न्यायालय ने महमूदाबाद को अंतरिम जमानत दी, मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित करने को कहा

न्यायालय ने महमूदाबाद को अंतरिम जमानत दी, मामले की जांच के लिए एसआईटी गठित करने को कहा

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  • Publish Date - May 21, 2025 / 04:58 PM IST,
    Updated On - May 21, 2025 / 04:58 PM IST

नयी दिल्ली, 21 मई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के संबंध में सोशल मीडिया पर कथित आपत्तिजनक पोस्ट करने के आरोप में गिरफ्तार ‘अशोका यूनिवर्सिटी’ के प्रोफेसर अली खान महमूदाबाद को बुधवार को अंतरिम जमानत दे दी, लेकिन उनके खिलाफ जांच पर रोक लगाने से इनकार कर दिया।

न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने हरियाणा के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को निर्देश दिया कि वह मामले की जांच के लिए 24 घंटे के भीतर महानिरीक्षक (आईजी) रैंक के अधिकारी के नेतृत्व में तीन-सदस्यीय विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन करें, जिसमें पुलिस अधीक्षक (एसपी) रैंक की एक महिला अधिकारी भी शामिल हो।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि याचिकाकर्ता को जांच में मदद के लिए अंतरिम जमानत दी गई है। शीर्ष अदालत ने महमूदाबाद को अपना पासपोर्ट जमा करने का निर्देश भी दिया।

पीठ ने कहा कि एसआईटी में सीधे भर्ती किए गए तीन आईपीएस अधिकारी शामिल होने चाहिए- जो हरियाणा के निवासी नहीं होंगे।

पीठ ने कहा कि आईजी रैंक के अधिकारी के अलावा दो अन्य पुलिस अधीक्षक या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी होने चाहिए।

सोनीपत स्थित अशोका यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के विभागाध्यक्ष प्रोफेसर की ऑनलाइन पोस्ट की जांच-पड़ताल करने वाली पीठ ने उनके शब्दों के चयन पर सवाल उठाते हुए कहा कि इनका इस्तेमाल जानबूझकर दूसरों को अपमानित करने या उन्हें असहज करने के लिए किया गया था।

न्यायमूर्ति कांत ने कहा, ‘‘शब्दों का चयन जानबूझकर दूसरों को अपमानित करने या असहज करने के लिए किया गया। प्रोफेसर एक विद्वान व्यक्ति हैं और उनके पास शब्दों की कमी नहीं हो सकती… वे दूसरों को ठेस पहुंचाए बिना उन्हीं भावनाओं को सरल भाषा में व्यक्त कर सकते थे। उन्हें दूसरों की भावनाओं का सम्मान करना चाहिए था। उन्हें सरल और तटस्थ भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए था, दूसरों का सम्मान करना चाहिए था।’’

पीठ ने कहा कि हालांकि सभी को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार है, लेकिन महमूदाबाद के बयानों को कानून की नजर में ‘डॉग व्हिसलिंग’ (किसी का समर्थन पाने के लिए गुप्त संदेश वाली) भाषा कहा जाता है।

अदालत ने कहा, ‘‘इसे हम कानून में ‘डॉग व्हिसलिंग’ कहते हैं। उन्हें अधिक सम्मानजनक और तटस्थ भाषा का इस्तेमाल करना चाहिए था।’’

पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल से कहा, ‘‘जब देश में इतनी सारी चीजें हो रही थीं, तो उनके पास इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल करने का मौका कहां था, जो अपमानजनक और दूसरों को असहज करने वाले हो सकते हैं। वह एक विद्वान व्यक्ति हैं, उनके बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि उनके पास शब्दों की कमी है।’’

पीठ ने प्रोफेसर के हाल के भारत-पाकिस्तान संघर्ष पर कोई और ऑनलाइन पोस्ट लिखने पर रोक लगा दी और उनसे एसआईटी जांच में सहयोग करने को कहा।

पीठ ने पहलगाम आतंकवादी हमले को लेकर भी पोस्ट करने पर रोक लगा दी।

न्यायमूर्ति कांत ने कहा, ‘‘हर किसी को अपनी बात कहने का अधिकार है, लेकिन क्या अब इस पर इतनी सांप्रदायिक बातें करने का समय आ गया है…? देश ने एक बड़ी चुनौती का सामना किया है और अब भी कर रहा है। कुछ दानव दूसरे क्षेत्रों से आये और निर्दोष लोगों पर हमला किया। पूरा देश एकजुट है, लेकिन इस समय…ऐसे बयान क्यों? क्या यह सिर्फ इस मौके पर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए है?’’

सिब्बल ने इस बात पर सहमति जताई कि ऐसी टिप्पणियां करने का यह उचित समय नहीं है, लेकिन उन्होंने कहा कि इन टिप्पणियों को इस रूप में देखा जाना चाहिए कि उनमें कोई आपराधिकता शामिल नहीं है।

पीठ ने महमूदाबाद की गिरफ्तारी पर प्रतिक्रियाओं का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘हर कोई भाषण और अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार के बारे में बात कर रहा है। यह अधिकार मुकम्मल नहीं है… मानो देश पिछले 75 वर्षों से अधिकार बांट रहा हो।’’

न्यायाधीश ने कहा कि हालांकि इसमें से कुछ बातें राष्ट्र के लिए अपमानजनक नहीं थीं, लेकिन जैसे ही महमूदाबाद ने अपनी राय देनी शुरू की, उनके शब्द ‘‘दोहरे अर्थ’’ वाले ‘‘सांप्रदायिक’’ हो गए।

सिब्बल ने दलील दी कि प्रोफेसर की टिप्पणी का कोई ‘‘आपराधिक इरादा’’ नहीं था और उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि पोस्ट के अंत में ‘‘जय हिंद’’ लिखा हुआ था, जो इसकी देशभक्ति प्रकृति को दर्शाता है।

सिब्बल ने याचिकाकर्ता को राहत दिये जाने का अनुरोध करते हुए कहा कि प्रोफेसर न्यायिक हिरासत में हैं और उनकी पत्नी नौ महीने की गर्भवती हैं।

पीठ ने हरियाणा सरकार की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू से कहा कि टिप्पणी की सच्चाई जांच का विषय है और ऐसा प्रतीत होता है कि वह युद्ध-विरोधी हैं, क्योंकि उन्होंने कहा था कि सीमावर्ती क्षेत्रों में सैन्यकर्मियों और नागरिकों के परिवारों को कष्ट उठाना पड़ेगा।

न्यायमूर्ति कांत ने कहा, ‘‘कुछ शब्दों के दोहरे अर्थ होते हैं।’’

राजू ने कहा कि यह पोस्ट उतनी सरल नहीं है, जितनी सिब्बल ने बताई है।

पीठ ने विश्वविद्यालय के छात्रों और शिक्षकों के विरोध प्रदर्शन से संबंधित कुछ खबरों का हवाला दिया और कहा, ‘‘यदि वे कुछ भी करने की हिम्मत करते हैं, तो हम इसे स्वीकार नहीं करेंगे, यदि वे हाथ मिलाने आदि का प्रयास करते हैं, तो हम जानते हैं कि इन लोगों से कैसे निपटना है, वे हमारे अधिकार क्षेत्र में हैं।’’

सोनीपत की एक अदालत ने मंगलवार को महमूदाबाद को 27 मई तक न्यायिक हिरासत में भेज दिया था।

हरियाणा पुलिस ने महमूदाबाद के खिलाफ दो प्राथमिकी दर्ज होने के बाद, 18 मई को उन्हें गिरफ्तार किया था। उन पर आरोप है कि ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बारे में उनके सोशल मीडिया पोस्ट से देश की संप्रभुता और अखंडता को खतरा पैदा हुआ।

सोनीपत जिले में राई पुलिस ने दो प्राथमिकी दर्ज कीं। एक प्राथमिकी हरियाणा राज्य महिला आयोग की अध्यक्ष रेणु भाटिया की शिकायत पर और दूसरी एक गांव के सरपंच की शिकायत पर दर्ज की गई।

पुलिस ने कहा था, ‘‘आयोग की अध्यक्ष की शिकायत पर अशोका यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर महमूदाबाद के खिलाफ बीएनएस की धाराओं 152 (भारत की संप्रभुता या एकता और अखंडता को खतरे में डालने वाले कृत्य), 353 (सार्वजनिक शरारत संबंधी बयान), 79 (किसी महिला की गरिमा को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से जानबूझकर की गई कार्रवाई) और 196(1) (धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत प्राथमिकी दर्ज की गई है।’’

कई राजनीतिक दलों और शिक्षाविदों ने महमूदाबाद की गिरफ्तारी की निंदा की।

भाषा

देवेंद्र सुरेश

सुरेश