kathua gang rape case: बच्ची के साथ गैंगरेप मामले में नाबालिग के खिलाफ चलेगा एडल्ट के रूप में मुकदमा, कोर्ट ने दिया आदेश

कठुआ सामूहिक बलात्कार के आरोपी के खिलाफ वयस्क के रूप में ही मुकदमा चलाया जाएगा: न्यायालय

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  • Publish Date - November 16, 2022 / 03:25 PM IST,
    Updated On - November 29, 2022 / 08:43 PM IST

नयी दिल्ली। kathua gang rape case: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि कठुआ में आठ साल की बच्ची से सामूहिक बलात्कार एवं उसकी हत्या के सनसनीखेज मामले का एक आरोपी अपराध के समय नाबालिग नहीं था और अब उसके खिलाफ वयस्क के तौर पर नए सिरे से मुकदमा चलाया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने फैसला सुनाया कि वैधानिक सबूत के अभाव में किसी अभियुक्त की उम्र के संबंध में चिकित्सकीय राय को ‘‘दरकिनार’’ नहीं किया जा सकता।

न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला की पीठ ने कहा, ‘‘अभियुक्त की आयु सीमा निर्धारित करने के लिए किसी अन्य निर्णायक सबूत के अभाव में चिकित्सकीय राय पर विचार किया जाना चाहिए। … चिकित्सकीय साक्ष्य पर भरोसा किया जा सकता है या नहीं, यह साक्ष्य की अहमियत पर निर्भर करता है।’’ पीठ ने कठुआ के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम) और उच्च न्यायालय के आदेशों को रद्द कर दिया। इन आदेशों में कहा गया था कि मामले में आरोपियों में शामिल शुभम सांगरा अपराध होने के समय नाबालिग था और इसलिए उस पर अलग से मुकदमा चलाया जाना चाहिए।

kathua gang rape case: न्यायमूर्ति पारदीवाला ने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘हम सीजेएम कठुआ और उच्च न्यायालय के फैसलों को दरकिनार करते हैं और फैसला सुनाते हैं कि अपराध के समय आरोपी नाबालिग नहीं था।’’ नाबालिग बच्ची का 10 जनवरी, 2018 को अपहरण किया गया था। उसे गांव के एक छोटे से मंदिर में बंधक बनाकर रखा गया था और उसे चार दिन तक नशा देकर उसके साथ दुष्कर्म किया गया था। बाद में उसकी पीट-पीटकर हत्या कर दी गई थी।

kathua gang rape case: शीर्ष अदालत ने सात फरवरी, 2020 को सांगरा के खिलाफ किशोर न्याय बोर्ड (जेजेबी) के समक्ष सुनवाई पर रोक लगा दी थी। जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने दावा किया था कि जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय ने अपराध के समय सांगरा को नाबालिग बताने के निचले अदालत के आदेश को सही ठहराकर त्रुटि की थी। इसके बाद जेजेबी के समक्ष सुनवाई पर रोक लगा दी गई थी। एक विशेष अदालत ने जून 2019 में इस मामले में तीन लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी और सबूत नष्ट करने को लेकर तीन पुलिस कर्मियों को पांच साल कैद तथा 50-50 हजार रुपये जुर्माने का दंड दिया गया था, लेकिन सांगरा के खिलाफ मुकदमे को किशोर न्याय बोर्ड में स्थानांतरित कर दिया गया था।