नयी दिल्ली, 27 जुलाई (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने मानहानि मामले में ऑनलाइन समाचार पोर्टल ‘द वायर’ के संपादक और ‘डिप्टी एडिटर’ को जारी समन निरस्त करने संबंधी दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया है। मानहानि का यह मामला जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) को कथित रूप से ‘संगठित सेक्स रैकेट के अड्डे’ के रूप में चित्रित करने वाले दस्तावेज (डोजियर) पर केंद्रित एक प्रकाशन को लेकर दर्ज कराया गया था।
उच्च न्यायालय ने ‘द वायर’ के संपादक और ‘डिप्टी एडिटर’ को आपराधिक मानहानि के मामले में जारी किए गए समन को 29 मार्च को निरस्त कर दिया था।
जेएनयू में ‘सेंटर फॉर स्टडी ऑफ लॉ एंड गवर्नेंस’ की पूर्व प्रोफेसर और अध्यक्ष अमिता सिंह ने ‘द वायर’ के संपादक और ‘डिप्टी एडिटर’ समेत कई लोगों के खिलाफ शिकायत की थी। सिंह ने शिकायत में कहा था कि अप्रैल, 2016 के प्रकाशन में उन पर कथित रूप से लांछन लगाया गया कि उन्होंने विवादित दस्तावेज को तैयार किया था।
न्यायमूर्ति एम. एम. सुंदरेश और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय ने 29 मार्च, 2023 के अपने आदेश में अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया है।
इसने कहा कि उच्च न्यायालय ने मजिस्ट्रेट द्वारा समन जारी करने के लिए अपनाए गए तर्क में गलती पाते हुए मामले का गुण-दोष के आधार पर निर्णय किया तथा कहा कि मानहानि का कोई मामला नहीं बनता।
पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘यद्यपि दलीलों को बहुत विस्तार से रखा गया है, फिर भी हमारा मानना है कि उच्च न्यायालय ने निश्चित रूप से अपने अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण किया है।’’
पीठ ने समन जारी करने संबंधी निचली अदालत के आदेश को लेकर अप्रसन्नता जाहिर की और कहा कि मजिस्ट्रेट ने ‘‘द वायर’’ द्वारा किए गए वास्तविक प्रकाशन पर गौर नहीं किया।
पीठ ने 24 जुलाई को दिये अपने आदेश में कहा कि कानून उन्हें इस पर गौर करने से नहीं रोकता है, बल्कि इसके विपरीत उन्हें समन जारी करने से पहले इस पर गौर करना चाहिए था।
अपील का निपटारा करते हुए पीठ ने कहा कि मजिस्ट्रेट उच्च न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले में की गई किसी भी टिप्पणी से प्रभावित हुए बिना, मामले को नए सिरे से आगे बढ़ाएंगे।
पिछले साल 29 मार्च को उच्च न्यायालय ने समाचार पोर्टल के संपादकों के खिलाफ जारी समन को खारिज करते हुए कहा था वह यह समझने में असमर्थ थे कि लेख को शिकायतकर्ता की मानहानि कैसे कहा जा सकता है, जबकि यह कहीं नहीं कहा गया है कि प्रतिवादी (सिंह) गलत गतिविधियों में शामिल हैं, और न ही इस संबंध में शिकायतकर्ता के लिए कोई अन्य अपमानजनक संदर्भ दिया गया है।
जेएनयू ने पिछले साल छह अक्टूबर को उच्चतम न्यायालय को बताया था कि विश्वविद्यालय के शैक्षणिक अनुभाग द्वारा रखे गए रिकॉर्ड के आधार पर, याचिका की सामग्री से मेल खाने वाले विवरण का कोई भी डोजियर प्राप्त नहीं हुआ या जेएनयू के रिकॉर्ड पर उपलब्ध नहीं है।
जेएनयू ने शीर्ष अदालत में दायर एक हलफनामे में यह बात कही थी।
‘द वायर’ के संपादक और ‘डिप्टी-एडिटर’ ने समन आदेश को उच्च न्यायालय के समक्ष इस आधार पर चुनौती दी थी कि रिकॉर्ड पर ऐसी कोई सामग्री नहीं है जिसके आधार पर मजिस्ट्रेट उन्हें समन जारी कर सकें।
उच्च न्यायालय के आदेश के बाद सिंह ने पिछले वर्ष उच्चतम न्यायालय का रुख किया था।
भाषा
देवेंद्र पवनेश
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