Reported By: Avinash Pathak
,रायगढ़: Raigarh News: छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले के आदिवासी बाहुल्य वन ग्राम करमागढ़ में शरद पूर्णिमा पर बलि की अनूठी परंपरा है। यहां विगत पांच सौ सालों से शरद पूर्णिमा पर न सिर्फ बकरों की बलि दी जाती है, बल्कि मंदिर में पूजा करने वाला बैगा श्याम लाल सिदार बकरों का खून भी पीता है। इस शरद पूर्णिमा पर भी मंदिर में 40 बकरों की बलि दी गई। इस दौरान बैगा ने बकरों का खून भी पिया। इसका वीडियो भी सामने आया है।
Raigarh News: दरअसल, वन ग्राम करमागढ़ में मानकेश्वरी देवी का मंदिर है। इस मंदिर को राज परिवार की कुलदेवी भी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहां बलि देने से मनोकामना पूरी होती है। यही वजह है कि दूर दूर से आदिवासी समुदाय के लोग यहां पूजा अर्चना करने आते हैं। जिन श्रद्धालुओं की मन्नतें पूरी होती है, वे यहां आकर बलि देते हैं। शरद पूर्णिमा की पहली रात मंदिर में निशा पूजा होती है और फिर दूसरे दिन बलि चढ़ाई जाती है। इस शरद पूर्णिमा पर भी आदिवासी समुदाय के लोग मंदिर में दर्शन करने के लिए पहुंचे।
परंपरा अनुसार लोगों ने पूजा–अर्चना की उसके बाद ढोल की थाप के बीच नाचते गाते बकरों की बलि दी गई। जमीन पर लेटी हुई जिन महिलाओं के सर पर हाथ रखकर बैगा आशीर्वाद देता उनकी बलि कबूल करते हुए उनके द्वारा लाए बकरों की बलि दी गई । इस दौरान बैगा ने बकरों का खून भी पिया। स्थानीय लोगों का कहना था कि यह बरसों पुरानी परंपरा है, जिसका वे निर्वहन कर रहे हैं।
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