DA hike in chhattisgarh: रायपुर। लोकसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ के सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी सरकार पर भारी पड़ सकती है। करीब 7 लाख की संख्या वाला सरकारी कर्मचारी वर्ग नई सरकार से काफी उम्मीदें लगाए बैठा था। तीन महीने में साय सरकार ने किसान, युवा से लेकर महिला और आदिवासियों तक के साथ किए वादे पूरे कर दिए, लेकिन सरकारी कर्मचारी की मांग अब तक अनसुनी है।
पिछले साल विधानसभा चुनाव में सरकारी कर्मचारियों की नाराजगी भूपेश बघेल सरकार को भारी पड़ी थी। तब नियमित सरकारी कर्मचारी महंगाई भत्ता, आवास भत्ता, विभिन्न कैडर के बीच वेतन असमानता जैसे मुद्दों पर सरकार से खफा थे। अनियमित और संविदा कर्मचारी नियमितिकरण करने के वादाखिलाफी पर सरकार के खिलाफ थे। भाजपा ने अपने घोषणापत्र में उनकी मांगों और समस्याओं के निदान करने का वादा किया था। लेकिन सत्ता बदलने के तीन महीनें बाद भी कर्मचारी वर्ग की मांगें अब तक अनसुनी हैं। ना तो केंद्रीय कर्मचारियों के समान महंगाई भत्ता मिल सका और ना ही संविदा कर्मचारियों के लिए कोई रास्ता निकाला गया। लिहाजा, कर्मचारी नाराज हैं।
नाराज कर्मचारी वर्ग भाजपा नेताओं और मंत्रियों से मुलाकात कर लगातार ज्ञापन सौंप रहा है। शायद सरकार को भी अंदाजा है कि कर्मचारियों की नाराजगी भारी पड़ सकती है, लिहाजा आज प्रमुख सचिव निहारिका बारीक की अध्यक्षता में चार सदस्यों वाली कमेटी की गठन की घोषणा कर दी गई। विधि विधायी, समान्य प्रशासन विभाग और वित्त विभाग के सचिव एवं प्रमुख सचिव स्तर के अधिकारी, प्रदेश के सरकारी कर्मचारियों की मागों और समस्याओं की समीक्षा करेंगे और आगे का रास्ता तैयार करेंगे। हालांकि, महंगाई भत्ता और संविदा कर्मचारियों को 27 प्रतिशत वेतन बढ़ोत्तरी का लाभ देने जैसी घोषणा चुनाव से पहले ही की जा सकती है।
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प्रदेश में करीब 3 लाख सरकारी कर्मचारी हैं, केंद्रीय कर्मचारियों को 50 प्रतिशत महंगाई भत्ता मिल रहा है, लेकिन इऩ्हें 44 प्रतिशत ही। अलग अलग विभागों में करीब इतने ही संविदा, अनियमित और डेली वेज कर्मचारी भी हैं। ये कलेक्टर दर पर वेतनमान से लेकर नियमितिकरण और नौकरी की सुरक्षा जैसी मांग कर रहे हैं। देखना होगा, साय सरकार इन वर्गों को कैसे साध पाती है।