अरावली पहाड़ियों की परिभाषा: न्यायालय ने 20 नवंबर के निर्देश स्थगित रखने का आदेश दिया

अरावली पहाड़ियों की परिभाषा: न्यायालय ने 20 नवंबर के निर्देश स्थगित रखने का आदेश दिया

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  • Publish Date - December 29, 2025 / 06:57 PM IST,
    Updated On - December 29, 2025 / 06:57 PM IST

नयी दिल्ली, 29 दिसंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने अपने 20 नवंबर के फैसले में दिए गए उन निर्देशों को सोमवार को स्थगित रखने का आदेश दिया, जिसमें अरावली पहाड़ियों और पर्वतमाला की एक समान परिभाषा को स्वीकार किया गया था।

इसने कहा कि कुछ ‘‘महत्वपूर्ण अस्पष्टताओं’’ को दूर करने की आवश्यकता है, जिनमें यह भी शामिल है कि क्या 100 मीटर की ऊंचाई और पहाड़ियों के बीच 500 मीटर का अंतर पर्यावरण संरक्षण के दायरे के एक महत्वपूर्ण हिस्से को कम कर देगा।

भारत के प्रधान न्यायाधीश सूर्यकांत तथा न्यायमूर्ति जे.के. माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की अवकाशकालीन पीठ ने इस मुद्दे की व्यापक और समग्र समीक्षा के लिए इस क्षेत्र के विशेषज्ञों को शामिल कर एक उच्चस्तरीय समिति गठित करने का प्रस्ताव रखा।

पीठ ने कहा कि प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि समिति की पिछली रिपोर्ट और फैसले में ‘‘कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों को स्पष्ट रूप से स्पष्ट करने में चूक हुई है’’ और अरावली क्षेत्र की पारिस्थितिकी अखंडता को कमजोर करने वाली किसी भी नियामकीय खामी को रोकने के लिए ‘‘आगे की पड़ताल की सख्त जरूरत है’’।

इसने यह भी निर्देश दिया कि 9 मई, 2024 के आदेश के अनुसार, अगले आदेश तक, 25 अगस्त, 2010 की एफएसआई रिपोर्ट में परिभाषित ‘अरावली पहाड़ियों और पर्वतमाला’ में खनन के लिए इसकी पूर्व अनुमति के बिना कोई अनुमति नहीं दी जाएगी।

पीठ ने कहा, ‘‘पर्यावरणविदों में काफी आक्रोश देखने को मिला है, जिन्होंने नयी स्वीकार की गई परिभाषा और इस न्यायालय के निर्देशों की गलत व्याख्या और अनुचित कार्यान्वयन की संभावना पर गहरी चिंता व्यक्त की है।’’

इसने कहा कि यह सार्वजनिक असहमति और आलोचना अदालत द्वारा जारी किए गए कुछ शब्दों और निर्देशों में कथित अस्पष्टता और स्पष्टता की कमी से उत्पन्न होती प्रतीत होती है।

पीठ ने ‘अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की परिभाषा एवं संबंधित मुद्दे’ शीर्षक वाले स्वतः संज्ञान मामले में पारित अपने आदेश में कहा, ‘‘परिणामस्वरूप, अरावली क्षेत्र की पारिस्थितिकी अखंडता को कमजोर करने वाली किसी भी विनियामक कमी को रोकने के लिए आगे की जांच और स्पष्टीकरण की सख्त जरूरत है।’’

उच्चतम न्यायालय ने अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की एक समान परिभाषा को 20 नवंबर को स्वीकार कर लिया था तथा विशेषज्ञों की रिपोर्ट आने तक दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान एवं गुजरात में फैले इसके क्षेत्रों में नए खनन पट्टे देने पर रोक लगा दी थी।

इसने विश्व की सबसे पुरानी पर्वत प्रणाली की सुरक्षा के लिए अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की परिभाषा पर पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय की एक समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया था।

समिति ने अनुशंसा की थी कि अरावली पहाड़ी की परिभाषा अरावली जिलों में स्थित ऐसी किसी भी भू-आकृति के रूप में की जाए, जिसकी ऊंचाई स्थानीय भू-स्तर से 100 मीटर या उससे अधिक हो; और और ‘‘अरावली पर्वतमाला’’ एक-दूसरे से 500 मीटर के भीतर दो या अधिक ऐसी पहाड़ियों का संग्रह होगा।

सोमवार को पारित अपने आदेश में, पीठ ने उल्लेख किया कि इस फैसले के बाद समिति के निष्कर्षों और अदालत द्वारा दी गई बाद की मंजूरी को चुनौती देने वाले आवेदन और याचिकाएं उसके समक्ष आई हैं, साथ ही कुछ निर्देशों पर स्पष्टीकरण भी मांगा गया है।

इसने कहा, ‘‘हालांकि हमारे पास इन बातों को प्रथम दृष्टया स्वीकार करने के लिए कोई वैज्ञानिक कारण नहीं हैं, न ही इन व्यक्तिगत दावों को प्रमाणित करने के लिए कोई ठोस सबूत या विशेषज्ञ साक्ष्य है, फिर भी, प्रथम दृष्टया ऐसा प्रतीत होता है कि समिति की रिपोर्ट और इस न्यायालय के निर्णय दोनों में कुछ महत्वपूर्ण मुद्दों को स्पष्ट रूप से स्पष्ट करने में चूक हुई है।’’

पीठ ने कहा कि समिति की रिपोर्ट को लागू करने या 20 नवंबर के निर्देशों को क्रियान्वित करने से पहले, सभी आवश्यक हितधारकों को शामिल करने के बाद एक ‘‘निष्पक्ष, तटस्थ, स्वतंत्र विशेषज्ञ राय’’ प्राप्त की जानी चाहिए और उस पर विचार किया जाना चाहिए।

शीर्ष अदालत ने कहा कि इस प्रकार का कदम महत्वपूर्ण अस्पष्टताओं को दूर करने और ऐसे सवालों पर निश्चित मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए आवश्यक है-जैसे कि क्या ‘अरावली पहाड़ियों और पर्वत श्रृंखलाओं’ की परिभाषा, जो विशेष रूप से दो या दो से अधिक अरावली पहाड़ियों के बीच 500 मीटर के क्षेत्र तक सीमित है, एक संरचनात्मक विरोधाभास पैदा करती है जिसमें संरक्षित क्षेत्र का भौगोलिक दायरा काफी हद तक संकुचित हो जाता है।

पीठ ने कहा कि परिणामस्वरूप, यह निर्धारित किया जाना चाहिए कि क्या इस प्रतिबंधात्मक सीमांकन ने ‘गैर-अरावली’ क्षेत्रों के दायरे को विपरीत रूप से विस्तृत कर दिया है, जिससे उन भूभागों में अनियमित खनन और अन्य विघटनकारी गतिविधियों को जारी रखने में सुविधा हो रही है जो पारिस्थितिकी रूप से संस्पर्शी हैं लेकिन तकनीकी रूप से इस परिभाषा द्वारा बाहर रखे गए हैं।

इसने कहा, ‘‘क्या 100 मीटर और उससे अधिक की ऊंचाई वाली अरावली पहाड़ियां, बीच की दूरी निर्धारित 500 मीटर की सीमा से अधिक होने पर भी, एक संस्पर्शी पारिस्थितिकी संरचना का निर्माण करती हैं?’’

न्यायालय ने कहा, ‘‘क्या यह व्यापक रूप से प्रचारित आलोचना कि राजस्थान की 12,081 पहाड़ियों में से केवल 1,048 पहाड़ियाँ ही 100 मीटर की ऊँचाई की सीमा को पूरा करती हैं, जिससे शेष निचली पर्वत श्रृंखलाओं को पर्यावरण संरक्षण से वंचित कर दिया जाता है, तथ्यात्मक और वैज्ञानिक रूप से सटीक है?’’

पीठ ने कहा कि यदि यह आकलन किसी महत्वपूर्ण नियामक खामी की सही पहचान करता है, तो यह निर्धारित किया जाना चाहिए कि क्या एक व्यापक वैज्ञानिक और भूवैज्ञानिक जांच की आवश्यकता है।

इसने कहा, ‘‘यह अध्ययन ऊपर बताए गए प्रश्नों की व्यापक और समग्र पड़ताल करेगा, और अन्य बातों के अलावा अनुशंसित परिभाषा के दायरे में आने वाले विशिष्ट क्षेत्रों की निश्चित गणना जैसे मापदंडों की भी पड़ताल करेगा।

पीठ ने केंद्र, दिल्ली, राजस्थान, हरियाणा और गुजरात को नोटिस जारी किया तथा मामले की सुनवाई 21 जनवरी के लिए निर्धारित कर दी।

इसने कहा, ‘‘इस बीच, पूर्ण न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति और व्यापक जनहित में, हम यह आवश्यक समझते हैं कि समिति द्वारा प्रस्तुत सिफारिशों के साथ-साथ इस न्यायालय द्वारा 20 नवंबर, 2025 को दिए गए फैसले में निर्धारित निष्कर्षों और निर्देशों को स्थगित रखा जाए।’’

भाषा

नेत्रपाल माधव

माधव