दे पर शुरू हुई ये राजनीति और दूर तक जाने वाली है। और इसकी गूंज भी फिलहाल थमने वाली नहीं है।