(Jhiram Ghati Hatyakand Case, Image: IBC24 News File)
Jhiram Ghati Hatyakand Case: रायपुर: झीरम घाटी हत्याकांड की आज 12वीं बरसी है, लेकिन 12 साल बाद भी इस हमले से जुड़े परिवारों का दुख अब भी कम नहीं हुआ है। 25 मई 20213 को छत्तीसगढ़ की सुकमा जिले की झीरम घाटी में माओवादियों ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमला किया था। इस नृशंस वारदात में कांग्रेस के शीर्ष नेता मारे गए थे। हमले को लेकर अब तक कई जांचें हुई, लेकिन घटना की पूरी सच्चाई और दोषियों पर ठोस कार्रवाई अब भी अधूरी है।
Jhiram Ghati Hatyakand Case: आज झीरम घाटी हमले को 12 साल पूरे हो गए, लेकिन इस दर्दनाक घटना के पीड़ित परिवार अब भी इंसाफ की राह देख रहे हैं। बता दें कि, 25 मई 2013 को सुकमा जिले की झीरम घाटी में माओवादियों ने कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर हमला कर दिया था। इस हमले में बस्तर टाइगर महेंद्र कर्मा, कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष नंदकुमार पटेल समेत 27 लोगों की हत्या कर दी गई थी।
हाल ही में झीरम कांड के मास्टरमाइंड बसवराजू समेत कई बड़े माओवादियों को ढेर कर बड़ी सफलता हासिल की है, लेकिन झीरम की वह टीस आज भी खत्म नहीं हुई है। वहीं, पीड़ितों का कहना है कि अब भी न तो सच सामने आया है, न न्याय मिला है।
Jhiram Ghati Hatyakand Case: पूर्व मंत्री उमेश पटेल जो हमले में पिता और भाई को खो चुके हैं, वे कहते हैं कि हर साल बरसी पर उनका दर्द फिर से जाग जाता है। इसे बार-बार कुरेदना मैं ठीक नहीं मानता। उन्होंने आगे कहा कि, इस घटना ने उनका जीवन पूरी तरह बदल दिया। मैं कभी राजनीति में नहीं आना चाहता था, पर पिता और भाई की शहादत ने मुझे उनकी जिम्मेदारी उठाने को मजबूर कर दिया।
वे भावुक होकर आगे कहते हैं कि, महेंद्र कर्मा पर माओवादियों ने सबसे ज्यादा क्रूरता दिखाई। सलवा जुडूम आंदोलन के नेता होने के कारण वे माओवादियों के निशाने पर थे। इसी वजह से वे कर्मा को अपने सबसे बड़े दुश्मनों में गिनते थे। हमले के वक्त माओवादी लगातार पूछ रहे थे, ‘कर्मा कौन है?’ इसके जवाब में महेंद्र कर्मा खुद वाहन से नीचे उतरे और कहा- ‘मैं हूं कर्मा, बाकी सबको जाने दो, जो करना है मेरे साथ करो।’ यह सुनते ही माओवादियों ने उन्हें जंगल में ले जाकर उस पर कई गोलियां दाग दीं और उनके शव पर बर्बरता का जश्न मनाया। वे आज भी उस दिन की घटना को याद कर सिहर उठते हैं।
वहीं, इस घटना के पीड़ित परिवारों का कहना है कि 12 साल बीतने के बाद भी न तो पूरा सच सामने आ पाया और न ही न्याय की उम्मीदें पूरी हुई हैं। लेकिन परिवार को अब भी उम्मीद हैं कि झीरम का सच एक दिन जरूर सामने आएगा और उन्हें न्याय जरूर मिलेगा।