एसएफएफ कमांडो की मौत के तीन सप्ताह बाद शोक मना रहे परिजन और गांव वाले

एसएफएफ कमांडो की मौत के तीन सप्ताह बाद शोक मना रहे परिजन और गांव वाले

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  • Publish Date - September 23, 2020 / 09:28 AM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:48 PM IST

(प्रशांत रंगनेकर)

लेह, 23 सितंबर (भाषा) स्पेशल फ्रंटियर फोर्स (एसएफएफ) के 53 वर्षीय कमांडो तेंजिन नीमा की मौत के तीन सप्ताह बाद दुख और गर्व से ओत-प्रोत उनके परिजन और गांव वाले उन्हें याद करते नहीं थकते।

पैंगोंग झील क्षेत्र के पास 29-30 अगस्त की दरम्यानी रात एक बारूदी सुरंग पर पैर पड़ जाने से नीमा की मौत हो गई थी।

आधिकारिक सूत्रों के अनुसार नीमा की मौत का भारत-चीन के बीच जारी विवाद से कोई संबंध नहीं था।

तेंजिन का अंतिम संस्कार, लेह से लगभग पांच किलोमीटर दूर चोगलमसार में स्थित सोनमलिंग तिब्बती बस्ती में उनके गांव के पास पूरे सैन्य सम्मान के साथ किया गया था।

उनके भाई नांगदक ने कहा, “उनके अंतिम संस्कार में बहुत से लोग आए थे।”

नागंदक ने कहा, “हमें दुख के साथ गर्व भी है। उन्होंने अपनी मातृभूमि – तिब्बत और भारत के लिए अपना जीवन न्योछावर कर दिया।”

तेंजिन के परिवार में पत्नी, मां और चार बच्चे हैं।

उनके घर में दुख भरे माहौल में प्रार्थना का धीमा स्वर सुना जा सकता है।

तेंजिन को श्रद्धांजलि देने के लिए परिजन और लामाओं का तांता लगा हुआ है।

दिवंगत सैनिक की मां और पत्नी एक कमरे में हाथ से चलाने वाला प्रार्थना चक्र लेकर प्रार्थना करती रहती हैं तो दूसरे कमरे में तेंजिन का बड़ा सा चित्र लगा है जिसके सम्मुख लामा प्रार्थना करते हैं।

एक अन्य कमरे में चौबीस घंटे दीपक जलता है जिससे गर्माहट बनी रहती है।

तेंजिन के रिश्तेदार तुंडूप ताशी ने कहा, “इन दीपकों को 59 दिन तक जलाए रखना होता है।”

गांववालों का कहना है कि तेंजिन की शहादत से भारत में रह रहे तिब्बती शरणार्थी गर्व महसूस करते हैं।

सोनमलिंग तिब्बती बस्ती के केंद्रीय तिब्बती प्रशासन के मुख्य प्रतिनिधि अधिकारी सेटेन वांगचुक ने कहा, “तेंजिन ने तिब्बत और भारत के लिए जान दी। इससे हम गर्व महसूस करते हैं।”

उन्होंने कहा, “हालांकि अगली पीढ़ी ने भारत में जन्म लिया है, उनकी जड़ें मजबूत हैं। तिब्बत से दूर रहकर हमारा तिब्बत से प्रेम कम नहीं हुआ है। भारत हमारा दूसरा घर है।”

एसएफएफ की स्थापना 1962 में चीन से युद्ध के बाद हुई थी और इसमें अधिकतर तिब्बती शरणार्थी सैनिक के रूप में शामिल हैं।

तेंजिन के भाई ने बताया कि 1950 में तिब्बत पर चीनी आक्रमण के बाद तेंजिन के माता पिता भारत आ गए थे और तेंजिन का जन्म भारत में हुआ था।

वह एसएफएफ में शामिल हो गए थे और उन्होंने इसमें 33 साल तक सेवा दी।

भाषा यश शाहिद

शाहिद