CM Baghel tweet on declaration of election date in Chhattisgarh
Cultural heritage of Chhattisgarh : रायपुर। छत्तीसगढ़ के तीज-त्योहार, खान-पान, पुरातन खेलकूद को नई पहचान दी है। सीएम भूपेश बघेल की विशेष पहल से आज प्रदेश के गांव की महत्ता बढ़ रही है। प्रदेश के लोगों को पहले सिर्फ खेती किसानी के लिए जाना जाता था, लेकिन अब सीएम बघेल के सत्ता में आने के बाद से गांववासी सांस्कृतिक, आर्थिक एवं बौद्धिक रूप से सशक्त हो रहे हैं। आज प्रदेश के प्रत्येक नागरिक को उनका अधिकार मिल रहा है। सरकार की विभिन्न योजनाओं से छत्तीसगढ़ नई दिशा की ओर अग्रसर हो रहा है।
सीएम भूपेश ने एक ओर जहां हरेली, तीजा, पोरा सहित अन्य त्योहारों को प्राथमिकता देकर उनकी लोकप्रियता देश के कोने-कोने तक पहुंचा रहे हैं तो दूसरी ओर छत्तीसगढ़ में खेले जाने वाले गिल्ली-डंडा, बांटी, भौरा, कबड्डी जैसे परंपरागत खेलों को बढ़ावा देने में लगे हैं। इन खेलों को आने वाली पीढ़ी भूल न जाए इसलिए छत्तीसगढ़िया ओलंपिक का आयोजन भी किया। सरल जीवन जीते हुए छत्तीसगढ़ के लोग अपनी परंपरा, रीति रिवाज और मान्यताओं का पालन करते हैं। छत्तीसगढ़ को विरासत में मिली इस संस्कृति को संजोए रखने के लिए सीएम भूपेश बघेल ने सराहनीय कार्य किए हैं। प्रदेशवासियों को उनकी संस्कृति से जुड़े रहने के लिए भूपेश सरकार ने कई योजनाएं लाई, जिससे लोग आज काफी खुश हैं। छत्तीसगढ़ की परंपराओं को बनाए रखने के लिए सीएम बघेल की अनोखी पहल रही है।
जैसा कि आप सभी जानते हैं.. छत्तीसगढ़ की कला और संस्कृति का इतिहास काफी पुराना है। आज के समय में भूपेश सरकार आधुनिकता के साथ प्रदेश की कला और संस्कृति को संजो रहा है। छत्तीसगढ़ की कला एवं संस्कृति बहुआयामी है। वनों से आच्छादित और आदिवासी अधिकता के कारण यहां की कला में वनों, प्रकृति, प्राचीन और परम्परा का विशेष स्थान और महत्व है। छत्तीसगढ़ राज्य जीवन्त सांस्कृतिक परंपराओं से संपन्न है।
भूपेश सरकार ने एक वर्ष में यहां की संस्कृति और परंपराओं की पहचान के लिए कई अहम फैसले लिए हैं, जिसमें अरपा पैरी की धार गीत को राज्य गीत घोषित किया जाना शामिल है। अब सभी सरकारी कार्यक्रमों और आयोजनों की शुरूआत राज्य गीत से करने निर्णय लिया गया है। राज्य शासन ने राजधानी रायपुर में राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव का आयोजन किया। इस महोत्सव ने अब अन्तर्राष्ट्रीय आयोजन का स्वरूप ले लिया है। इसमें देश के अन्य राज्यों के साथ-साथ युगांडा, मालदीव, थाइलैण्ड, श्रीलंका, बेलारूस और बांग्लादेश के प्रतिनिधियों और लोक कलाकारों ने आकर इस महोत्सव के माध्यम से छत्तीसगढ़ की पहचान विदेशों में पहुंचाई।
किसी भी राज्य की कला वहां के राज्य, प्रदेश के नाच और गीतों के साथ वहां के आम जीवन, वस्तुओं, लोक कलाओं से भी समझी जा सकती है। छत्तीसगढ़ में लौह शिल्प कला, गोदना कला, बांस कला, लकड़ी की नक्काशी कला काफी प्रसिद्ध हैं। छत्तीसगढ़ में कला का क्षेत्र अति व्यापक है यहां सिरपुर महोत्सव, राजिम कुंभ, चक्रधर समारोह और बस्तर लोकोत्सव आदि जैसे सांस्कृतिक उत्सवों का आयोजन किया जाता है, जो छत्तीसगढ़ राज्य के महान और जीवंत सांस्कृतिक को प्रदर्शित करते हैं।
नगरीय प्रशासन मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया ने कहा कि छत्तीसगढ़ के ज्यादातर क्षेत्रों में हम सबका प्रारंभिक परिचय अपने माता की बोली भाषा छत्तीसगढ़ी व अन्य स्थानीय बोली-भाषा से शुरू हुई, उसके बाद दूसरी भाषा से परिचय हुआ। राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ की संस्कृति, परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए राजभाषा आयोग की स्थापना की है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के नेतृत्व में राज्य सरकार प्रदेश के खान-पान, रहन-सहन, पहनावा व तीज त्यौहारों के संरक्षण एवं सवंर्धन के बेहतर काम कर रही है।
Cultural heritage of Chhattisgarh : राज्य सरकार ने विलुप्त हो रही संस्कृति एवं परंपरा को पुर्नस्थापित करने का काम किया। छत्तीसगढ़िया लोगों को सम्मान दिलाया है। आयोग का उद्देश्य सार्थक हो रहा है। मंत्री डहरिया ने आगे कहा कि छत्तीसगढ़ में प्रतिभा की कमी नहीं है, ऐसे प्रतिभाओं को अवसर मिलने से राज्य एक अलग पहचान बनेगी। सीएम बघेल ने अपने प्रदेश की अनोखी संस्कृतियों को संजो के रखने लिए विभिन्न प्रकार की योजनाएं निकाली है। वहीं छत्तीसगढ़ की जनजातीय एवं लोक संस्कृति की परंपरा की पहचान के लिए निरंतर पहल की जा रही है। कला रूपों के प्रदर्शन हेतु राज्य में एवं अन्य प्रदेशों में भी सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रस्तुति की व्यवस्था की जाती है। पारंपरिक उत्सवों, अशासकीय संस्थाओं को आर्थिक सहायता प्रदान कर सांस्कृतिक गतिविधियों को प्रोत्साहित किया जा रहा है।