बेंगलुरु, 17 मई (भाषा) उच्च रक्तचाप दिवस के मौके पर चिकित्सकों ने कहा है कि भारत की लगभग 30 प्रतिशत वयस्क आबादी इस समस्या से पीड़ित है और यह हृदय रोग, स्ट्रोक और असमय मृत्यु के प्रमुख जोखिम कारकों में से एक बन गई है।
इस अवसर पर चिकित्सकों ने लोगों से ‘सामान्य’ की अपनी परिभाषा पर पुनर्विचार करने की अपील की है।
फरवरी में अपोलो हॉस्पिटल्स द्वारा किए गए ‘हेल्थ ऑफ द नेशन 2025’ अध्ययन में पता चला कि देश में लगभग 30 करोड़ लोग उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं।
अध्ययन में यह भी सामने आया कि 2024 में 45 वर्ष से कम आयु के लोगों में 26 प्रतिशत को उच्च रक्तचाप होने का पता चला।
चिकित्सकों के अनुसार, गंभीर बात यह है कि उच्च रक्तचाप से पीड़ित लगभग आधे लोग अपनी स्थिति से अनभिज्ञ हैं।
अपोलो हॉस्पिटल्स की कार्यकारी चेयरमेन डॉ. प्रीता रेड्डी ने कहा, ‘रोकथाम और शीघ्र इलाज केवल विकल्प नहीं हैं, बल्कि अत्यावश्यक हैं। भारत के शहरी इलाकों में 40 वर्ष से कम आयु के लगभग 30 प्रतिशत लोग हाईपरटेंशन या प्री-हाईपरटेंशन से प्रभावित हैं। इसके लिए स्वास्थ्य सेवा, नीति और सामुदायिक जागरूकता की तत्काल आवश्यकता है ताकि हमारे देशवासियों के स्वास्थ्य की रक्षा की जा सके।’
उन्होंने कहा कि नमक का इस्तेमाल कम करने, नियमित शारीरिक गतिविधि और तनाव से दूर रहने जैसे सरल कदम उठाकर उच्च रक्तचाप के कारण होने वाले दिल के दौरे और स्ट्रोक को 80 प्रतिशत तक रोका जा सकता है।
अपोलो हॉस्पिटल्स के संस्थापक और चेयरमेन डॉ. प्रताप सी. रेड्डी ने कहा कि ‘रोकथाम ही पहली दवा होनी चाहिए।” उन्होंने नियमित जांच को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाने का आह्वान किया।
उन्होंने भारतीयों से आग्रह किया कि 30 वर्ष से ज्यादा उम्र के लोग या जिनके परिवार में दिल की बीमारी का इतिहास है, वे समय पर जांच कराना शुरू करें।
डॉ. रेड्डी ने कहा, ‘कोरोनरी कैल्शियम स्कोरिंग जैसी उन्नत इमेजिंग तकनीकों से छिपे जोखिमों का पता लगाया जा सकता है। यदि प्रारंभिक संकेतकों के आधार पर, समय रहते उपचार शुरू किया जाए तो भविष्य की जटिलताओं को काफी हद तक रोका जा सकता है।’
डॉ. प्रीता रेड्डी ने कहा, ‘तेजी से शहरीकरण के चलते हम अधिकतर समय बैठे रहने, खराब खानपान और लगातार तनाव में वृद्धि देख रहे हैं, जो इस जन स्वास्थ्य संकट को और बढ़ा रहे हैं।’
भाषा राखी जोहेब
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