किशोरावस्था की आसक्ति से अलग तरह से निपटना वांछनीय, पर अदालत के ‘हाथ बंधे’ हैं: उच्च न्यायालय

किशोरावस्था की आसक्ति से अलग तरह से निपटना वांछनीय, पर अदालत के ‘हाथ बंधे’ हैं: उच्च न्यायालय

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  • Publish Date - March 10, 2023 / 08:29 PM IST,
    Updated On - March 10, 2023 / 08:29 PM IST

नयी दिल्ली, 10 मार्च (भाषा) दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक किशोरी से कथित तौर पर उसकी सहमति से यौन संबंध बनाने को लेकर एक व्यक्ति के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही जारी रखने की अनुमति देते हुए कहा कि किशोरावस्था में होने वाली इस आसक्ति से अलग तरह से निपटना वांछनीय हो सकता है, लेकिन कानून में बदलाव किये जाने तक अदालत के ‘‘हाथ बंधे हुए’’हैं।

न्यायमूर्ति स्वर्णकांत शर्मा ने कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 376 (बलात्कार) और यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धारा चार के तहत कथित तौर पर दंडनीय अपराध करने को लेकर आरोपी के खिलाफ आरोप तय करने का निर्देश दिया।

एक निचली अदालत के आदेश के खिलाफ अभियोजन की एक याचिका पर उच्च न्यायालय का यह आदेश आया। निचली अदालत ने आरोपी को आईपीसी की धारा 363 (अपहरण)/ 376 और पॉक्सो अधिनियम की धारा 4 के तहत दंडनीय अपराधों से आरोपमुक्त कर दिया था।

किशोरी के पिता द्वारा दायर ‘गुमशुदगी की शिकायत’ के आधार पर मामले में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। मौजूदा मामले में 14 वर्षीय ‘‘पीड़िता’’ ने खुद पुलिस और मजिस्ट्रेट से कहा था कि वह कई मौकों पर स्वेच्छा से आरोपी के साथ गई थी और उसके साथ उसका यौन संबंध उसकी सहमति से था।

हालांकि, अदालत ने कहा कि पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन संबंध के लिए सहमति की उम्र 18 वर्ष है और इसी तरह भादंस में भी यह प्रावधान है कि 18 वर्ष से कम उम्र की लड़की से यौन संबंध बलात्कार माना जाएगा, भले ही यह संबंध उसकी सहमति से बनाया गया हो।

अदालत ने एक हालिया आदेश में कहा, ‘‘अभियोजन ने रिकॉर्ड में जो साक्ष्य प्रस्तुत किये हैं, उसके अनुसार घटना की तारीख पर पीड़िता की उम्र करीब साढ़े 14 वर्ष थी।’’

उच्च न्यायालय ने कहा, ‘‘इस तरह, किशोरावास्था में होने वाली आसक्ति के मामले और स्वेच्छा से एक-दूसरे के साथ रहना, एक-दूसरे के साथ घर से भाग जाना या यौन संबंध बनाने के मामलों से अलग तरह से निपटना वांछनीय हो सकता है, लेकिन जहां तक आरोप तय करने की बात है, संसद द्वारा कानून में संशोधन किये जाने तक उसके हाथ बंधे हुए हैं।’’

भाषा सुभाष संतोष

संतोष