अरावली पर्वतमाला की पुनर्परिभाषा पर विवाद : एक विस्तृत विवरण

अरावली पर्वतमाला की पुनर्परिभाषा पर विवाद : एक विस्तृत विवरण

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  • Publish Date - December 29, 2025 / 05:14 PM IST,
    Updated On - December 29, 2025 / 05:14 PM IST

(गुंजन शर्मा)

नयी दिल्ली, 29 दिसंबर (भाषा) विश्व की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखलाओं में से एक, अरावली की पहाड़ियों को नये सिरे से परिभाषित करने के पर्यावरणीय प्रभावों को लेकर राजनीतिक विवाद काफी बढ़ गया है।

अरावली पर्वतमाला की नयी परिभाषा को लेकर हो रहा विवाद क्या है और इसके क्या कारण हैं?

1. यह विवाद किस बारे में है?

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक समिति ने इस साल अक्टूबर में विश्व की सबसे पुरानी पर्वत प्रणाली की रक्षा के लिए अरावली पहाड़ियों और पर्वत श्रृंखलाओं की परिभाषा में बदलाव की सिफारिश की थी।

उच्चतम न्यायालय ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की समिति की सिफारिशों को पिछले महीने स्वीकार कर लिया था, लेकिन शीर्ष अदालत ने 20 नवंबर के फैसले में दिए गए उन निर्देशों को सोमवार को स्थगित रखने का आदेश दिया, जिसमें अरावली पहाड़ियों और पर्वतमाला की एक समान परिभाषा को स्वीकार किया गया था।

2. समिति की सिफारिशें क्या थीं?

समिति ने सिफारिश की थी कि ‘अरावली पहाड़ी’ को अरावली जिलों में स्थित किसी भी भू-आकृति के रूप में परिभाषित किया जाए, जिसकी ऊंचाई उसके स्थानीय भू-भाग से 100 मीटर या उससे अधिक हो। इसके अलावा ‘अरावली पर्वतमाला’ दो या दो से अधिक ऐसी पहाड़ियों का समूह होगा जो एक दूसरे से 500 मीटर की दूरी के भीतर स्थित हों।

समिति ने अरावली पहाड़ियों को परिभाषित करते हुए कहा, ‘‘ अरावली जिले में स्थित कोई भी भू-आकृति, जिसकी ऊंचाई स्थानीय भू-आकृति से 100 मीटर या उससे अधिक हो, अरावली पहाड़ियों के रूप में जानी जाएगी। इस निम्नतम समोच्च रेखा द्वारा घिरे क्षेत्र के भीतर स्थित संपूर्ण भू-आकृति। पर्वत, उसके सहायक ढलान और उससे संबंधित भू-आकृतियां, चाहे उनका ढलान कुछ भी हो, अरावली पहाड़ियों का हिस्सा मानी जाएंगी।’’

3. अरावली की नयी परिभाषा का विरोध

पर्यावरण कार्यकर्ताओं, वैज्ञानिकों और विपक्ष ने आरोप लगाया है कि अरावली की इस पुनर्परिभाषा से नाजुक पर्वतीय पारिस्थितिकी तंत्र के विशाल क्षेत्रों में खनन की अनुमति मिल सकती है।

केंद्र सरकार की नयी परिभाषा का विरोध करने वालों ने आरोप लगाया है कि यह पर्याप्त वैज्ञानिक मूल्यांकन या सार्वजनिक परामर्श के बिना किया गया था।

इसलिए, इससे हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में फैले अरावली पर्वतमाला के बड़े हिस्से खनन के खतरे में पड़ सकते हैं।

4. अरावली पर्वतमाला का महत्व

अरावली पर्वतमाला और पर्वत श्रृंखलाएं भारत की सबसे प्राचीन भूवैज्ञानिक संरचनाओं में से एक हैं, जो दिल्ली से लेकर हरियाणा, राजस्थान और गुजरात तक फैली हुई हैं। ऐतिहासिक रूप से, इन्हें राज्य सरकारों द्वारा 37 जिलों में मान्यता दी गई है। उत्तरी मरुस्थलीकरण के खिलाफ एक प्राकृतिक अवरोध और जैव विविधता तथा जल पुनर्भरण के रक्षक के रूप में उनकी पारिस्थितिक भूमिका को रेखांकित किया गया है।

उच्चतम न्यायालय ने नवंबर में इस बात पर बल दिया था कि अरावली पर्वतमाला क्षेत्र में अनियंत्रित खनन ‘देश की पारिस्थितिकी के लिए एक बड़ा खतरा’ है और उनकी सुरक्षा के लिए समान मानदंड निर्धारित करने का निर्देश दिया था। इसलिए इनका संरक्षण पारिस्थितिक स्थिरता, सांस्कृतिक विरासत और सतत विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

5. नये खनन पट्टों पर प्रतिबंध

उच्चतम न्यायालय ने 20 नवंबर को अरावली पहाड़ियों और पर्वत श्रृंखलाओं की एक समान परिभाषा को स्वीकार कर लिया था और विशेषज्ञों की रिपोर्ट आने तक दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में फैले इसके क्षेत्रों के भीतर नये खनन पट्टे देने पर प्रतिबंध लगा दिया था।

अरावली पर्वतमाला की नयी परिभाषा के निहितार्थों को लेकर व्यापक चिंता के बाद, केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने नए खनन पट्टों पर प्रतिबंध लगाने की भी घोषणा की।

6. नयी परिभाषा के अनुसार क्या संरक्षित रहता?

अरावली के कुछ हिस्सों को बाघ अभयारण्य, राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य, इन संरक्षित क्षेत्रों के आसपास के पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र और क्षतिपूर्ति वनीकरण योजना के तहत आर्द्रभूमि और वृक्षारोपण के रूप में नामित किया गया है।

अरावली पहाड़ियों के रूप में उनकी स्थिति के बावजूद, ये क्षेत्र खनन या विकास के लिए प्रतिबंधित रहते हैं, जब तक कि संबंधित वन्यजीव और वन अधिनियमों के तहत विशेष रूप से अनुमति न दी जाए।

भाषा रवि कांत रवि कांत माधव

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