Publish Date - May 4, 2025 / 03:00 PM IST,
Updated On - May 4, 2025 / 03:00 PM IST
India Pakistan Tension | Photo Credit: IBC24
HIGHLIGHTS
सिंधु जल संधि और विवाद
भारत का जलविकृति नियंत्रण
नयी दिल्ली: India Pakistan Tension भारत ने चिनाब नदी पर बगलिहार बांध के माध्यम से पानी के प्रवाह को रोक दिया है और झेलम नदी पर बने किशनगंगा बांध को लेकर भी इसी तरह के कदम उठाने की योजना बना रहा है। एक सूत्र ने यह जानकारी दी। मामले की जानकारी रखने वाले एक सूत्र ने बताया कि जम्मू के रामबन में बगलिहार जलविद्युत बांध और उत्तरी कश्मीर में किशनगंगा जलविद्युत बांध भारत को पानी छोड़ने के समय को विनियमित करने की क्षमता देते हैं।
India Pakistan Tension भारत ने जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में आतंकवादी हमले के बाद दशकों पुरानी संधि को निलंबित करने का निर्णय लिया। इस हमले में 26 लोगों की मौत हो गई थी जिनमें अधिकतर पर्यटक थे। विश्व बैंक की मध्यस्थता से की गई सिंधु जल संधि ने 1960 से भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के उपयोग को नियंत्रित किया है।
बगलिहार बांध दोनों पड़ोसियों के बीच लंबे समय से विवाद का विषय रहा है। पाकिस्तान इस मामले में विश्व बैंक की मध्यस्थता की मांग कर चुका है। पाकिस्तान को किशनगंगा बांध को लेकर भी खासकर झेलम की सहायक नदी नीलम पर इसके प्रभाव के कारण आपत्ति है।
"भारत ने बगलिहार बांध पर पानी के प्रवाह को क्यों रोका है?"
भारत ने बगलिहार बांध के माध्यम से पानी के प्रवाह को नियंत्रित करने का कदम इसलिए उठाया ताकि वह जम्मू-कश्मीर में जलविकृति को अपने नियंत्रण में रख सके। यह कदम बंगलिहार और किशनगंगा बांधों के निर्माण से भारत को पानी छोड़ने के समय को विनियमित करने की क्षमता प्रदान करता है, जिससे जलवितरण को नियंत्रित किया जा सकता है।
"किशनगंगा बांध पर पाकिस्तान को क्यों आपत्ति है?"
पाकिस्तान को किशनगंगा बांध पर खासकर नीलम नदी (जो झेलम की सहायक नदी है) पर इसके प्रभाव के कारण आपत्ति है। पाकिस्तान का कहना है कि इस बांध से नीलम नदी का पानी प्रभावित हो सकता है, जिससे उसके जल संसाधन पर बुरा असर पड़ेगा, जो सिंधु जल संधि के उल्लंघन के रूप में माना जा सकता है।
"सिंधु जल संधि क्या है और यह क्यों महत्वपूर्ण है?"
सिंधु जल संधि 1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच एक समझौता था, जिसका उद्देश्य दोनों देशों को सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के जल के समान उपयोग की अनुमति देना था। यह संधि दोनों देशों के बीच जलविकृति विवादों को सुलझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।