Surguja Abortion Case: मौत बांट रही हैं मेडिकल दुकानें! नाबालिगों को दी गई गर्भपात की गोलियां, 48 घंटे में दो की मौत
मौत बांट रही हैं मेडिकल दुकानें...Surguja Abortion Case: Medical shops are distributing death! Abortion pills given to minors, two died
Surguja Abortion Case | Image Source | IBC24
- सरगुजा में प्रतिबंधित गर्भपात की दवाओं की खुलेआम बिक्री,
- दो नाबालिकों की दर्दनाक मौत के बाद भी जिम्मेदार विभाग सुस्त,
- दो नाबालिकों की जान जान जाने से इलाके में फैली सनसनी,
सरगुजा: Surguja Abortion Case: जिले में प्रतिबंधित गर्भपात की दवाइयों की खुलेआम बिक्री ने दो नाबालिकों की जान ले ली जिससे इलाके में सनसनी फैल गई है। इन मामलों ने स्वास्थ प्रणाली और दवा नियंत्रण व्यवस्था की गंभीर खामियों को उजागर कर दिया है।
Surguja Abortion Case: पहला मामला सरगुजा से है जहां एक माँ अपनी नाबालिक बेटी की दर्दनाक मौत को आज भी नहीं भुला पाई हैं। उनकी बेटी के साथ उसके ही नाबालिक प्रेमी ने पहले शारीरिक शोषण किया और फिर जब वह गर्भवती हो गई तो बिना किसी चिकित्सकीय परामर्श के उसे गर्भपात की दवाइयां खिला दीं। दवा के सेवन के बाद उसकी तबीयत बिगड़ती चली गई और इलाज से पहले ही उसकी मौत हो गई। दूसरा मामला जशपुर जिले से है जहां 14 वर्षीय नाबालिक चार माह की गर्भवती थी। आरोप है कि उसके प्रेमी ने भी उसे गर्भपात की दवाइयां जबरन दीं जिससे उसकी हालत बिगड़ गई और उसकी भी जान चली गई। इन दोनों मामलों में एक बात समान है बिना डॉक्टर की निगरानी और परामर्श के नाबालिकों को गर्भपात की दवाइयां दी गईं और नतीजा जानलेवा साबित हुआ।
Surguja Abortion Case: स्वास्थ्य विभाग भी मानता है कि गर्भपात की दवाइयां बिना डॉक्टर की निगरानी में देना बेहद खतरनाक है। इस विषय में सरगुजा के डीपीएम डॉ. पुष्पेंद्र राम का कहना है की गर्भपात की दवाइयों का उपयोग तभी किया जा सकता है जब डॉक्टर की निगरानी हो। 9 हफ्ते तक के गर्भ का दवा से गर्भपात एमबीबीएस डॉक्टर की देखरेख में हो सकता है। 12 हफ्ते तक सर्जिकल अबॉर्शन संभव है लेकिन 20-24 हफ्तों तक के गर्भ के लिए दो डॉक्टरों की टीम आवश्यक है। इससे अधिक के लिए विशेषज्ञों की टीम जरूरी होती है।
Surguja Abortion Case: अब ऐसे में कई दवा दुकानदार मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी एक्ट के नियमों की खुलकर धज्जियां उड़ा रहे हैं। वहीं जिम्मेदार विभाग की कार्यवाही महज औपचारिकता तक सिमटी दिखती है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर इस मामले में गंभीरता से जांच और छापेमारी की जाए तो ऐसे कई दुकानदारों का भंडाफोड़ हो सकता है जो अवैध रूप से प्रतिबंधित दवाइयां बेच रहे हैं। अब यह देखना होगा कि जिम्मेदार विभाग इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए वास्तविक कदम उठाता है या फिर कुछ दिनों की सुर्खियों के बाद मामला फिर ठंडे बस्ते में चला जाएगा।

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