पर्यटन के लिए ओडिशा सरकार की वन्यजीव पाबंदियों में ढील देने की योजना, विशेषज्ञों ने चेताया

पर्यटन के लिए ओडिशा सरकार की वन्यजीव पाबंदियों में ढील देने की योजना, विशेषज्ञों ने चेताया

  •  
  • Publish Date - June 23, 2025 / 11:30 AM IST,
    Updated On - June 23, 2025 / 11:30 AM IST

नयी दिल्ली, 23 जून (भाषा) ओडिशा सरकार अपने राष्ट्रीय उद्यानों, बाघ अभयारण्यों, तटीय क्षेत्रों और रामसर आर्द्रभूमि सहित, पारिस्थितिकीय रूप से कुछ सबसे अधिक संवेदनशील क्षेत्रों के अंदर और आसपास पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पर्यावरणीय प्रतिबंधों में ढील देने पर विचार कर रही है।

हालांकि, कानूनी और पर्यावरण संरक्षण विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम वन, वन्यजीव और जैव विविधता कानूनों तथा आदिवासी अधिकारों को कमजोर करता है।

गत 30 मई को ओडिशा के मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई एक उच्च स्तरीय बैठक के विवरण के अनुसार, राज्य सरकार निर्माण और वाणिज्यिक गतिविधियों को प्रतिबंधित करने वाले खंडों को हटाने के लिए ‘इको-सेंसिटिव जोन’ (ईएसजेड) अधिसूचनाओं पर फिर से विचार करने और संशोधन करने की योजना बना रही है। उसकी केंद्र से भी इस संदर्भ में आग्रह करने की योजना है।

राज्य ने वन और पर्यावरण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक अधिकारप्राप्त समिति गठित करने का निर्णय लिया है जो पर्यटन परियोजनाओं से संबंधित मुद्दों पर चर्चा करने के लिए हर दो महीने में बैठक करेगी। समिति में राज्य सरकार के विभिन्न विभागों के अधिकारी शामिल होंगे।

हालांकि इस समिति में स्वतंत्र पर्यावरणविद्, वन्यजीव विज्ञानी या आदिवासी प्रतिनिधि नहीं हैं।

वहीं, विशेषज्ञों का कहना है कि इस कदम के लागू होने से आर्थिक हितों के आधार पर पारिस्थितिकी संरक्षण के नियामक ढांचे को आकार देने की अनुमति मिल सकती है।

विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी के जलवायु एवं पारिस्थितिकी तंत्र प्रमुख देबादित्य सिन्हा ने कहा, ‘‘राज्य वनों और वन्यजीवों का संवैधानिक न्यासी है, जिसका दायित्व इन प्राकृतिक संपत्तियों की सुरक्षा करना है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह कदम गंभीर चिंताएं पैदा करता है। इसका तात्पर्य यह है कि आर्थिक हित पारिस्थितिकीय अनिवार्यताओं पर हावी हो सकते हैं।’’

सिन्हा ने कहा कि राज्य सरकार की योजना राष्ट्रीय वन नीति, 1988 के संदर्भ में भी विरोधाभासी है।

भाषा वैभव मनीषा

मनीषा