नयी दिल्ली, चार दिसंबर (भाषा) विधि आयोग ने बृहस्पतिवार को एक संसदीय समिति से कहा कि लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराने के लिए कानूनी ढांचा तैयार करने संबंधी विधेयक में निर्वाचन आयोग को दी गई प्रस्तावित शक्ति अत्यधिक नहीं है।
विधि आयोग के शीर्ष अधिकारियों ने एक साथ चुनाव संबंधी विधेयकों की पड़ताल कर रही संसद की संयुक्त समिति को यह जानकारी दी।
सदस्यों ने बताया कि बैठक के दौरान विधि आयोग ने यह भी कहा कि संविधान संशोधन विधेयक के लिए कम से कम 50 प्रतिशत राज्य विधानसभाओं के अनुमोदन की आवश्यकता नहीं है।
विपक्षी दलों के सांसदों ने विधि आयोग के अधिकारियों के समक्ष विधेयक की संवैधानिकता और संघीय भावना के पालन पर सवाल उठाए।
एक विपक्षी सांसद ने दावा किया कि विधि आयोग के अधिकारियों ने समिति के सदस्यों को जानकारी तो दी, लेकिन वे सवालों का संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए।
बैठक के दौरान एक अन्य विपक्षी सांसद ने कहा कि नियमित अंतराल पर चुनाव कराने से नियंत्रण और संतुलन की व्यवस्था बनती है, क्योंकि लोकसभा के बाद लोग विधानसभा चुनावों में अपने विकल्पों की समीक्षा कर सकते हैं, लेकिन एक साथ चुनाव होने पर ऐसा नहीं होगा।
सांसद ने कहा कि मतदाता लोकतंत्र का आधार हैं और नियमित अंतराल पर चुनाव लोकतंत्र को मज़बूत करते हैं।
विधि आयोग ने कहा है कि चुनाव टालने की सिफारिश करने के लिए निर्वाचन आयोग को दी गई शक्ति न तो मनमानी है और न ही असीमित है, बल्कि यह अनुच्छेद 324 के तहत निर्वाचन आयोग को दिए गए पूर्ण संवैधानिक अधिकार से स्वाभाविक रूप से प्राप्त होती है।
विधि आयोग ने इस बात पर ज़ोर दिया कि प्रस्तावित संशोधन किसी भी तरह से संविधान के मूल ढांचे को प्रभावित नहीं करता है।
विधि आयोग ने कहा कि उसका स्पष्ट मत है कि प्रस्तावित संशोधन द्वारा सदनों के कार्यकाल में किसी भी प्रकार की कटौती संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करती है।
संघवाद के मुद्दे पर आयोग ने कहा कि भारतीय संविधान में जिस संघवाद की परिकल्पना की गई है और जिसका प्रतिपादन किया गया है, वह विभिन्न इकाइयों को एक साथ बांटने का नहीं है, बल्कि यह एक मजबूत केंद्र से विभिन्न इकाइयों को एक साथ जोड़ने की बात करता है।
भाषा सुभाष अविनाश
अविनाश