CG News: प्रदेश के पौराणिक इतिहास को सजीव कर रही भूपेश सरकार, पुरातन सभ्यताओं को जिंदा रखने हो रहा अनुपम प्रयास

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  • Publish Date - June 17, 2023 / 06:46 PM IST,
    Updated On - June 17, 2023 / 06:46 PM IST

रायपुर: छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा छत्तीसगढ़ की गौरवशाली संस्कृति के संरक्षण एवं संवर्द्धन हेतु निरंतर प्रयास किया जा रहा है, जिसके परिणाम स्वरूप आज छत्तीसगढ़ की पहचान पूरे देश एवं दुनिया में बनी है। छत्तीसगढ़ की गौरवशाली सांस्कृतिक विरासत की जानकारी नई पीढ़ी को देना अत्यंत आवश्यक है, जिससे कि हमारी आगामी पीढ़ी को अपने संस्कृति का गौरवबोध हो सके। छत्तीसगढ़ सरकार के द्वारा युवा महोत्सव, राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव, छत्तीसगढ़िया ओलम्पिक आदि आयोजनों से अपने विरासत को सहेजने तथा इसकी विशिष्टता को पूरे देश और दुनिया को अवगत कराने का कार्य किया जा रहा है, जिसके फलस्वरूप देश और दुनिया में छत्तीसगढ़ की ख्याति फैल रही है। (chhattisgarh govt is grooming the ancient heritage) इसके अलावा प्रदेश की पुरातन सभ्यता को सहेजने के प्रयासों का भी आज राष्ट्रीय स्तर पर सराहना हो रही है। छत्तीसगढ़ की धरा प्राचीन इतिहास और सभ्यता को समेटे हुए है। यही वजह है कि प्रदेश के लगभग सभी जिलों में पुरातन काल के मंदिर, मठ और इमारतें स्थित है। निरंतर अनदेखी और संरक्षण के अभाव में यह इतिहास मिटने के करीब था लेकिन मौजूदा राज्य सरकार ने पृथक-पृथक कार्ययोजना तैयार कर उन्हें संवारने, सहेजने की दिशा में कदम बढ़ाया है। आइये जानते हैं इस दिशा में राज्य सरकार की ओर से कराये गए प्रमुख कार्ययोजनाओं के बारे में…

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श्रीराम पथ गमन का विकास

अयोध्या के बाद छत्तीसगढ़ में भी राम वनगमन पथ का काम शुरू हो चुका है। छत्तीसगढ़ का भगवान राम से काफी करीब का नाता है। माता कौशल्या खुद छत्तीसगढ़ की राजकुमारी थी, वहीं भगवान राम ने भी अपने वनवास के दौरान काफी वक्त छत्तीसगढ़ में गुजारा। आज भी छ्त्तीसगढ़ में पौराणिक, धार्मिक व ऐतिहासिक मान्यताओं के आधार कई ऐसे स्थान मिल जाएंगे, जिन्हें भगवान राम से जोड़कर देखा जाता है। रामवनगमन पथ में इन सभी स्थानों को सरकार जोड़ने का प्रयास कर रही है।

रामायण के मुताबिक भगवान राम ने वनवास का वक्त दंडकारण्य में बिताया। छत्तीसगढ़ का बड़ा हिस्सा ही प्राचीन समय का दंडकारण्य माना जाता है। अब उन जगहों को नई सुविधाओं के साथ विकसित किया जा रहा है, जिन्हें लेकर यह दावा किया जाता है कि वनवास के वक्त भगवान यहीं रहे।

श्री राम पथगमन के निर्माण से निश्चित ही राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति मिलेगी। वहीं राम वन गमन परिपथ को एक पर्यटन सर्किट के तौर पर विकसित किए जाने का निर्णय रोजगार मुहैया कराने की दिशा में भी एक कारगर प्रयास होगा। विभिन्न शोध प्रकाशनों के अनुसार प्रभु श्रीराम ने छत्तीसगढ़ में वनगमन के दौरान लगभग 75 स्थलों का भ्रमण किया। जिसमें से 51 स्थल ऐसे हैं, जहां श्री राम ने भ्रमण के दौरान रुककर कुछ समय बिताया था। राम वन गमन पथ में आने वाले छत्तीसगढ़ के नौ महत्वपूर्ण स्थलों सीतामढ़ी-हरचौका (कोरिया), रामगढ़ (अम्बिकापुर), शिवरीनारायण (जांजगीर-चांपा), तुरतुरिया (बलौदाबाजार), चंदखुरी (रायपुर), राजिम (गरियाबंद), सिहावा-सप्त ऋषि आश्रम (धमतरी) और जगदलपुर (बस्तर) और रामाराम (सुकमा) सहित उन इक्यांवन स्थलों को चिन्हाकिंत कर विकसित किया जा रहा है।

चंदखुरी में माता कौशल्या मंदिर परिसर का जीर्णोद्धार

छत्तीसगढ़ के राम वनगमन पथ योजना पर तेजी से काम करते हुए भूपेश बघेल सरकार ने रायपुर के पास चंदखुरी में माता कौशल्या मंदिर परिसर का जीर्णोद्धार कर दिया है। मुख्यमंत्री बनने के बाद से ही यह योजना भूपेश बघेल के ड्रीम प्रोजेक्ट में से एक है।

बता दें कि रायपुर से 24 किलोमीटर की दूरी पर स्थित चंदखुरी भगवान राम की माता कौशल्या की जन्मस्थली है। (chhattisgarh govt is grooming the ancient heritage) चंदखुरी गांव में जलसेन तालाब के बीच माता कौशल्या का एक बेहद ही पुराना और दुनिया का इकलौता मंदिर बना हुआ है। इस मंदिर में भगवान राम अपनी मां कौशल्या की गोद मे विराजित हैं। करीब 15 करोड़ की लागत से इसका जीर्णोद्धार करवाया गया है। यहां भगवान राम की 51 फीट ऊंची प्रतिमा भी बनाई गई है।

सिरपुर का विकास

सिरपुर को राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय धरोहर के अनुरूप विकसित करने और ज़्यादा पहचान दिलाने शासन कटिबद्ध है। जो भी ज़रूरी कार्य हैं, किए जा रहे हैं। सिरपुर बहुत ही विस्तृत है, जो लगभग 10 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है और इस तरह अन्य जगह विस्तारित बौद्ध केन्द्र नहीं हैं। सिरपुर, डोंगरगढ़ और मैनपाट को टूरिज्म सर्किट से जोड़ने की तैयारी की जा रही है। पर्यटन सर्किट से जुड़ जाने से इस ओर सैलानियों का रुझान बढ़ेगा। जल्द ही सिरपुर पूरे विश्व मानचित्र पर अंकित होगा।

छत्तीसगढ़ का प्राचीनकाल से ही सभी क्षेत्रों में बढ़-चढ़कर योगदान रहा है। छत्तीसगढ़ हमेशा से देवभूमि रहा है। सिरपुर शिव, वैष्णव, बौद्ध धर्मों के प्रमुख केन्द्र भी है। सिरपुर अपनी ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक महत्ता के कारण आकर्षण का केंद्र हैं। यह पांचवीं से आठवीं शताब्दी के मध्य दक्षिण कोसल की राजधानी थी। यह स्थल पवित्र महानदी के किनारे पर बसा हुआ है। सिरपुर में सांस्कृतिक एंव वास्तुकौशल की कला का अनुपम संग्रह हैं। 595 से 605 ईसवी के बीच इस मंदिर का निर्माण पूरा हुआ था।

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल माह अप्रैल में सिरपुर बौद्ध महोत्सव में शामिल हुए थे। उन्होंने सिरपुर के विकास के लिए 213.43 लाख के कार्याें की घोषणा की। इनमें 25 लाख रुपए से भव्य स्वागत गेट का निर्माण, 73.15 लाख रूपए से सिरपुर मार्ग पर 04 तालाबों का सौंदर्यीकरण, 45.28 लाख रुपए से सिरपुर मार्ग पर 05 सुन्दर सुगंधित उपवन निर्माण, कोडार-पर्यटन (टैटिंग एवं बोटिंग) 31.76 लाख रुपए, कोडार जलाशय तट पर वृक्षारोपण 17.38 लाख रुपए से और सिरपुर के रायकेरा तालाब के लिए 30.86 लाख रुपए की लागत से बनाए जा रहे हैं।

मुख्यमंत्री की घोषणा अनुरूप सभी काम अंतिम चरण में है। सैलानियों के लिए रायकेरा तालाब में बोटिंग चालू माह के अंत तक शुरू हो जाएगी। सिरपुर पहले से ही प्राकृतिक दृश्यों से भरपूर है। (chhattisgarh govt is grooming the ancient heritage) वृक्षारोपण के ज़रिए इसे और भी हरा-भरा किया जा रहा है। पर्यटकों के विश्राम सुविधा के लिए सुगंधित फूलों वाली सुंदर उपवन वाटिकाएँ तैयार करने पर ज़्यादा ध्यान दिया जा रहा है।

वृक्षारोपण में बेर, जामुन, पीपल, बरगद, नीम, करंज, आंवला आदि के पौधें शामिल किए गए है। ताकि ऐतिहासिक महत्व के साथ-साथ लोगों को जैव विविधता का ऐहसास भी हो। इस इलाक़े में राम वन गमन पथ में छह ग्राम पंचायतों को मुख्य केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। जिसमें अमलोर, लंहग़र, पीढ़ी, गढ़सिवनी, जोबा एवं अछोला शामिल है। सड़क के दोनों किनारों पर फलदार, छायादार पौधे लगाए जा रहे हैं। इसके लिए राशि भी स्वीकत की गई है।

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छै आगर छै कोरी तरिया (126 तालाब) का संरक्षण

सांस्कृतिक महत्व के छह प्राचीन तालाबों का गौरव फिर से लौट आया है। धमधा के छह तालाबों की खुदाई की गई ये तालाब वर्तमान में अस्तित्व खो चुके थे। इन पर कब्जा हो चुका था। इन तालाबों के गौरव को फिर से लौटाने की पहल मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल के निर्देश पर की गई। जिला प्रशासन दुर्ग द्वारा जल संरक्षण के इस मुहिम में आमजनों ने भी भरपूर साथ दिया। विलुप्त होते इन तालाबों की उपयोगिता व सौंदर्य को पुनःस्थापित करने का सराहनीय कार्य की प्रशंसा यहां के ग्रामीणजन कर रहे हैं।

सांस्कृतिक महत्व के धमधा के पुनर्जीवित इन छह तालाबों में विधि-विधान के साथ ताम्रपत्र व काष्ठ स्तंभ की स्थापना भी की गई है। ग्रामीणों का कहना है कि तालाब हमारी संस्कृति और परंपरा को पल्लवित करते हैं। मुख्यमंत्री की पहल पर इन तालाबों के सौंदर्यीकरण और उन्हें सहेजने का कार्य सराहनीय है। धमधा के अन्य प्राचीन तालाबों के जीर्णाेद्धार करने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं।
सांस्कृतिक महत्व के इन तालाबों को जिला प्रशासन की मदद से पुनर्जीवित करने के अभियान में सबसे पहले तालाबों को पाट कर किए गए कब्जे को हटाया गया। कब्जा हटाने के बाद तालाबों की फिर से खुदाई हुई। खुदाई के काम में स्थानीय लोगों के साथ-साथ गौरवगाथा समिति, हिन्द एथलेटिक्स क्लब, नगर पंचायत, जल संसाधन विभाग के लोगों ने हिस्सा लिया। तालाब बनने के बाद पूरे विधि विधान से सरई लकड़ी का 12 फीट लंबा स्तंभ लगाया गया और शोभायात्रा निकाल कर त्रिमूर्ति महामाया मंदिर में पूजा-अर्चना की गई। इन तालाबों का महत्व दर्शाने के लिए इसमें ताम्रपत्र अंकित किया गया। इस ताम्रपत्र में शासकीय तालाब होने, उसके रकबा, खसरा सहित अन्य ऐतिहासिक बातों का उल्लेख किया गया है।

गौरतलब है कि दुर्ग जिले का धमधा क्षेत्र छै आगर छै कोरी तरिया (126 तालाब) के लिए ऐतिहासिक रूप से प्रसिद्ध था। गुजरते समय के साथ ये जल स्रोत विलुप्त होते चले गए और साथ ही लोगों के द्वारा कब्जा करके इसे पाट दिया गया। जिससे 126 तालाबों ने अपना अस्तित्व खो दिया। धर्मधाम गौरवगाथा समिति ने इन तालाबों पर शोध किया और इनकी पूरी पड़ताल करके 126 तालाबों की सूची बनाई, जिसमें रकबा, खसरा नंबर सहित उनके इतिहास को संजोया और एक किताब छै आगर छै कोरी तरिया अऊ बूढ़वा नरवा का प्रकाशन किया, जिस किताब का विमोचन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के द्वारा किया गया।

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