मध्यस्थों की नियुक्ति करते समय अदालतों को समझौते के अस्तित्व का पता लगाना होगा : न्यायालय

मध्यस्थों की नियुक्ति करते समय अदालतों को समझौते के अस्तित्व का पता लगाना होगा : न्यायालय

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  • Publish Date - July 18, 2024 / 10:30 PM IST,
    Updated On - July 18, 2024 / 10:30 PM IST

नयी दिल्ली, 18 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने बृहस्पतिवार को कहा कि जब मध्यस्थों की नियुक्ति की जाती है, उस समय जांच का दायरा “सीमित” होता है, और अदालतों को केवल यह पता लगाना होता है कि प्रतिद्वंद्वी पक्षों के बीच कोई मध्यस्थता समझौता अस्तित्व में है या नहीं, और “इसके अलावा कुछ नहीं”।

शीर्ष अदालत ने सात न्यायाधीशों की पीठ के फैसले का हवाला दिया और कहा कि मध्यस्थ या मध्यस्थों की नियुक्ति करते समय अदालतों से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वे विवाद के आंशिक या पूर्ण समाधान के संबंध में प्रतिद्वंद्वी पक्षों के दावे या प्रतिवाद पर विचार करें।

प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा, “यह स्पष्ट है कि मध्यस्थ की नियुक्ति के स्तर पर जांच का दायरा मध्यस्थता समझौते के प्रथम दृष्टया अस्तित्व की जांच तक ही सीमित है, और इसके अलावा कुछ नहीं।”

पीठ के लिये 85 पन्नों का फैसला लिखते हुए न्यायमूर्ति पारदीवाला ने कहा कि वह एक अन्य फैसले के इस नतीजे से सहमत नहीं है कि “मध्यस्थता कानून की धारा 11 के तहत ‘समझौते और संतुष्टि’ के मुद्दे पर विचार करते समय संदर्भ न्यायालय का अधिकार क्षेत्र पूर्व दृष्टया गैर-मध्यस्थता और तुच्छ विवादों को छांटने तक विस्तारित होता है, जो बाद के निर्णय (सात न्यायाधीशों की पीठ के) के बावजूद लागू होता रहेगा।”

यह फैसला एसबीआई जनरल इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड की अपील पर आया, जिसने गुजरात उच्च न्यायालय के 2023 के फैसले को चुनौती दी थी।

उच्च न्यायालय ने एक साझेदारी फर्म मेसर्स कृष स्पिनिंग के बीमा कंपनी के विरुद्ध बीमा दावे पर विवाद का निपटारा करने के लिए मध्यस्थ की नियुक्ति का आदेश दिया था।

भाषा प्रशांत पवनेश

पवनेश