न्यायालय ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना करने पर सरकारी अधिकारी को फटकार लगाई

न्यायालय ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना करने पर सरकारी अधिकारी को फटकार लगाई

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  • Publish Date - April 21, 2025 / 10:20 PM IST,
    Updated On - April 21, 2025 / 10:20 PM IST

नयी दिल्ली, 21 अप्रैल (भाषा) उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को एक अधिकारी को उच्च न्यायालय के आदेश की कथित रूप से अवहेलना करने के लिए फटकार लगायी और सरकारी अधिकारियों को आगाह किया कि वे खुद को “कानून से ऊपर” न समझें।

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ अधिकारी (जो अब डिप्टी कलेक्टर हैं) द्वारा आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय की खंडपीठ के आदेश के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उनकी अवमानना ​​अपीलों को खारिज कर दिया गया था।

खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें अधिकारी को उसके आदेश की “जानबूझकर और पूर्ण अवज्ञा” करने के लिए दो महीने के कारावास की सजा सुनाई गई थी।

एकल न्यायाधीश का आदेश उन याचिकाओं पर आया था, जिनमें आरोप लगाया गया था कि अधिकारी (जो उस समय तहसीलदार थे) ने 11 दिसंबर 2013 के निर्देश के बावजूद जनवरी 2014 में गुंटूर जिले में जबरन झोपड़ियां हटा दीं।

सोमवार को जब मामला उच्चतम न्यायालय में सुनवाई के लिए आया, तो याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि अधिकारी अदालत में मौजूद है।

न्यायमूर्ति गवई ने पूछा, “उससे पूछिए कि वह कहां जाना चाहता है। अमरावती, विजयवाड़ा या तिहाड़ (दिल्ली की जेल) में से कोई जेल तो होगी ही। हम उसे विकल्प देंगे।”

न्यायाधीश ने कहा, “अधिकारियों को यह नहीं सोचना चाहिए कि वे कानून से ऊपर हैं। उन्हें (अधिकारी को) एक बार अदालत द्वारा चेतावनी दी गई थी और इसके बावजूद, उन्होंने फिर वही किया।”

पीठ द्वारा अधिकारी को तुरंत हिरासत में भेजने की चेतावनी दिए जाने के बाद, उसके वकील ने “दया दिखाने” का अनुरोध किया।

पीठ ने पलटकर पूछा, “किस आधार पर दया?”

उच्चतम न्यायालय ने उच्च न्यायालय की विशेष चेतावनी का हवाला देते हुए पूछा, “क्या उन्हें लगता है कि वे उच्च न्यायालय से ऊपर हैं?”

इसके बाद पीठ ने अधिकारी से निर्देश की अवहेलना के कारणों के बारे में पूछा।

उनके वकील ने कहा कि यद्यपि उनके मुवक्किल के कृत्य अक्षम्य हैं, फिर भी अदालत उन पर भारी जुर्माना लगाने पर विचार कर सकती है।

पीठ ने कहा, “यदि वह 48 घंटे तक हिरासत में रहा, तो उसकी नौकरी चली जायेगी।”

पीठ ने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में वह याचिकाकर्ता के निर्देश की अवहेलना करने के दुस्साहस को देखते हुए इस याचिका पर विचार नहीं करती।

पीठ ने कहा, “हालांकि, नरम रुख अपनाते हुए हम नोटिस जारी करने के लिए तैयार हैं। नोटिस का जवाब 5 मई को दिया जाना है।” साथ ही पीठ ने तब तक उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी।

न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादियों को वकील रखने की जरूरत नहीं है और उन्हें उच्चतम न्यायालय विधिक सेवा समिति के माध्यम से कानूनी सहायता प्रदान की जाएगी।

पीठ ने कहा, “उन्हें (अधिकारी को) कुछ समय तक राजकीय आतिथ्य का आनंद लेना चाहिए।” साथ ही उन्हें संभावित पदावनत के प्रति आगाह किया।

इसमें कहा गया, “उन्हें फिर से तहसीलदार, या नायब तहसीलदार या पटवारी बनने दें।”

भाषा

प्रशांत दिलीप

दिलीप