मेरा आशय साझा इतिहास पर जोर देना था, आतंकवाद को नजरअंदाज करना नहीं : सैम पित्रोदा

मेरा आशय साझा इतिहास पर जोर देना था, आतंकवाद को नजरअंदाज करना नहीं : सैम पित्रोदा

मेरा आशय साझा इतिहास पर जोर देना था, आतंकवाद को नजरअंदाज करना नहीं : सैम पित्रोदा
Modified Date: September 19, 2025 / 11:07 pm IST
Published Date: September 19, 2025 11:07 pm IST

नयी दिल्ली, 19 सितंबर (भाषा) पाकिस्तान में “घर जैसा महसूस होने” वाले बयान को लेकर उपजे विवाद के बीच ‘इंडियन ओवरसीज कांग्रेस’ के प्रमुख सैम पित्रोदा ने शुक्रवार को कहा कि उनका आशय केवल साझा इतिहास और लोगों के बीच के आपसी संबंधों पर जोर देना था, न कि आतंकवाद और भू-राजनीतिक तनावों से जुड़ी चुनौतियों को नजरअंदाज करना।

भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की ओर से कांग्रेस पर तीखा हमला किए जाने के बाद पित्रोदा ने ‘एक्स’ पर एक बयान जारी यह स्पष्टीकरण दिया।

पित्रोदा ने कहा कि अगर उनके शब्दों से भ्रम पैदा हुआ है या किसी को ठेस पहुंची है, तो वह स्पष्ट करना चाहते हैं कि उनका उद्देश्य कभी भी किसी की पीड़ा या वैध चिंताओं को कमतर करके आंकना नहीं था, बल्कि ईमानदार बातचीत, सहानुभूति और भारत खुद को और दूसरों को कैसे देखता है, इस बारे में अधिक जमीनी और जिम्मेदार दृष्टिकोण को आगे बढ़ाना था।

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भाजपा ने पित्रोदा के “पाकिस्तान में घर जैसा महसूस होने” वाले बयान को “राष्ट्र-विरोधी” करार देते हुए कांग्रेस नेता राहुल गांधी और सोनिया गांधी से मांग की कि वे इसे लेकर माफी मांगें।

पित्रोदा ने कहा कि हाल की चर्चाओं के मद्देनजर, वह अपनी टिप्पणी को स्पष्ट करना चाहते हैं और उसे अपने साक्षात्कार के पूरे संदर्भ में रखना चाहते हैं।

उन्होंने कहा, “मेरा इरादा हमेशा उन वास्तविकताओं की ओर ध्यान आकर्षित करना रहा है, जिनका हम सामना करते हैं। मसलन, चुनावी प्रक्रिया से जुड़ी चिंताएं, नागरिक समाज और युवाओं का महत्व, तथा अपने पड़ोस में और वैश्विक स्तर पर भारत की भूमिका।”

पित्रोदा ने कहा, “जब मैंने कहा कि पड़ोसी देश की यात्रा करते समय मुझे अक्सर “घर जैसा” महसूस होता है, या कि सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से हमारी जड़ें साझा हैं, तो मेरा आशय साझा इतिहास और लोगों के बीच के संबंधों पर जोर देना था-न कि पीड़ा, संघर्ष या आतंकवाद और भू-राजनीतिक तनावों से उत्पन्न गंभीर चुनौतियों को नजरअंदाज करना।”

कांग्रेस नेता ने कहा कि जब उन्होंने “विश्वगुरु” की अवधारणा को चुनौती दी और कहा कि यह एक मिथक है कि भारत हमेशा सभी के दिमाग में रहता है, तो वह वास्तविकता के बजाय छवि को लेकर अति-आत्मविश्वास के प्रति आगाह कर रहे थे।

पित्रोदा ने इस बात पर जोर दिया, “विदेश नीति वास्तविक प्रभाव, आपसी विश्वास, शांति और क्षेत्रीय स्थिरता पर आधारित होनी चाहिए, दिखावे पर नहीं।”

भाषा

हक पारुल

पारुल


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