बांदीपोरा (जम्मू-कश्मीर), 28 अप्रैल (भाषा) जम्मू-कश्मीर के बांदीपोरा में पुनर्वासित पूर्व आतंकवादियों की पाकिस्तानी पत्नियों ने कहा है कि वे अपने पुराने देश लौटने के बजाय मरना पसंद करेंगी।
पूर्व आतंकवादियों के लिए 2010 की पुनर्वास नीति के तहत कश्मीर आईं पाकिस्तानी महिलाओं ने सरकार से गुहार लगाई है कि उन्हें (यहां) रहने दिया जाए या फिर ताबूत में भेज दिया जाए।
पूर्व आतंकी से विवाहित एलिजा रफीक 2013 में मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला की नीति के तहत कश्मीर आई थी। इस नीति के तहत उन आतंकवादियों के पुनर्वास की व्यवस्था की गई थी, जो हथियार प्रशिक्षण के लिए पाकिस्तान या पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) गए थे, लेकिन उन्होंने हिंसा का रास्ता छोड़ दिया और घाटी में वापस लौटना चाहते थे।
वर्तमान में उत्तरी कश्मीर के बांदीपोरा में रह रही रफीक ने बताया कि पुलिस ने उसे देश छोड़ने को कहा है।
रफीक ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हमें देश छोड़ने को कहा गया है। मेरे तीन बच्चे हैं। उन्होंने मुझे मेरी सबसे छोटी बेटी को यहां छोड़कर जाने के लिए कहा है। वह छोटी है, मैं उसे यहां कैसे छोड़ सकती हूं।’’
उसने कहा, ‘‘मैं अपने पति को यहां कैसे छोड़ सकती हूं। मैंने यहां घर बनाया। हम सरकार की नीति के कारण यहां आए…हमने क्या किया है? इसमें हमारा क्या गुनाह है? हमारे पास मतदाता पहचान पत्र, आधार कार्ड है। मैंने चुनाव में मतदान किया।’’
रूंधे गले से रफीक ने जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा से अपील की कि उन्हें कश्मीर में रहने दिया जाए, जो पिछले 12 वर्षों से उसका घर है।
रफीक ने कहा, ‘‘मैं उपराज्यपाल साहब से अपील करती हूं कि कृपया हमारे साथ बेरहमी न करें। हमने कोई पाप नहीं किया है। कृपया हमें यहां रहने दें। अगर नहीं, तो हमें मार दें और हमारी लाशों को सीमा पार भेज दें।’’
एक और पाकिस्तानी महिला जाहिदा बेगम ने कहा कि वह कश्मीर में शांति से रहना चाहती है।
बेगम ने कहा, ‘‘पुलिस ने मुझे जाने को कहा है। मैं वापस नहीं जाना चाहती। मेरी दो बेटियां हैं, मरियम और आमना। मेरा बेटा फैजान 10 साल का है और वे मुझे उसे यहीं रखने को कह रहे हैं। मैं वापस नहीं जाना चाहती, मुझे माफ कर दें। मैं यहीं रहना चाहती हूं।’’
बेगम ने अपना निवास प्रमाण पत्र, आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड दिखाया, जिसके बारे में उन्होंने कहा कि ये सरकार द्वारा जारी किए गए हैं।
बेगम ने कहा, ‘‘इससे मेरे बच्चों की जिंदगी तबाह हो जाएगी। मैं 15 साल से यहां रह रही हूं, मैंने अच्छी जिंदगी जी है और मैं शांति से रहना चाहती हूं। मेरे बच्चे भी वापस नहीं जाना चाहते।’’
भाषा आशीष सुरेश
सुरेश