इस खौफनाक मंजर को उत्तरप्रदेश के एक PCS अधिकारी ने खुद मुंह जुबानी बयां की है। यह घटना साल 2009, दिन 28 फरवरी, शाम के करीब 7 बजे की है। जब PCS अधिकारी प्लेग्राउंड में बैडमिंटन खेल रहे थे। तभी कुछ लोगों ने उस पर अंधाधुंध गोलियों की बरसात कर दी। 7 गोली कनपटी को छूकर निकल गईं, और चेहरा का पूरा हुलिया ही बदल गया साथ ही पूरा का पूरा जबड़ा भी टूट गया था, जबड़ा न होने की वजह से उन्हें आज भी खाने में दिक्कतें होती है। एक कान से सुनाई भी नहीं देता है। एक आंख की रोशनी भी चली गई। जिंदगी और मौत से 4 महीने तक लड़ता रहा।
आपको बता दें कि हम उत्तर प्रदेश के राजकीय IAS-PCS कोचिंग सेंटर हापुड़ के प्रभारी रिंकू सिंह राही की बात कर रहे हैं। राही ने अपने आखिरी 16वें अटेम्प्ट में UPSC-2021 परीक्षा क्रैक कर 683वां रैंक हासिल किया है। इस प्राणघातक हमले के बावजूद यह PCS अधिकारी मरा नहीं बल्कि जिंदा बच गया। उनकी जिद ऐसी थी कि 13 साल बाद उसने UPSC क्रैक कर दिखाया।
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आपको यह जानकर हैरानी होगी कि रिंकू सिंह राही ने आटा-चक्की चलाकर, मजदूरी कर, सरकार-दर-सरकार भ्रष्टाचार उजागर करने पर सस्पेंशन और चार्जशीट झेलने के बावजूद ये मुकाम हासिल किया है।
रिंकू कहते हैं कि मैंने गरीबी को बेहद करीब से देखा है। पिता ने घर चलाने के लिए सारे छोटे काम किए। मुझे सरकारी स्कूल में पढ़ाया गया। गांव में कुछ विवाद हुआ तो घर छोड़कर पूरा परिवार अलीगढ़ आ गया। आर्थिक तंगी थी तो पापा ने आटा चक्की की दुकान खोल ली और मैं भी दुकान पर बैठता था। बचपन से गरीबी देखते हुए बड़ा हुआ हूं। गांव में हमारे पास न छत थी, न जमीन। कई बार मेरे कामों को सरकारी विभागों में अटका दिया जाता था।
पिता को ओल्ड पेंशन स्कीम में नाम जोड़ना था। उन्हें कई दिनों तक परेशान किया गया। इसलिए सोचता था कि सरकारी अधिकारी बनूं और सिस्टम को ठीक कर सकूं। B Tech के बाद UPSC की तैयारी करनी शुरू कर दी। UPPSC 2004 की परीक्षा पास की और 2007 में जॉइन किया। फिजिकली चैलेंज्ड होने के बाद भी उन्होंने ये उपलब्धि हासिल की है।
रिंकू सिंह 2012 का एक मामला बताते हैं कि विभाग से संबंधित कुछ जानकारी के लिए RTI के तहत सूचनाएं मांगी थीं, लेकिन एक साल के बाद भी कोई जानकारी नहीं दी गई। 26 मार्च 2012 को लखनऊ में अनशन कर रहा था। मेरे खिलाफ साजिश करके और डॉक्टर से तालमेल कर अधिकारियों ने मेंटल हॉस्पिटल लखनऊ भेज दिया और उन्हें पूरी तरह से पागल घोषित करने की योजना बनाई गई थी, क्योंकि उसने 2008 में मुजफ्फरनगर के जिला समाज कल्याण अधिकारी रहते हुए 100 करोड़ के कथित घोटाले का पर्दाफाश किया था। उस वक्त राज्य में मायावती की सरकार थी।