अहमदाबाद विमान हादसे की स्वतंत्र जांच के लिए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर
अहमदाबाद विमान हादसे की स्वतंत्र जांच के लिए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर
नयी दिल्ली, 26 सितंबर (भाषा) उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर 12 जून को हुए एअर इंडिया विमान हादसे की अदालत की निगरानी में स्वतंत्र जांच किए जाने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
अहमदाबाद से लंदन के गैटविक हवाई अड्डा जा रहा एअर इंडिया का बोइंग 787-8 विमान 12 जून को उड़ान भरने के कुछ सेकेंड बाद दुर्घटनाग्रस्त हो गया था। हादसे में कुल 260 लोगों की मौत हो गई थी, जिनमें विमान में सवार 230 में से 229 यात्री और चालक दल के सभी 12 सदस्य शामिल थे।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची की पीठ ने इस याचिका को समान अनुरोध वाली एक लंबित अर्जी के साथ संलग्न कर दिया।
पीठ ने याचिकाकर्ता, दिल्ली विश्वविद्यालय के शोध छात्र और अधिवक्ता अखिलेश कुमार मिश्रा से कहा कि वह याचिका की प्रति अटॉर्नी जनरल और सॉलिसिटर जनरल को उपलब्ध कराएं।
याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव शकधर ने कहा कि उनके मुवक्किल इस हादसे की निष्पक्ष जांच का अनुरोध रहे हैं।
अधिवक्ता शुभम उपाध्याय के माध्यम से दायर याचिका में 12 जून को अहमदाबाद में एअर इंडिया की उड़ान संख्या 171 के दुर्घटनाग्रस्त होने के मामले की “अदालत की निगरानी में निष्पक्ष और पारदर्शी जांच सुनिश्चित करने” के लिए अदालत के हस्तक्षेप का अनुरोध किया गया है।
इसमें नागरिक उड्डयन मंत्रालय के विमान दुर्घटना जांच ब्यूरो (एएआईबी) की ओर से प्रकाशित प्रारंभिक रिपोर्ट का हवाला दिया गया है, जिसमें दुर्घटना के लिए दोनों इंजन के अचानक बंद होने को जिम्मेदार ठहराया गया है, जो ईंधन नियंत्रण स्विच के एक सेकंड के भीतर ‘रन’ से ‘कटऑफ’ मोड में जाने के कारण हुआ।
हालांकि, याचिका में “रिपोर्ट में विरोधाभास” का मुद्दा उठाया गया है। इसमें कहा गया है, “कॉकपिट वॉयस रिकॉर्डिंग (सीवीआर) में पायलट को इंजन बंद होने पर भ्रम जाहिर करते हुए सुना गया है, जिसमें एक पायलट दूसरे से पूछ रहा है, “तुमने इंजन क्यों बंद किया?”, जिसके जवाब में दूसरा कहा रहा है, “मैंने ऐसा नहीं किया।”
याचिका में दलील दी गई है कि विमान महज 40 सेकंड के लिए ही हवा में था, इसलिए पायलट की ओर से पूछा गया सवाल और सह-पायलट की ओर से दिया गया जवाब घटना के सामान्य क्रम में स्वाभाविक था।
इसमें दावा किया गया है कि पायलट “बहुत अनुभवी” थे, जिनके पास संयुक्त रूप से लगभग 19,000 घंटे की उड़ान का अनुभव था, जिसमें बोइंग 787 विमान पर 9,000 घंटे से अधिक की उड़ान का अनुभव भी शामिल है।
याचिका में कहा गया है कि विशेषज्ञों ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि ईंधन कटऑफ स्विच का मोड मानवीय रूप से बदलने की आवश्यकता होती है और इसे गलती से नहीं बदला जा सकता, जिससे पायलट से गलती होने की आशंका खारिज हो जाती है।
इसमें कहा गया है, “डिजाइन में संभावित खराबी, सॉफ्टवेयर में गड़बड़ी या विमान में प्रणालीगत विफलता के इन खतरनाक संकेतों के बावजूद, बोइंग को प्रारंभिक रिपोर्ट में किसी भी स्तर पर कोई निर्देश जारी नहीं किया गया है या जवाबदेह नहीं ठहराया गया है। जांच का वर्तमान रुख अनुचित रूप से मृत पायलट पर दोष मढ़ता प्रतीत होता है, जो अपना बचाव करने में असमर्थ हैं, जिससे बोइंग को जवाबदेही से बचने का मौका मिल गया है, जो उसके कॉर्पोरेट इतिहास में एक नया चलन है।”
याचिका में दावा किया गया है कि 12 जुलाई को जारी प्रारंभिक जांच रिपोर्ट में “छेड़खानी” के संकेत मिलते हैं, क्योंकि ‘वॉल स्ट्रीट जर्नल’ द्वारा इसकी विषय-वस्तु एएआईबी के रिपोर्ट प्रकाशित करने से 20 घंटे पहले ही जारी कर दी गई थी, जिससे इसकी “गोपनीयता और विश्वसनीयता” पर सवाल उठते हैं।
शीर्ष अदालत ने 22 सितंबर को गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ‘सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन’ की इसी तरह की याचिका पर विचार करने पर सहमति जताते हुए दुर्घटना से संबंधित प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के चुनिंदा अंशों के प्रकाशन को “दुर्भाग्यपूर्ण और गैर-जिम्मेदाराना” करार दिया था, जिसमें पायलट की ओर से चूक को रेखांकित किया गया था।
उच्चतम न्यायालय ने दुर्घटना की स्वतंत्र, निष्पक्ष और त्वरित जांच के पहलू पर केंद्र और नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (डीजीसीए) को नोटिस जारी किया तथा कहा कि इसमें पीड़ितों के परिवारों की निजता और गरिमा का भी ध्यान रखा जाना चाहिए।
भाषा पारुल शफीक
शफीक

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