Reported By: Supriya Pandey
,Raipur Organ Donation। Image Credit: Pixabay
रायपुर। Raipur Organ Donation: कुछ कहानियाँ अधूरी होकर भी पूरी होती हैं, क्योंकि वे सिर्फ एक व्यक्ति तक सीमित नहीं रहती। वे कई जिंदगियों का हिस्सा बन जाती है। ऐसी ही कहानी है 18 वर्षीय चंगोराभाठा निवासी आर्यंश आडिल की, जो जेईई की तैयारी कर रहा था और अपने सपनों को साकार करने की राह पर था। लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। एक दर्दनाक सड़क दुर्घटना ने उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया। हालांकि, आर्यंश की यह यात्रा यहीं नहीं रुकी। उसने जाते-जाते भी जीवन बाँट दिया और अमर हो गया। आर्यश के माता-पिता, वर्षा और असीम, के लिए यह क्षण किसी दुःस्वप्न से कम नहीं था। अपने बेटे को खोने की असहनीय पीड़ा के बीच उन्होंने एक ऐसा फैसला लिया, जिसने न केवल आर्यंश को अमर बना दिया, बल्कि पाँच और जिंदगियों में नई उम्मीद की रोशनी जगा दी।
आर्यंश की माँ वर्षा ने बताया कि, उनके बेटे की अंतिम इच्छा थी कि, यदि कभी उसके साथ कोई अनहोनी हो जाए, तो उसके अंग जरूरतमंद लोगों को दान कर दिए जाएँ। अपने बेटे की इसी इच्छा को पूरा करने के लिए उन्होंने उसका लीवर, दोनों किडनी और आँखों के कॉर्निया दान कर दिए। भिलाई की एक युवती और एक युवक को उसकी किडनी मिली, जिससे उनकी जिंदगी फिर से सामान्य हो गई। वहीं रायपुर के एक युवक को उसका लीवर प्रत्यारोपित किया गया, जिससे उसे नया जीवन मिला। उसकी आँखों की रोशनी दो और लोगों की जिंदगी में उजाला बन गई। आर्यंश भले ही शारीरिक रूप से इस दुनिया से चला गया, लेकिन वह इन पाँच लोगों की साँसों में बसेगा, उनकी आँखों से दुनिया देखेगा और उनके साथ हर धड़कन में जिएगा। आर्यंश की माँ ने IBC 24 के माध्यम से न्याय की गुहार लगाई है।
उन्होंने बताया कि एक तेज़ रफ्तार चार पहिया वाहन ने उनके बेटे को टक्कर मारी और सड़क पर बेसहारा छोड़ दिया। कोई मदद के लिए नहीं रुका। यह सिर्फ एक दुर्घटना नहीं थी, बल्कि समाज के संवेदनहीन हो जाने की एक तस्वीर थी। श्मशान में बेटियों का जाना अब भी कई जगहों पर वर्जित माना जाता है, लेकिन आर्यंश की बहन अनुष्का ने न केवल इस रीतियों को चुनौती दी, बल्कि अपने भाई को अंतिम विदाई देकर उसकी अच्छाई और संवेदनशीलता को जीवित रखने का संकल्प भी लिया। यह सिर्फ अंतिम संस्कार नहीं था, बल्कि एक वचन था। आर्यंश की सोच और उसके मूल्यों को हमेशा संजोकर रखने का।
Raipur Organ Donation: आर्यंश सिर्फ एक नाम नहीं, बल्कि एक मिसाल बन गया है। उसके माता-पिता का यह साहसिक कदम समाज को यह सिखाता है कि, अपनों को खोने का दर्द भले ही असहनीय हो, लेकिन उनका अंगदान कई घरों में खुशियों की रोशनी बन सकता है। वह चला गया, लेकिन अधूरा नहीं। उसने अपनी अंतिम इच्छा पूरी की और पाँच नई साँसें इस दुनिया को दे गया। वह अब भी किसी की धड़कनों में धड़क रहा है, किसी की आँखों में सपनों की तरह ज़िंदा है।