कोई न्यायालय ‘सबऑर्डिनेट’ नहीं, प्रचलित शब्दों में बदलाव जरूरी : उपराष्ट्रपति धनखड़

कोई न्यायालय 'सबऑर्डिनेट' नहीं, प्रचलित शब्दों में बदलाव जरूरी : उपराष्ट्रपति धनखड़

  •  
  • Publish Date - October 27, 2024 / 07:01 PM IST,
    Updated On - October 27, 2024 / 07:01 PM IST

जयपुर, 27 अक्टूबर (भाषा) उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने रविवार को कहा कि कोई न्यायालय ‘सबऑर्डिनेट’ नहीं है और प्रचलित शब्दों में बदलाव जरूरी है।

उन्होंने यहां एआईआर पुस्तकालय के उद्घाटन समारोह में अधिवक्ता संघ को संबोधित करते हुए यह बात कही।

आधिकारिक बयान के अनुसार उपराष्ट्रपति ने कहा कि न्यायपालिका देश का सबसे महत्वपूर्ण अंग है, इसमें ‘सबऑर्डिनेट’ शब्द की कोई जगह नहीं है। कोई भी न्यायालय ‘सबऑर्डिनेट’ नहीं, इसमें बदलाव होना चाहिए।

उन्होंने न्यायपालिका पर टिप्पणी करते हुए कहा, “जब मजिस्ट्रेट या जिला जज फैसला लिखता है उनके मन में एक शंका रहती है कि मेरे फैसले पर क्या टिप्पणी होगी। वह फैसला उसके भविष्य को निर्वहन करता है।”

उन्होंने आगे कहा कि हम सभी को इनके प्रति सहानुभूति रखनी चाहिए।

उन्होंने कहा, “जिला अदालतें हमारी न्याय व्यवस्था की बुनियाद है। मेरा आग्रह रहेगा कि यदि हमें न्याय को सुलभ और किफायती बनाना है तो हमें जिला अदालतों, हमारे मजिस्ट्रेट्स, जिला जजों और युवा वकीलों पर विशेष ध्यान देना होगा।”

संसद में कानून पारित कर नागरिक संहिता में हुए बदलाव की ओर इशारा करते हुए उपराष्ट्रपति ने इसे औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त करने वाली एक महत्वपूर्ण घटना बताया।

उन्होंने इसे दंड विधान से न्यायविधान की यात्रा बताते हुए कहा कि लंबे समय की मांग के बाद अंग्रेजों द्वारा बनाए गए इन कानूनों को निरस्त किया गया है, जो कि नए वकीलों के लिए एक वरदान हैं।

उपराष्ट्रपति ने देश में जिला न्यायालयों, वहां कार्यरत वकीलों एवं आम आदमी की न्याय प्राप्ति को लेकर कहा, “यदि हमें न्याय प्राप्ति को सस्ता और सुलभ बनाना है, तो हमें लोगों को गुणवत्तापूर्ण न्याय देना होगा, आइए हम अपने जिला न्यायालयों, हमारे मजिस्ट्रेट, हमारे जिला न्यायाधीशों, हमारे युवा वकीलों पर प्रमुखता से ध्यान केंद्रित करें, जिला न्यायालय में वकील बहुत ही चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में काम करते हैं।”

भाषा

पृथ्वी, रवि कांत रवि कांत