नयी दिल्ली, पांच सितंबर (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने 15 साल से अलग रह रहे जोड़े को तलाक देने के आदेश को बरकरार रखते हुए मंगलवार को कहा कि जब इस बंधन के कोई मायने ही नहीं रह जाएं, तो स्थिति को स्वीकार नहीं करने का कोई उद्देश्य नहीं है।
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की पीठ ने तलाक देने के पारिवारिक अदालत के आदेश के खिलाफ पत्नी की अपील पर सुनवाई करते हुए कहा कि दोनों पक्षों के बीच सुलह की कोई संभावना नहीं है और लंबे समय तक अलगाव के दौरान याचिकाकर्ता द्वारा ‘‘झूठे आरोप, पुलिस रिपोर्ट और आपराधिक मुकदमे’’ मानसिक उत्पीड़न की वजह बना।
अदालत ने कहा कि इस रिश्ते को जारी रखने या पति को तलाक देने के पारिवारिक अदालत के आदेश को संशोधित करने संबंधी कोई भी कदम केवल दोनों पक्षों के लिए और क्रूरता पैदा करने के समान होगा।
पति ने इस आधार पर तलाक मांगा था कि पत्नी उसके और उसके परिवार के सदस्यों के प्रति आक्रामक, झगड़ालू और हिंसक थी और अक्सर बिना बताए ससुराल छोड़ देती थी और उसके और उसके परिवार के खिलाफ कई झूठी शिकायतें दर्ज कराती थी।
भाषा शफीक माधव
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