नयी दिल्ली, 15 दिसंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने पत्नी की आत्महत्या के मामले में एक व्यक्ति को निचली अदालत द्वारा बरी करने के फैसले को यह कहते हुए बरकरार रखा है कि पति के विवाहेत्तर संबंध का होना मात्र अपराध के लिए कसूरवार ठहराने के वास्ते पर्याप्त नहीं है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि दंपति सुखी जीवन जी रहा था, इसलिए दहेज की मांग का आरोप न तो विश्वसनीय था और न ही अभियोजन पक्ष द्वारा किसी भी तरह से साबित हुआ था।
न्यायमूर्ति विवेक चौधरी और न्यायमूर्ति मनोज जैन की पीठ ने कहा, “इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि विवाहेत्तर संबंध का होना मात्र भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) को लगाने के लिए पर्याप्त नहीं है।”
पीठ ने कहा, “ऐसा कोई सबूत नहीं है जो नाजरीन (पीड़िता) को आत्महत्या करने के लिए तत्काल या प्रत्यक्ष रूप से उकसाने या किसी प्रकार के आचरण का संकेत देता हो। इसलिए, हमें निचली अदालत द्वारा दिए गए निष्कर्षों में कोई विसंगति नहीं दिखती।”
अदालत ने 12 दिसंबर के अपने फैसले में, अभियोजन पक्ष द्वारा दायर उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें हामिद के बरी होने को चुनौती दी गई थी। उसकी पत्नी ने नवंबर 2010 में खुदकुशी कर ली थी और हामिद पर उसे आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप था।
अभियोजन पक्ष के अनुसार, नाजरीन को उसके रिश्तेदार 30 अक्टूबर 2010 को एम्स में लेकर आए थे। नाजरीन पहले भी कई बार आत्महत्या का प्रयास कर चुकी थी।
उसकी मां ने पुलिस को बताया कि नाजरीन ने 2004 में हामिद से शादी की थी और उनके दो बच्चे थे तथा वे खुशी से रह रहे थे।
हालांकि, 2008 के आसपास हामिद ने दूसरी महिला से शादी करने की इच्छा जताई थी और यहीं से उनके वैवाहिक जीवन में दरार आ गई। पीड़िता की मां ने दावा किया कि हामिद अपनी पत्नी को पीटता था।
आरोप यह भी था कि उसने अपनी पत्नी को दो-चार लाख रुपये की पेशकश की ताकि वह वैवाहिक दायित्वों से मुक्त हो जाए और दूसरी महिला से शादी कर सके।
पीड़िता की मां का दावा था कि उनकी बेटी आत्महत्या नहीं कर सकती थी और उसकी हत्या उसके पति और ससुराल वालों ने की थी। नाजरीन की मृत्यु 30 नवंबर 2010 को अस्पताल में हुई।
भाषा
नोमान नरेश
नरेश