न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने समलैंगिक विवाह पर पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई से खुद को अलग किया

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने समलैंगिक विवाह पर पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई से खुद को अलग किया

न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने समलैंगिक विवाह पर पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई से खुद को अलग किया
Modified Date: July 10, 2024 / 04:19 pm IST
Published Date: July 10, 2024 4:19 pm IST

नयी दिल्ली, 10 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय के वरिष्ठतम न्यायाधीश, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार करने संबंधी शीर्ष अदालत के निर्णय की समीक्षा का अनुरोध करने वाली याचिकाओं की सुनवाई से बुधवार को खुद को अलग कर लिया। सूत्रों ने यह जानकारी दी।

सूत्रों के अनुसार, न्यायमूर्ति खन्ना ने खुद को इससे अलग करने के लिए व्यक्तिगत कारणों का हवाला दिया।

याचिकाओं पर विचार करने से न्यायमूर्ति खन्ना के खुद को अलग करने के बाद, पुनर्विचार याचिकाओं पर विचार करने के लिए अब प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ के पुनर्गठन की आवश्यकता होगी।

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शीर्ष अदालत ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार किये जाने संबंधी उसके पिछले साल के निर्णय की समीक्षा के लिए दायर याचिकाओं पर खुली अदालत में सुनवाई करने की अनुमति देने से मंगलवार को इनकार कर दिया था।

पुरुष समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं को झटका देते हुए प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने पिछले साल 17 अक्टूबर को समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार कर दिया था।

पीठ ने कहा था कि कानूनन मान्यता प्राप्त विवाह के अलावा अन्य को कोई मंजूरी नहीं है।

हालांकि, शीर्ष अदालत ने समलैंगिक लोगों के अधिकारों की जोरदार पैरोकारी की थी, ताकि अन्य लोगों को उपलब्ध वस्तुओं और सेवाओं को पाने में उन्हें भेदभाव का सामना न करना पड़े। निर्णय की समीक्षा का अनुरोध करने वाली याचिकाओं पर प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति खन्ना, न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्हा द्वारा अपने कक्ष में विचार किया जाना था।

परंपरा के अनुसार, पुनर्विचार याचिकाओं पर न्यायाधीशों द्वारा कक्ष में विचार किया जाता है।

प्रधान न्यायाधीश चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाहों को कानूनी मान्यता देने का अनुरोध करने वाली 21 याचिकाओं पर चार अलग-अलग फैसले सुनाए थे।

सभी पांच न्यायाधीश विशेष विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने से इनकार करने को लेकर एकमत थे। पीठ ने कहा था कि इस तरह के संबंध को वैध बनाने के लिए कानून में बदलाव करना संसद के अधिकार क्षेत्र में है।

भाषा सुभाष पवनेश

पवनेश


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