ओडिशा के विधायकों के वेतन-भत्ते में वृद्धि: विधेयकों को मंजूरी को लेकर सबकी नजरें अब राज्यपाल पर

ओडिशा के विधायकों के वेतन-भत्ते में वृद्धि: विधेयकों को मंजूरी को लेकर सबकी नजरें अब राज्यपाल पर

  •  
  • Publish Date - December 15, 2025 / 05:27 PM IST,
    Updated On - December 15, 2025 / 05:27 PM IST

भुवनेश्वर, 15 दिसंबर (भाषा) ओडिशा के विधायकों के वेतन और भत्तों में तिगुनी वृद्धि से राजनीतिक विवाद खड़ा हो जाने तथा विपक्ष के नेता नवीन पटनायक द्वारा बढ़ा हुआ वेतन नहीं लेने की घोषणा के बाद अब सभी की निगाहें राज्यपाल हरि बाबू कंभमपति पर टिकी हैं, जिनकी मंजूरी विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों के लिए आवश्यक है।

शीतकालीन सत्र के आखिरी दिन नौ दिसंबर को विधानसभा ने सर्वसम्मति से चार विधेयक पारित किए। हालांकि, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के एक सदस्य सदन से अनुपस्थित रहे थे।

माकपा ने विधायकों के वेतन-भत्ते में वृद्धि का विरोध किया है।

नए प्रावधानों के तहत, विधायक का कुल मासिक पैकेज पहले के 1.11 लाख रुपये से बढ़ाकर 3.45 लाख रुपये कर दिया गया है।

इस कदम की सोशल मीडिया पर लोगों ने और विभिन्न संगठनों ने कड़ी आलोचना की और भाजपा सरकार पर जनता के बजाय विधायकों को प्राथमिकता देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि राज्य की प्रति व्यक्ति वार्षिक आय 2024-25 में 1.83 लाख रुपये होने का अनुमान है।

संबंधित विधेयकों को मंजूरी मिल जाने की स्थिति में मुख्यमंत्री को 3.74 लाख रुपये का मासिक वेतन एवं भत्ता मिलेगा, जबकि उपमुख्यमंत्री 3.68 लाख रुपये के वेतन एवं भत्ते के हकदार हैं।

सोशल मीडिया पर लोग विधायकों और उनके मतदाताओं के बीच आय के अंतर को उजागर कर रहे हैं और बता रहे हैं कि एक विधायक की वार्षिक आय अब लगभग 41.4 लाख रुपये हो जायेगी।

व्यापक रूप से साझा किये जा रहे एक पोस्ट में कहा गया है, ‘‘ओडिशा में एक विधायक अब औसत नागरिक से लगभग 22 गुना अधिक कमाता है। दूसरे शब्दों में, वह केवल दो हफ्तों में उतना कमा लेते हैं, जितना एक औसत व्यक्ति पूरे साल में कमाता है।’’

इस जनाक्रोश के बीच बीजू जनता दल (बीजद) अध्यक्ष नवीन पटनायक ने हाल में मुख्यमंत्री मोहन चरण माझी को पत्र लिखकर कहा कि वह विधायक के रूप में मिलने वाले बढ़े हुए वेतन-भत्ते को स्वीकार नहीं करेंगे।

हालांकि, जब ओडिशा विधानसभा सदस्य वेतन, भत्ते और पेंशन (संशोधन) विधेयक, 2025 सदन में पारित किया गया था, तब बीजद ने इसका समर्थन किया था।

भाजपा के वरिष्ठ नेता और उपमुख्यमंत्री के वी सिंह देव ने पटनायक की घोषणा को ‘राजनीति’ और ‘स्टंट’ करार दिया।

उन्होंने कहा, ‘‘पटनायक विधानसभा सत्र में क्यों नहीं आए और विधेयक पर चर्चा के दौरान उन्होंने विरोध क्यों नहीं जताया? वह राजनीति कर रहे हैं।’’

पूर्व मंत्री और भाजपा विधायक जय नारायण मिश्रा ने भी पटनायक की घोषणा को ‘नाटक’ करार दिया। उन्होंने पटनायक की समृद्ध पृष्ठभूमि का हवाला दिया।

हालांकि, भाजपा विधायक बाबू सिंह ने घोषणा की कि वह बढ़ी हुई तनख्वाह अपने भुवनेश्वर-एकामरा विधानसभा क्षेत्र के गरीबों को दान कर देंगे।

वैसे बीजद विधायक और पूर्व मंत्री गणेश्वर बेहरा ने पटनायक का बचाव करते हुए उनके फैसले को ‘आदर्शवादी और व्यक्तिगत पसंद’ बताया।

वैसे बेहरा ने विधायकों के वेतन-भत्ते में बढ़ोतरी को सही ठहराते हुए कहा कि यह मांग 2018 से लंबित थी और आलोचकों को विधायकों पर पड़ने वाले दबाव को समझना चाहिए, क्योंकि वे रोजाना लोगों से बातचीत करते हैं।

कांग्रेस विधायक पबित्रा सौंता ने भी पटनायक की घोषणा की आलोचना करते हुए इसे ‘दोहरा मापदंड’ और ‘राजनीतिक हथकंडा’ बताया।

संविधान विशेषज्ञ मानस बेहरा ने कहा कि अब सबकी नजर राज्यपाल पर है।

उन्होंने कहा,‘‘सभी की निगाहें राज्यपाल पर टिकी हैं। विधेयक उन्हें भेजे जा चुके हैं और वह उन्हें मंजूरी दे भी सकते हैं और नहीं भी। ऐसे उदाहरण भी हैं, जब राज्यपालों ने विधेयक सदन को वापस भेज दिए हैं। अंतिम निर्णय उन्हीं पर निर्भर करता है।’’

उन्होंने कहा कि हालांकि अधिकतर विधेयकों को मंजूरी मिल जाती है, ‘‘लेकिन इस मामले में क्या होता है, यह देखना बाकी है।’’

भाषा राजकुमार दिलीप

दिलीप