Reported By: Abhishek Soni
,Jangalpara Primary School | Photo Credit: IBC24
सरगुजा: Jangalpara Primary School नया शिक्षा सत्र शुरू हो गया है, शासन प्रशासन के जिम्मेदार शाला प्रवेश उत्सव मनाकर बेहतर शिक्षा का दावा कर रहे है, लेकिन मैनपाठ के जंगलपारा प्राथमिक स्कूल की ये तस्वीरें उन तमाम दावों की पोल खोल रही हैं। जहां बच्चे एक छोटे से किचन शेड में चूल्हे के पास बैठकर पढ़ने को मजबूर हैं।
Jangalpara Primary School दरअसल वर्ष 2004 के करीब आदिवासी बाहुल्य इस इलाके में प्राथमिक स्कूल की शुरुवात की गई। शुरुवात में स्कूल का संचालन किसी ग्रामीण के घर में किया जाता रहा। वर्ष 2006 में इसके लिए पंचायत द्वारा स्कूल भवन बनाने का बजट आया मगर बजट भ्रस्टाचार की भेंट चढ़ गया और आज तक स्कूल भवन का प्लीन्त ही बन पाया। निजी घर वाले व्यक्ति ने स्कूल अपने निवास में लगवाने से मना कर दिया गया।
फिर प्राथमिक स्कूल आंगनबाड़ी की बिल्डिंग में लगाया जाने लगा। मगर बारिश के कारण आंगनबाड़ी का पूरा भवन जर्जर हो चुका है और प्लास्टर गिरने से हादसे का खतरा भी बना हुआ है। आंगनबाड़ी के कमरे में प्लास्टिक के मदद से सामानों को सुरक्षित रखने की जद्दोजहद की जा रही है। पानी टपकने के कारण भवन में बैठना भी संभव नही है। यही कारण है कि अब स्कूल का संचालन एक छोटे से किचन शेड में किया जा रहा है। जहा बच्चों को बैठने की जगह भी ठीक से नही हो पा रही।
घनश्याम सूर्यवंशी प्रधानपाठक ने बताया कि जब इस स्कूल के लिए मैनपाट से निकले तो रास्ता इतना खराब था कि गाड़ी कई स्थानों पर फंस गया। जैसे तैसे हम स्कूल से 500 मीटर दूर पहुँचे वहां से गाड़ी लेकर आगे जाना संभव नही था। ऐसे में पैदल ही फिसलन के बीच स्कूल पहुँचे। यहां का नजारा देखकर मन कौंध गया, क्योंकि बारिश में बच्चे दड़बे नुमा किचन शेड में बैठे हुए थे। आंगनबाड़ी भवन प्लास्टिक से ढका होने के बाद भी अंदर से बारिश का पानी टपक रहा था।
अभी छग की पूरी सरकार लगातार मैनपाट में तीन दिनों तक थी। करोड़ो रूपये पानी की तरह फूंक दिए गए। मगर इस जैसे हालात की सुध जिम्मेदारों ने नही ली। जब हमनें इस हालात के विषय में एसडीएम से पूछा तो उन्होंने जानकारी न होने और जानकारी लेकर व्यवस्था दुरुस्त करने का रटा रटाया जवाब दिया। कुछ ऐसा ही उत्तर हमे क्षेत्र के विधायक से भी मिला।
बहरहाल स्कूल बिल्डिंग का खर्च महज 20 लाख भी न होगा। जबकि वीवीआईपी पर करोड़ो खर्च कर दिए गए। सरकारे बदल गई। मगर हालात नहीं बदले, भला ऐसी में बैठे अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों को सिर्फ ये दिखावा ही तो करना है कि सरकारी स्कूलों में सबकुछ ठीक है। कभी इन साहब के साहबजादे ऐसी व्यवस्था में पढ़ते तो उन्हें भी इनके दर्द का एहसास होता, जो ये बच्चे हर रोज झेल रहे है।