नयी दिल्ली, 30 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बुधवार को राज्यों से कहा कि वे कुष्ठ रोग से प्रभावित व्यक्तियों के खिलाफ विभिन्न कानूनों में मौजूद ‘‘भेदभावपूर्ण और अपमानजनक’’ प्रावधानों में संशोधन करने के लिए विधानसभा का एक दिवसीय विशेष सत्र बुलाएं या अध्यादेश पारित करें।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि केंद्र और राज्य द्वारा कानून के ऐसे भेदभावपूर्ण और अपमानजनक प्रावधानों को हटाना, इन लोगों की बड़ी सेवा करने के समान होगा।
पीठ ने कहा, ‘‘राज्य नियमित मानसून सत्र या शीतकालीन सत्र का इंतजार करने के बजाय एक विशेष विधानसभा सत्र या एक दिवसीय सत्र बुला सकते हैं और कुष्ठ रोग से प्रभावित व्यक्तियों के खिलाफ भेदभावपूर्ण प्रावधानों को हटा सकते हैं या उनमें संशोधन कर सकते हैं। जहां सत्र बुलाना संभव न हो, वहां अध्यादेश लाया जा सकता है।’’
शीर्ष अदालत उन जनहित याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिनमें 2010 में शुरू की गई एक याचिका भी शामिल थी, जिसमें पीठ ने पूर्व में राज्यों को विभिन्न कानूनों आदि में उन प्रावधानों की पहचान करने के लिए एक समिति बनाने का निर्देश दिया था, जो कुष्ठ रोग से प्रभावित या ठीक हो चुके व्यक्तियों के साथ भेदभाव करते हैं।
इससे पहले, अदालत ने कहा था कि उसे बताया गया है कि राज्य के 145 से ज्यादा विधान ऐसे हो सकते हैं, जिनमें ऐसे आपत्तिजनक प्रावधान अब भी मौजूद हैं।
शीर्ष अदालत ने बुधवार को राज्यों से सुधार की कार्रवाई करने का आग्रह किया। उसने कहा, ‘‘यह हमारे संज्ञान में लाया गया है, अब सुधार संबंधी कार्रवाई की जानी चाहिए। यह अदालत का काम नहीं है, बल्कि राज्य सरकार का काम है।’’
भाषा
शफीक पारुल
पारुल